गरीबी के अभिशाप से मुक्ति की रोल मॉडल बनीं दीदी कैफे वाली बबीता, महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर
बिहार के बेगूसराय की बबीता देवी की कहानी प्रेरणादायक है। कभी परिवार के लिए भोजन जुटाना मुश्किल था पर आज उनके बच्चे पढ़ रहे हैं। 12 वर्षों की मेहनत से उन्होंने लखपति दीदी का दर्जा पाया है। दिल्ली में उन्हें राष्ट्रीय आत्मनिर्भर संगठन पुरस्कार मिला। बबीता देवी ने जीविका समूह से जुड़कर सब्जी की दुकान से शुरुआत की और आज हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं।

सरोज कुमार, बीहट (बेगूसराय)। गरीबी को नियति मान अवसाद में घिरने वालों के लिए यह प्रेरक कहानी है। 12 वर्ष पहले जिस महिला के सामने परिवार के लिए भरपेट भोजन जुटाना चुनौती थी, आज उनके दो बेटे आईटीआई व बी फार्मा कर रहे हैं और बेटी इंटर में है। गरीबी के अभिशाप से मुक्ति पाकर वह अपने नगर ही नहीं, देश की रोल मॉडल बन गई हैं। स्वरोजगार में स्नातक तक की पढ़ाई उनकी ताकत बनी।
इसका जीवंत उदाहरण पेश किया है बरौनी प्रखंड अंतर्गत नगर परिषद बीहट वार्ड संख्या 34 चकिया निवासी जीविका दीदी बबीता देवी ने। साधारण परिवार में जन्मीं और बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझती हुई बबीता देवी ने 12 वर्ष की अथक मेहनत और संघर्ष के बल पर आज ‘लखपति दीदी’ का दर्जा हासिल किया है।
बबीता देवी।
दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत सरकार द्वारा उन्हें राष्ट्रीय आत्मनिर्भर संगठन पुरस्कार से नवाजा गया। यह सम्मान केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों मिला। इस उपलब्धि से न केवल बेगूसराय जिला बल्कि पूरा बिहार गौरवान्वित हुआ है।
संगीता देवी।
गरीबी से आत्मनिर्भरता तक का सफर
बबीता देवी का मायका पटना जिला के मोकामा है, जबकि ससुराल बेगूसराय जिला के बरौनी प्रखंड के चकिया में है। वह स्नातक पास हैं और उनके पति मजदूरी कर परिवार चलाते थे। दो बेटों और एक बेटी की परवरिश में उन्हें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जीवन-यापन की जद्दोजहद ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने की राह दिखाई।
वर्ष 2014 में उन्होंने जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपने जीवन को नया मोड़ दिया। शुरुआत सब्जी की दुकान से हुई, फिर धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की राह पकड़ते हुए उन्होंने अन्य उद्यमों की ओर कदम बढ़ाया। आज उनका बड़ा बेटा सुमन कुमार हैदराबाद में बी-फार्मा की पढ़ाई कर रहा है। छोटा बेटा समर कुमार आइटीआइ में है, जबकि बेटी इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रही है। यह सब बबीता देवी की जीविका यात्रा से संभव हो पाया है।
अर्चना देवी।
महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणा
बबीता देवी ने वर्ष 2020 में बरौनी प्रखंड में सीएलएफ (क्लस्टर लेवल फेडरेशन) का गठन किया। उनके नेतृत्व में आज यह संस्था आत्मनिर्भरता का एक सफल मॉडल बन चुकी है। वर्तमान में इसके तहत 38 ग्राम संगठन और 558 महिला समूह सक्रिय हैं, इनसे 6138 दीदियां जुड़ी हुई हैं। इनमें से लगभग चार हजार महिलाएं आज ‘लखपति दीदी’ के रूप में पहचान बना चुकी हैं।
इन समूहों से जुड़ी महिलाएं गाय-बकरी पालन, मुर्गी पालन, सब्जी उत्पादन, किचन गार्डन, छोटे-बड़े व्यापार, दुकानदारी और स्वरोजगार के माध्यम से न केवल अपने परिवार की जिम्मेदारी निभा रही हैं, बल्कि समाज में भी सम्मानजनक पहचान हासिल कर रही हैं। बबीता देवी ने बताया कि आज 2005 जीविका दीदियां पशुपालन, 1936 महिलाएं दुकानों का संचालन और कई अन्य महिलाएं छोटे-छोटे उद्यम से आय अर्जित कर रही हैं।
दीदी कैफे से नई पहचान
बबीता देवी आज बरौनी प्रखंड मुख्यालय के द्वार पर अन्य दो जीविका दीदियों संगीता देवी और अर्चना देवी के साथ दीदी कैफे (चाय, बिस्किट, लिट्टी व अन्य सामान) चला रही हैं। यह कैफे उनकी आय का बड़ा साधन बना है और आसपास की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी।
इसके अलावा उन्होंने राजस्थान से सांभर नमक मंगवाकर उसे बेचने का कारोबार भी शुरू किया है। साढ़े आठ रुपये प्रति किलो की दर से नमक मंगाकर 11 रुपये प्रतिकिलो आपूर्ति करती हैं। पिछले डेढ़ साल में करीब 13 सौ टन नमक की खपत कर 5.5 लाख रुपये का मुनाफा अर्जित किया।
मेहनत और लगन से मिला बड़ा सम्मान
कभी आर्थिक तंगी से जूझ चुकीं बबीता देवी आज न केवल अपने परिवार की दशा सुधार रही हैं, बल्कि हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह दिखा रही हैं। ये महिलाएं हर महीने 10 हजार रुपये से अधिक की आय अर्जित करती हैं। बबीता की मेहनत और लगन ने उन्हें समूह की सदस्य से उठाकर सीएलएफ अध्यक्ष तक पहुंचा दिया।
दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस समारोह पर जब उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर आत्मनिर्भर भारत पुरस्कार मिला तो पूरा क्षेत्र गौरवान्वित हो उठा। ग्रामीण महिलाओं के बीच उनकी पहचान ‘रोल मॉडल’ के रूप में हो चुकी है।
क्या कहती हैं अर्चना देवी?
जीविका और बबीता दीदी ने मेरे जीवन को नई दिशा दी। परिवार में आर्थिक तंगी चल रही थी। कुछ भी ठीक नहीं था। एक दिन बबीता दीदी से मुलाकात हुई और मैंने अपनी पारिवारिक स्थिति उनसे साझा की। तब उन्होंने जीविका से जुड़ने की सलाह दी। अपने संघर्ष की कहानी बताकर हमें भी आगे बढ़ने को प्रेरित किया। वर्ष 2016 के दिसंबर में जीविका से जुड़ी। धीरे-धीरे स्थिति पटरी पर आती गई। नई जिंदगी देने वाली जीविका को अपना जीवन सौंप आगे बढ़ चली। जीविका समूह में महिलाओं को जोड़ते हुए वर्ष 2020 में लखपति दीदी बनने का सौभाग्य मिला। अभी बरौनी प्रखंड मुख्यालय में जीविका दीदी कैफे चलाकर जीविकोपार्जन कर रही हूं।
क्या कहती हैं संगीता देवी?
बरौनी प्रखंड की असुरारी निवासी संगीता देवी बताती हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। घर का कोई सदस्य नौकरी में था नहीं, शिक्षा और प्रशिक्षण भी ऐसा नहीं था कि कोई बैंक किसी व्यवसाय के लिए ऋण दे दे। उधेड़बुन में थी, ऐसे में गांव में जीविका समूह का नाम सुना। बबीता दीदी इस क्षेत्र में जाना पहचाना चेहरा हैं, उनसे मिली, जीविका की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी ली।
बबीता दीदी ने खूब प्रोत्साहित किया, इससे आत्मविश्वास बढ़ा और 2017 में जीविका समूह में शामिल हो गई। शुरुआत में संघर्ष करना पड़ा, परंतु इसके साथ ही राह भी धीरे-धीरे आसान होती चली गई। बरौनी प्रखंड में जीविका दीदी कैफे संचालित कर जीविकोपार्जन कर रही हूं। बबीता दीदी के संपर्क और सहयोग से तीन वर्ष में लखपति दीदी बनी। आर्थिकी सुधरी तो अब परिवार और बच्चों को शिक्षित कर रही हूं। हर 10 से 15 हजार की आय हो जाती है।
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