बिहार की चटाई बनाने वाली महिलाओं का दर्द, कोसी कटाव के 12 साल बाद भी इधर-उधर भटक रहे
बिहार की चटाई बनाने वाली महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड क्षेत्र के चटाई बुनकर अपने परिवार का गुजारा करने वा ...और पढ़ें

संवाद सूत्र,सरायगढ़ (सुपौल)। सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड क्षेत्र के चटाई बुनकर अपने परिवार का गुजारा करने वाली सरदार जाति की महिलाओं के पास योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है। प्रखंड में सैकड़ों ऐसी महिलाएं हैं जो पटेर की चटाई निर्माण करती है। 2010 में कोसी नदी के तांडव से विस्थापित होकर चटाई बुनने वाली महिलाएं परिवार सहित तटबंध के विभिन्न जगहों पर पहुंच गई। गौरीपट्टी, सरायगढ़, चिकनी, सिमरी, सदानंदपुर, पुरानी भपटियाही सहित कुछ ऐसी जगह हैं जहां सरदार जाति के लोग बसे हुए हैं, चटाई बुनना इनका मुख्य काम है। वर्तमान समय में जगह-जगह चटाई बनाई जा रही है लेकिन उससे जुड़ी महिलाओं को समस्याओं से जूझना पड़ता है।
चटाई बनाने के लिए मुख्य रूप से पटेर और रस्सी की जरूरत होती है। इसके लिए महिलाओं को पूंजी की आवश्यकता होती है जो उनके पास नहीं है। औरही गांव की कुछ महिलाओं ने बताया कि वह सब पैसे के अभाव में पटेर का भंडार नहीं कर पाती। पटेर जिस खेत में उगता है वह दूसरे का होता और वह अधिक कीमत पर बेचते हैं। एक बोझा पटेर की कीमत वर्तमान समय में एक सौ रुपये लेता है जबकि किसान अपने खेत में उसी पटेर को 40 से 50 रुपये बोझा बेचते हैं। गांव के कुछ पैसे वाले लोग अपने यहां पटेर जमा कर रखते हैं और उसे अधिक कीमत लेकर बेचते हैं। पटसन भी अधिक कीमत पर मिलता है। महिलाओं ने कहा कि पूंजी के अभाव में समय पर पटेर और रस्सी खरीद कर घर में नहीं रख पाते जिस कारण चटाई का अधिक मुनाफा नहीं मिल पाता है।
महिलाओं ने बताया कि एक दिन में तीन तीन चटाई बना लेती है। भपटियाही बाजार में एक चटाई डेढ़ सौ रुपये में बिकती है। ऐसे में तीन चटाई की कीमत 450 रुपये मिलती है लेकिन उसमें 250 रुपये तक की पूंजी लग गई होती है। पूंजी अधिक लग जाने के कारण मुनाफा कम होता है और फिर परिवार का खर्च उठाने में समस्या हो जाती है। महिलाओं का कहना था कि अधिक कच्चा माल समय से खरीद पाते तो प्रति चटाई अच्छा मुनाफा होता।
महिलाओं का कहना था कि वह सब जो चटाई बनाती है उसे खरीदने के लिए सहरसा, मधेपुरा, बेगूसराय, खगड़िया, दरभंगा, अररिया, पटना सहित अन्य जगह से व्यापारी पहुंचते हैं। कहा कि कभी-कभी जब बाहर से व्यापारी नहीं आते हैं तब उनलोगों को बहुत कम कीमत पर अपनी चटाई बेचनी पड़ती है।
महिलाओं का कहना है कि सरकार की ओर से उनलोगों को कोई मदद नहीं मिल रही है। सरकार इसे उद्योग का दर्जा दे सकती है लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जो चटाई निर्माण कार्य में जुटे हुए हैं उसका सर्वेक्षण कर उसको बैंक से भी ऋण दिया जाए तो रोजगार और बढ़ेगा।

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