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    सीमांचल में बढ़ती जा रही विस्थापितों की संख्या, हर साल बरसात में छोडऩा पड़ता है घर

    By Abhishek KumarEdited By:
    Updated: Sun, 12 Sep 2021 05:32 PM (IST)

    सीमांचल में हर साल विस्थापितों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। अब भी हर साल कोसी में बाढ़ आती है और किसी न किसी गांव की आबादी विस्थापित होती है यानी कोस ...और पढ़ें

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    सीमांचल में हर साल विस्थापितों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। सांकेतिक तस्‍वीर।

    जागरण संवाददाता, सुपौल। कोसी से विस्थापन का पुराना नाता है। पूर्व में जब कोसी नदी को तटबंधों के बीच बांधा गया तो सैकड़ों गांव की आबादी विस्थापित हुई। सरकार ने पुनर्वास की बात की और काफी संख्या में लोग पुनर्वासित भी किए गए। पुनर्वासित किए जाने के बावजूद एक बड़ी आबादी पुनर्वास से वंचित रह गई। अब भी हर साल कोसी में बाढ़ आती है और किसी न किसी गांव की आबादी विस्थापित होती है यानी कोसी की कोख से उजपी विस्थापन की पीड़ा बढ़ती जा रही है। बाढ़ के बाद पीडि़त अपने गांव लौटते हैं और अपना नया बसेरा बनाते हैं।

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    -पुनर्वास से वंचित रह गई बाढ़ पीडि़तों की बड़ी आबादी

    -तटबंधों और स्परों पर काफी संख्या में शरण लिए हुए हैं विस्थापित

    तटबंध और स्परों के किनारे बसाई दुनिया

    गाईड बांध और एनएच 57 के बीच कमलदाहा, बेंगा, छपकी, इटहरी, सनपतहा, बनैनियां और बलथरवा के विस्थापित लोग बसते हैं। 2010 में गाईड बांध निर्माण के बाद ये बेघर हो गए। इनके गांव कोसी के उदर में समा गए। इनलोगों ने वहीं तटबंध के किनारे और आसपास अपनी दुनिया बसा ली। चिकनी, झाझा और सरायगढ़ में बनैनिया के, भपटियाही के स्परों पर बलथरबा के, कल्याणपुर में गौरीपट्टी के, दिघिया में ढोली, झखराही, सियानी और कटैया के विस्थापित शरण लिए हुए हैं। किशनपुर प्रखंड के बुर्जा और डुमरिया में भी विस्थापितों का शरण स्थल है। एक ही टोले में कई गांव की आबादी बसती है।

    यह टोला किसी खास गांव अथवा पंचायत का नहीं बल्कि तटबंध के किनारे बसा विस्थापितों का टोला है। अलग-अलग स्परों पर अलग-अलग गांव बसे हैं। सरायगढ़ के मुरली, नारायणपुर, पिपरा खुर्द आदि गांवों में विस्थापितों का पुनर्वास है। मरौना प्रखंड के जोबहा में कटावपीडि़त गांव में ही ऊंचे स्थानों पर शरण लिए हुए है। मानाटोला के लोग भी गांव के अगल-बगल शरण लिए हुए हैं। सिकरहट्टा मझारी लो बांध के किनारे सिसौनी के समीप सिसौनी छीट के लोग 2017 से बसे हुए हैं। कुछ लोगों ने जमीन खरीद भी ली है तो कुछ जैसे-तैसे घर बनाकर रह रहे हैं।