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    Usna Rice: बेगूसराय के चावल की नेपाल से लेकर भूटान तक डिमांड, किसानों को क्यों नहीं हो रहा लाभ?

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 07:36 AM (IST)

    बेगूसराय के उसना चावल की नेपाल और भूटान में भारी मांग है, फिर भी किसानों को उचित लाभ नहीं मिल रहा। चावल की गुणवत्ता अच्छी होने के बावजूद, किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है। उन्नत बीज और सिंचाई की कमी के साथ-साथ बाजार तक पहुंच की समस्या भी है। किसानों को उचित मूल्य और सुविधाएं मिलनी चाहिए।

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    बेगूसराय का उसना चावल। फाइल फोटो

    मो. खालिद, बेगूसराय। बरौनी औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित चार राइस मिल हर महीने करीब तीन लाख 60 हजार मीट्रिक टन चावल का उत्पादन करती हैं। यहां तैयार चावल देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ साउथ अफ्रीका, बंगलादेश, नेपाल और भूटान जैसे देशों में भी सप्लाई किया जाता है।

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    चावल उद्योग से क्षेत्र के करीब एक हजार परिवार प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं, जबकि ट्रांस्पोर्टर, चालक-उपचालक समेत बड़ी संख्या में लोग परोक्ष रोजगार पाते हैं।

    बरौनी के कुमार कमोडिटी एंड फूड मैनेजमेंट के मालिक और रामदीरी निवासी राहुल कुमार सिंह बताते हैं कि देवना औद्योगिक क्षेत्र में पहला राइस मिल उन्होंने 2013 में स्थापित किया था।

    बिजनेस में मास्टर डिग्रीधारी राहुल कहते हैं कि उनकी कंपनी मुख्य रूप से अरवा चावल का उत्पादन करती है, जिसकी खपत देश के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी लगातार बढ़ रही है। वे बताते हैं कि उनकी कंपनी केवल कॉमर्शियल कार्य करती है तथा सरकारी आपूर्ति का काम नहीं लेती।

    उद्योग क्षेत्र में स्थित अन्य तीन प्रमुख मिल कृष्णा रईस प्रोसेसर प्राइवेट लिमिटेड, वैद्यनाथ रियल फूड प्राइवेट लिमिटेड और आदर्श फूड प्रोडक्ट्स अरवा और उसना दोनों प्रकार के चावल का उत्पादन कर बाजार में आपूर्ति करती हैं।

    मिलों के अधिकारियों के अनुसार इन्हें आसपास के दो सौ किलोमीटर के दायरे से पर्याप्त धान मिल जाता है, इससे उत्पादन वर्षभर सुचारू रहता है। इनमें से तीन मिलें सरकारी पैक्स से भी धान प्राप्त करती हैं और आदेशानुसार गोदामों में सप्लाई करती हैं।

    अधिकारियों का कहना है कि बिहार और बंगाल में उसना चावल की मांग अधिक होती है। ब्रांडेड चावल होने के कारण कीमतें अन्य सामान्य चावलों की तुलना में कुछ अधिक रहती हैं।

    पैक्स की गड़बड़ी के कारण किसान नहीं बेचते हैं धान

    एक राइस मिल अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सबसे बड़ी गड़बड़ी पैक्स स्तर पर धान खरीद में होती है। सरकारी दर लगभग चौबीस सौ रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में धान की कीमत करीब 18 सौ रुपये रहती है।

    यदि पैक्स समय पर और पूरी पारदर्शिता के साथ किसानों से खरीद करे, तो किसान बाहर बेचने की बजाय पैक्स को ही प्राथमिकता दें, लेकिन भुगतान में लंबा विलंब किसानों को बाजार की ओर धकेल देता है।

    समन्वय की कमी से 60 प्रतिशत राइस मिल बंद

    एक अन्य ने बताया कि सरकार और उद्योग जगत के बीच वर्षों से समन्वय का अभाव रहा है। राइस मिलों को एक ही काम के लिए चार विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। उनका कहना है कि विभागों के बीच बेहतर समन्वय हो तो उद्योगों को अनावश्यक परेशानी नहीं होगी। इसी लचर व्यवस्था के चलते राज्य की करीब 60 प्रतिशत राइस मिलें बंद पड़ी हैं।

    स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित कर्मियों की भारी कमी

    कुमार राइस के मालिक राहुल कुमार सिंह का कहना है कि स्थानीय युवाओं को रोजगार देने की उनकी इच्छा है, लेकिन स्किल्ड कर्मियों की भारी कमी बाधा बनती है। एक योग्य कंप्यूटर आपरेटर या टैली जानकार ढूंढना भी मुश्किल है। उन्होंने कहा कि केवल डिग्री के आधार पर नौकरी देना संभव नहीं। स्थानीय स्तर पर डिग्रियों के बावजूद युवाओं में स्किल और जिम्मेदारी का अभाव दिखता है।