जुल्मी काली, मशानी काली... ज्यादा कष्ट में हैं तो करें ये काम, Kali Puja पर ऐसे लगाएं दही-चूड़ा का भोग
Kali Puja: कालीबाड़ी में बंगाल की परंपरा के अनुसार मां काली की पूजा-अर्चना हुई। सैतिया (बंगाल) के पंडित देवाशीष मुखर्जी ने बंग्ला विधि-विधान से पूजा संपन्न कराई। बंगाली समाज की महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में मां काली का दर्शन किया। मां काली को फलों की बलि दी गई और खिचड़ी, पांच तरह की भुजिया, चटनी, खीर और दो प्रकार की सब्जी का भोग लगाया गया। मां बुढ़िया काली मंदिर, बम काली मंदिर में पारंपरिक रूप से पाठा की बलि दी गई।

Kali Puja: कालीबाड़ी में मां काली को फलों की बलि दी गई, बुढ़िया काली मंदिर, बम काली मंदिर में पारंपरिक रूप से पाठा की बलि दी गई।
संवाद सहयोगी, भागलपुर। Kali Puja जुल्मी काली, जंगली काली, मशानी काली, बम काली... देशभर में मां काली की आराधना का पर्व भव्यता और भक्तिभाव के साथ मनाया जा रहा है। मंगलवार को भागलपुर के काली मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। देर रात तक मां काली के जयघोष और ढाक-ढोल की थाप पर भक्त झूमते रहे। बुधवार की देर रात से बहुप्रतीक्षित काली विसर्जन शोभायात्रा शुरू होगी, जिसमें लगभग 80 प्रतिमाएं शामिल होंगी। पूरा शहर एक बार फिर देवी आराधना, सांस्कृतिक परंपरा और सामूहिक आस्था का साक्षी बनेगा। भागलपुर का काली विसर्जन महज धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सामूहिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन चुका है। मां काली के जयघोष, ध्वज-पताका और गीत-संगीत से गूंजती सड़कों पर जब प्रतिमाएं चलती हैं, तो पूरा शहर भक्ति की लहर में डूब जाता है।
काली दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
मंगलवार को परबत्ती, इशाकचक बुढ़िया काली स्थान, गुड़हट्टा, नाथनगर, हबीबपुर, ललमटिया, जोगसर और तिलकामांझी जैसे इलाकों में भक्तों की भीड़ लगी रही। मंदिरों के बाहर लगे मेलों में महिलाओं और बच्चों का उत्साह देखने लायक था। चाट-समोसे, खिलौने और झूले की दुकानों पर रौनक रही। कालीबाड़ी मंदिर में बंगाल की परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना हुई। सैतिया (बंगाल) के पंडित देवाशीष मुखर्जी ने बंग्ला विधि-विधान से पूजा संपन्न कराई। बंगाली समाज की महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में मां काली का दर्शन किया।
मां काली को फलों की बलि दी गई और खिचड़ी, पांच तरह के भुजिया, चटनी, खीर और दो प्रकार की सब्जी का भोग लगाया गया। मां बुढ़िया काली मंदिर, इशाकचक में बना तारापीठ मंदिर स्वरूप पंडाल देखने भक्तों की भीड़ लगी रही। सोमवार की मध्यरात्रि में प्रतिमा स्थापित की गई और पारंपरिक रूप से पाठा की बलि दी गई। रात्रि में जागरण का आयोजन हुआ, जिसमें स्थानीय कलाकारों ने भक्ति संगीत प्रस्तुत किया।
मंदरोजा के हड़बड़िया काली मंदिर में अद्वितीय पूजन
मंदरोजा के हड़बड़िया काली मंदिर में पंडित ज्योतिषाचार्य मनोज कुमार मिश्र ने बताया कि यहां बलि प्रथा नहीं है। मंगलवार को 101 किलो चावल की खीर और 25 किलो हलुआ का भोग लगाया गया तथा 21 कन्याओं का पूजन किया गया। देर शाम कलश विसर्जन संपन्न हुआ। बुधवार रात 10 बजे प्रतिमा विसर्जन यात्रा निकाली जाएगी।
आज रात काली विसर्जन शोभायात्रा : परंपरा का 72वां वर्ष
काली महारानी महानगर केंद्रीय महासमिति के अध्यक्ष ब्रजेश साह और प्रवक्ता गिरीश चंद्र भगत ने बताया कि इस बार विसर्जन शोभायात्रा का यह 72वां वर्ष है। शहर को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है । विसर्जन यात्रा में पूर्वी क्षेत्र: 17 प्रतिमाए, पश्चिमी क्षेत्र : 19 प्रतिमाएं, उत्तरी क्षेत्र : 26 प्रतिमाएं, दक्षिणी क्षेत्र : 18 प्रतिमाएं। कुल 80 प्रतिमाएं शोभायात्रा में शामिल होंगी।
बताया गया कि महासमिति की स्थापना 1954 में हुई थी। तब से यह परंपरा लगातार शांतिपूर्ण, सद्भावपूर्ण और हर्षोल्लास के साथ शहर में निभाई जा रही है।
विसर्जन शोभायात्रा में परबत्ती की मां काली रहेंगी सबसे आगे
विसर्जन शोभायात्रा में सबसे आगे परबत्ती की मां काली की प्रतिमा रहेगी, जिसके पीछे अन्य प्रतिमाएं क्रमवार चलेंगी। शहर के प्रमुख मार्गों से शोभायात्रा गुजरेगी। कालीघाट और मुसहरी घाट पर विसर्जन की तैयारी पूरी कर ली गई है। कृत्रिम तालाब बनाए गए हैं, जहां देर रात प्रतिमाओं का विधिवत विसर्जन किया जाएगा।
मां को लगाएं दही-चूड़ा का भोग
बुधवार की दोपहर चार बजे से पहले मां काली को दही-चूड़ा का भोग लगाकर भक्त विदाई पूजन करेंगे। इसके बाद प्रतिमाओं को शोभायात्रा के साथ विसर्जन स्थल की ओर ले जाया जाएगा। श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा व्यवस्था, रोशनी और पेयजल की विशेष व्यवस्था की गई है।
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