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    Bihar Election 2025: धोरैया में राजनीतिक विरासत से टकराया विकास का दावा, तीर और लालटेन के बीच जंग

    Updated: Wed, 05 Nov 2025 02:26 PM (IST)

    बांका जिले की धोरैया सीट पर जदयू के मनीष कुमार और राजद के त्रिभुवन दास के बीच मुकाबला है। त्रिभुवन अपने पिता की विरासत पर निर्भर हैं, जबकि मनीष विकास कार्यों के आधार पर वोट मांग रहे हैं। बेरोजगारी, पलायन और सिंचाई की समस्याएँ प्रमुख मुद्दे हैं, लेकिन चुनाव जातीय समीकरणों में उलझ गया है। देखना यह है कि जनता विरासत को चुनती है या विकास को।

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    धोरैया में राजनीतिक विरासत से टकराया विकास का दावा, तीर और लालटेन के बीच जंग (जागरण)

    बिजेन्द्र कुमार राजबंधु, बांका। जिले की पांच विधानसभा सीटों में से धोरैया सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। इस सीट पर भले ही आठ उम्मीदवार मैदान में हों, लेकिन असली मुकाबला जदयू के मनीष कुमार और राजद के त्रिभुवन दास के बीच सिमट गया है।

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    एक तरफ जहां त्रिभुवन दास अपने पिता स्वर्गीय नरेश दास की राजनीतिक विरासत को भुनाने में जुटे हैं, वहीं मनीष कुमार अपने दो विधायकी के कार्यकाल की उपलब्धियों के दम पर वोट मांग रहे हैं। नरेश दास यहां से पांच बार के विधायक रहे हैं, इसलिए मुकाबला अब साफ तौर पर तीर बनाम लालटेन का बन चुका है।

    धोरैया विधानसभा क्षेत्र का गठन 1952 में हुआ था। यहां कांग्रेस और सीपीआई का दबदबा रहा। 1967 के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। वर्ष 2000 के बाद यहां समता पार्टी के भूदेव चौधरी का पर्दापण हुआ। उनके जमुई से सांसद बनने के बाद मनीष कुमार ने राजनीतिक बागडोर संभाली। पिछले चुनाव में राजद के भूदेव चौधरी ने जदयू के मनीष कुमार को 2687 मतों से हराया था।

    इस बार राजद ने भूदेव चौधरी को टिकट से बेदखल कर दिया है, जिससे पार्टी में नाराजगी गहराई है। स्थानीय मतदाताओं का मानना है कि उनकी उपेक्षा राजद को नुकसान पहुंचा सकती है।

    दरअसल, धोरैया क्षेत्र कृषि प्रधान है, लेकिन आज तक यहां कोई औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं हो सकी है। कृषि आधारित उद्योगों की असीम संभावनाओं के बावजूद रोजगार का संकट गहराता जा रहा है। यहां के दो प्रखंड धोरैया और रजौन मिलकर इस विधानसभा का गठन हुआ है। दोनों में 38 पंचायतों की संख्या है।

    बेरोजगारी और पलायन यहां के सबसे बड़े मुद्दे हैं। यहां के गांवों में शायद ही कोई घर ऐसा हो, जहां से परिवार का कोई सदस्य रोजगार की तलाश में बाहर न गया हो। शुरुआती चुनावी दौर में यही मुद्दे छाए रहे, पर जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आई, गोलबंदी जातीय रेखाओं पर सिमटने लगी।

    26 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य है, सिंचाई बड़ी समस्या

    इस क्षेत्र में लगभग 26 हजार हेक्टेयर में धान और रबी की खेती होती है, लेकिन अवैध बालू खनन ने नदियों के पेट को खोखला कर दिया है। चांदन, गेरुआ, गहिरा, मिरचिनी, कदवा और रकौली जैसी नदियां अब सिंचाई के लायक नहीं रह गई हैं।

    धोरैया के चांदनी चौक पर बैठे राजीव सिंह का कहना है कि नीतीश कुमार ने स्वास्थ्य, बिजली और सड़क के क्षेत्र में जितना काम किया, उतना किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया। वहीं मु. शेख का कहना है कि रोजगार और पलायन के मुद्दे पर सरकार का ध्यान नहीं गया।

    राजेश मंडल मानते हैं कि अगर जनसुराज के प्रशांत किशोर नहीं होते, तो आज रोजगार और शिक्षा पर चर्चा ही नहीं होती।

    रजौन के सीताराम मंदिर में बैठे पुजारी चन्द्रकिशोर झा कहते हैं कि भूदेव चौधरी का टिकट काटकर पार्टी ने गलती की है। इसी जगह बैठे अजय राव का कहना है कि मनीष कुमार ने क्षेत्र को पहला पालिटेक्निक कालेज दिया है, यह उनका बड़ा योगदान है।

    आगे कोतवाली चौक पर बैठे युवाओं के बीच चर्चा थी कि जनसुराज उम्मीदवार सुमन पासवान भी जिला पार्षद हैं। वह इसी क्षेत्र के हैं। वहीं अजय राव ने विश्वास जताया कि 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे।

    रजौन स्कूल के पास महिला मतदाता सोनी देवी ने राज्य सरकार की दस हजार वाली योजना की सराहना की। जबकि कालेज छात्र उत्तम कुमार का कहना था कि तेजस्वी युवा हैं, उन्हें मौका मिलना चाहिए।
    राधिका झा ने कहा कि आज़ादी के बाद अगर किसी ने महिलाओं को मजबूत किया है तो वो नीतीश कुमार हैं। वैसे

    सियासी मैदान में रोजगार, पलायन और सिंचाई जैसे जातीय समीकरणों के घेरे में सिमटता जा रहा है। अब देखना यह है कि धोरैया की जनता विरासत पर भरोसा जताती है या विकास पर विश्वास करती है।

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