JLNMCH Bhagalpur में खून-पेशाब जांच कराने के लिए मारामारी... घात कर रहे दलाल, मरीजों को 2 बार देने पड़ रहे सैंपल
JLNMCH Bhagalpur पूर्वी बिहार के सबसे बड़े अस्पताल भागलपुर के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज अस्पताल में मरीजों को खून-पेशाब आदि पैथोलाजी जांच के लिए मारामारी करनी पड़ रही है। प्रबंधन की लापरवाही के चलते मरीजों को दो-दो बार अपना जांच सैंपल अलग-अलग जगहों पर जाकर देना पड़ रहा है।

जागरण संवाददाता, भागलपुरI JLNMCH Bhagalpur जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज अस्पताल में मरीजों को पैथोलॉजी जांच के लिए खून का सैंपल देने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मरीजों को दो अलग-अलग स्थानों पर सैंपल देना पड़ता है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ रही है। इस बीच, कुछ निजी लैब के दलाल मरीजों को सस्ते में जांच कराने का लालच देकर अपने साथ ले जा रहे हैं। गुरुवार को अस्पताल में ऐसा ही एक मामला सामने आया। अस्पताल अधीक्षक ने ऐसे मामलों पर सख्ती से निपटने की बात कही है।
अस्पताल में आने वाले मरीजों को चिकित्सक विभिन्न प्रकार की जांचों के लिए निर्देशित करते हैं। सीबीसी जांच क्लीनिकल लैब में नहीं हो रही है, जिसके कारण मरीजों को अन्य जांचों के लिए सैंपल क्लीनिकल लैब में देना पड़ता है। सीबीसी जांच के लिए मरीजों को निजी एजेंसी के पास भेजा जा रहा है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों से आए मरीज, जिन्हें चालान लेने की जानकारी नहीं होती, सीधे एजेंसी के पास जाकर निराश लौटते हैं।
ऐसे मरीज बाहरी लैब के दलालों के शिकार बन जाते हैं। गुरुवार को क्लीनिक लैब प्रभारी ने वायल की कमी के संबंध में अस्पताल अधीक्षक को पत्र लिखा, जिसके बाद अधीक्षक ने तत्काल वायल खरीदने का निर्देश दिया। उम्मीद है कि अगले दो से तीन दिनों में लैब को वायल मिल जाएगा, जिससे मरीजों की समस्याएं हल हो जाएंगी।
एक ही जगह खून का सैंपल लेने का निर्देश दिया गया है। मरीजों को किसी बाहरी व्यक्ति के झांसे में नहीं आना चाहिए। - डा. अविलेश कुमार, अस्पताल अधीक्षक
सदर अस्पताल में फैब्रिकेटेड वार्ड पर लटका ताला
भागलपुर सदर अस्पताल में बच्चों के इलाज के लिए लाखों रुपये खर्च कर बने फैब्रिकेटेड में आजतक इलाज नहीं हुआ। दो साल बाद भी इस अस्पताल में बीमार बच्चों के इलाज के लिए कोई उपकरण नहीं लग सका है। फिलहाल, यह वार्ड पुलिस और छात्रों के प्रमाण पत्र बनाने का केंद्र बनकर रहा गया है।
दअरसल, फैब्रिकेटेड वार्ड में बच्चों के लिए पीकू वार्ड संचालित करने की योजना बनी थी। जहां बच्चों के साथ-साथ उनकी माताओं का भी इलाज होना था। तय समय में अस्पताल बन कर तैयार भी हो गया। इसके बाद बारी यहां संसाधन को लगाने की आई तो एक थर्मामीटर तक नहीं रखा गया। बड़ी और उपयोगी मशीन तो दूर की बात हो गई।
पीकू वार्ड नहीं शुरू होने पर डीएम ने तत्काल इस वार्ड में ही जिले के कुपोषित बच्चों का इलाज करने की बात कही। इसको पोषण पुनर्वास केंद्र के रूप में बदला गया। बेड लगाए गए। प्रखंड से कुपोषित बच्चों को लाकर यहां इलाज भी किया गया। धीरे-धीरे यह सुविधा भी बंद हो गई। बाद में फैब्रिकेटेड वार्ड में ही ताला लग गया।
बिहार पुलिस व छात्रों के लिए बना जांच केंद्र
फैब्रिकेटेड वार्ड में कभी बिहार पुलिस की स्वास्थ्य जांच होती है तो कभी छात्रों को प्रमाण पत्र देने से पहले उनकी जांच की जाती है। पिछले दिनों बिहार पुलिस के जवानों को मेडिकल प्रमाण पत्र की जरूरत थी तो फैब्रिकेटेड वार्ड में ही सभी को बुलाया गया था।
पीकू वार्ड के संचालन की बनी थी योजना
फैब्रिकेटेड वार्ड के निर्माण के दौरान ही इसमें पीकू वार्ड के संचालन की योजना बनी थी। तत्कालीन सिविल सर्जन ने कहा था कि इसमें 32 बेड का पीकू वार्ड बनाया जाएगा। जिसमें आधुनिक उपकरण के साथ साथ चिकित्सक एवं नर्स की तैनाती होगी। लेकिन, यह योजना शुरुआती समय में ही दम तोड़ गई। न इसके लिए उपकरण मंगाए गए और न ही स्वास्थ्यकर्मियों की तैनाती की गई। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज अस्पताल में केवल पीकू वार्ड का संचालन हो रहा है। जहां गंभीर रूप से बीमार बच्चों के इलाज के कतार लगी रहती है। अगर सदर अस्पताल में पीकू वार्ड शुरू हो जाता तो बीमार बच्चों को राहत होती।
क्या होता है पीकू वार्ड
पेडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीकू) में गंभीर रूप से बीमार बच्चों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा दी जाती है। यहां प्रशिक्षित डाक्टर, नर्स एवं अन्य स्वास्थ्य कर्मी को तैनात किया जाता है। यहां बच्चों के लिए वेटिंलेटर, मानिटर व अन्य जीवन रक्षक उपकरण लगाए जाते हैं।
पीकू वार्ड को संचालित करने के लिए आवश्यक उपकरण और अन्य संसाधन लगाए जाएंगे। चिकित्सक, नर्स एवं तकनीकी कर्मी की कमी है। इसे शुरू कराने की दिशा में प्रयास किया जा रहा है। अभी माडर्न सदर अस्पताल के भवन में बच्चों को इलाज की बेहतर सुविधा मिल रही है। डा. राजू , सदर अस्पताल प्रभारी
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