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    भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : रंगनाथ पहाड़ पर अंग्रेजों को खदेडऩे की बनती थी रणनीति, याद करो बलिदान

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 11 Aug 2022 03:08 PM (IST)

    भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम पहाड़ की गुफा में छिपकर अंग्रेजों की पुलिस को देते थे चकमा। हर दिन होती थी बैठकें अंग्रेजों से लोहा लेने की होती थी बातें। रंगनाथ पहाड़ पर जमा होने की सूचना पर जब अंग्रेजों की पुलिस पकडऩे पहुंचती थी।

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    भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : रंगनाथ पहाड़, जहां बनती थी अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति।

    राम प्रवेश सिंह, हवेली खडग़पुर (मुंगेर)। भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम : मुंगेर जिले से करीब 50 किमी दूर बनहरा पंचायत की घघड़ी नदी के किनारे स्थित रंगनाथ पहाड़ पर अंग्रेजों से लड़ाई लडऩे की रणनीति बनाई जाती थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आजादी के दीवानों की टोली रंगनाथ पहाड़ पर ही एकत्रित होते थे। आजादी के दीवानों के रंगनाथ पहाड़ पर जमा होने की सूचना पर जब अंग्रेजों की पुलिस पकडऩे पहुंचती थी तो पहाड़ पर बने गुफा में छिपकर सभी लोग चकमा देते थे।

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    स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी स्व. बनारसी प्रसाद सिंह, स्व. नंदकुमार सिंह, स्व. नरेंद्र सिंह, स्व. राम प्रसाद सिंह, स्व. सहदेव सिंह, स्व. ब्रह्मदेव शास्त्री, स्व. रामधनी मंडल, स्व. युगल किशोर शास्त्री, स्व. आनंद शास्त्री सहित अन्य आजादी के दीवानों रंगनाथ पहाड़ पर स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक हर दिन करते थे। यहां सभी अंग्रेजों से लोहा लेने और भगाने को लेकर चर्चाएं करते थे। आजादी के दीवानों के रणनीति तैयार करने वाले इस रंगनाथ पहाड़ को आजादी के बाद संरक्षित करने की दिशा में प्रयास नहीं किया गया। प्रसिद्ध गांधीवादी च‍िंतक व पूर्व मंत्री स्व. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भी रंगनाथ पहाड़ की उपेक्षा पर चिंता जताई थी। रंगनाथ मंदिर समिति ने भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार से रंगनाथ पहाड़ को ऐतिहासिक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की है।

    विजय की शपथ लेकर निकलते थे राजा

    रंगनाथ पहाड़ के बारे में एक लोक कथा भी प्रचलित है। 14 राजाओं की राजधानी रह चुकी खडग़पुर के प्रथम राजा संग्राम सिंह सहित कई राजा ने वीर क्षत्रियों के साथ रंगनाथ पहाड़ की चोटी पर बने महादेव मंदिर से विजय प्राप्ति का शपथ लेकर हर हर महादेव की जयघोष कर रणभेरी बजाकर अफगानों के विरुद्ध संघर्ष का श्रीगणेश किया करते थे। इस पहाड़ पर वीरांगना ज्योतिर्मयी महारानी मुगलों से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुई थी। आज भी लोग उनके बलिदान को याद करते हैं।