बिहार चुनाव 2025: बागियों के नामांकन से बखरी में राजनीतिक हलचल तेज, कितना बदला समीकरण?
बेगूसराय के बखरी में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नामांकन खत्म हो गया है, लेकिन बागियों के तेवर बरकरार हैं। भाजपा और राजद दोनों दलों के नेताओं ने गठबंधन के फैसले के खिलाफ नामांकन किया है, जिससे राजनीतिक माहौल गरमा गया है। अब देखना यह है कि ये बागी अपने-अपने गठबंधन को कितना नुकसान पहुंचाते हैं और पार्टियां डैमेज कंट्रोल में कितनी सफल होती हैं।

उमर खान, बखरी (बेगूसराय)। बिहार विधानसभा आम निर्वाचन 2025 के पहले चरण में छह नवंबर को बखरी में मतदान होना है। इसके लिए नामांकन की प्रक्रिया शुक्रवार को समाप्त हो गई, परंतु बागियों के तेवर बरकरार हैं। यूं तो यह सीट पहले भी हमेशा चर्चा में रही है, परंतु नामांकन प्रक्रिया के अंतिम दिन बागियों के नामांकन ने इस वर्ष के चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है।
बखरी सीट 2015 से महागठबंधन के कब्जे में है। सीपीआइ के सूर्यकांत पासवान निवर्तमान विधायक हैं। 2020 के चुनाव में उनको एनडीए के भाजपा उम्मीदवार रामशंकर पासवान से कड़ी टक्कर मिली थी। दोनों के बीच जीत हार का अंतर महज 777 मतों का था।
इस अंतर को मिटाने के लिए भाजपा के पूर्व प्रत्याशी ने पांच वर्ष तक जी-तोड़ मेहनत की। संगठन के सभी कील कांटों को दुरस्त किया। वे इस चुनाव को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। पंरतु ऐन वक्त पर भाजपा की यह परंपरागत सीट एनडीए के घटक दल लोजपा (आर) के खाते में चली गई।
लोजपा ने पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के नेता संजय पासवान को अपना उम्मीदवार घोषित किया। इससे भाजपा कार्यकर्ताओं, खासकर पार्टी के पूर्व प्रत्याशी की सभी तैयारियों और उत्साह पर तुषारापात हो गया।
उन्होंने पार्टी नेतृत्व के इस निर्णय के विरुद्ध नामांकन के अंतिम दिन अपनी उम्मीदवारी पेश कर दी। उनका दावा, कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने के लिए अपनी उम्मीदवारी दी है।
इधर 2015 में महागठबंधन के राजद उम्मीदवार उपेंद्र पासवान ने बड़ी मार्जिन से चुनाव जीता था। परंतु, 2020 में राजद का सीटिंग विधायक होने के बावजूद यह सीट गठबंधन के सीपीआइ के खाते में चली गई। इससे पूर्व विधायक उपेंद्र पासवान को धक्का लगा, लेकिन वे पार्टी नेतृत्व के खिलाफ नहीं गए।
महागठबंधन ने फिर से सीपीआइ के सिंबल पर सूर्यकांत पासवान को मैदान में उतारा है। इधर राजद के पूर्व विधायक उपेंद्र पासवान ने भी अंतिम दिन अपना नामांकन करा विरोध का झंडा बुलंद कर दिया है।
इस तरह दोनों ही गठबंधन से बागियों के नामांकन ने यहां की राजनीतिक हवा को एक चर्चा दे दी है। गांव जवार का चौपाल हो या शहर के चौक चौराहे और चाय पान की दुकानें, सभी जगह एक ही चर्चा आम है। हालांकि ये बागी अपने-अपने गठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह अभी समय के गर्भ में है, लेकिन मतदाता इसका गुणा भाग करने में लग गए हैं, क्योंकि भाजपा कैडर बेस्ड पार्टी है।
उसका बूथ मैनेजमेंट काफी सशक्त है। जबकि लोजपा (आर) का आधार यहां काफी कमजोर है। इसी तरह सीपीआइ भी यहां का कैडर बेस्ड दल है और राजद कार्यकर्ता उसका सबसे बड़ा और मजबूत धरा है। इसलिए दोनों ही धरा बागियों के इस खतरे के साथ नहीं चल सकते।
अतः दोनो ही खेमों की ओर से चुनाव में होने वाले डैमेज कंट्रोल के प्रयास तेज हो गए हैं। पार्टी के कद्दावर और खुद प्रत्याशी बागियों को मनाने में जुट गए हैं। वे आश्वस्त हैं कि बागी उनके साथ आकर मजबूती से चुनाव लड़ेंगे। परंतु देखना यह है कि इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलती है।
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