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    बिहार के इस शहर में मिला है भारत के नामकरण से जुड़ा सबसे पुराना साक्ष्य, पूर्व निदेशक ने बताई जानकारी

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 10:35 PM (IST)

    बक्सर के चौसा गढ़ में भारत के नामकरण से जुड़ा सबसे पुराना पुरातात्विक साक्ष्य मिला है। सीताराम उपाध्याय संग्रहालय में डॉ. उमेश चंद्र द्विवेदी ने बताया कि उत्खनन में तीन हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। चौसा की मृण्मूर्तियां अद्वितीय हैं और यहां टेराकोटा मंदिर के अवशेष भी मिले हैं। डॉ. द्विवेदी ने संपूर्ण उत्खनन का आग्रह किया है।

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    सीताराम उपाध्याय संग्रहालय में आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन करते अतिथिगण और संग्रहालयाध्यक्ष।

    जागरण संवाददाता, बक्सर। हमारे देश का नाम 'भारत' जिस महान चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर पड़ा, उससे जुड़ा सबसे पुराना और दुर्लभ पुरातात्विक साक्ष्य बिहार के बक्सर जिले में स्थित चौसा गढ़ से प्राप्त हुआ है।

    ये बातें स्थानीय सीताराम उपाध्याय संग्रहालय में विश्व विरासत सप्ताह के अंतर्गत आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में बिहार पुरातत्व के पूर्व निदेशक डॉ. उमेश चंद्र द्विवेदी ने कहीं।

    उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 से 2014 के बीच बिहार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के तत्कालीन पुरातत्व निदेशक के रूप में उन्होंने स्वयं चौसा गढ़ का व्यवस्थित उत्खनन कराया था। उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर स्पष्ट है कि लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व ही बक्सर क्षेत्र में उच्चकोटि की सभ्यता एवं संस्कृति विकसित हो चुकी थी।

    उन्होंने कहा कि चौसा की मृण्मूर्तियों (टेराकोटा) में लगभग 200 से अधिक प्रकार की केश-विन्यास शैलियां मिली हैं, जो विश्व कला इतिहास में अद्वितीय हैं और जिनकी प्रशंसा विश्व के कला इतिहासकार कर चुके हैं।

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    वर्ष 1931 में भी चौसा से शुंग काल से गुप्त काल तक की जैन कांस्य प्रतिमाएं तथा रामायण काल से संबंधित दुर्लभ मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई थीं, जो वर्तमान में पटना संग्रहालय में संरक्षित हैं। चौसा गढ़ के नवीन उत्खनन में देश के सबसे प्राचीन हिन्दू मंदिरों में से एक टेराकोटा मंदिर के अवशेष मिले हैं।

    इसके अलावा शिव-पार्वती विवाह, विश्वामित्र-मेनका-शकुन्तला फलक, कुम्भकर्ण वध, सीता हरण जैसी अत्यंत दुर्लभ एवं कलात्मक मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। गुप्तोत्तर काल की प्रस्तर प्रतिमाओं में ब्रह्मा, विष्णु, उमा-महेश्वर, सूर्य आदि देवताओं की मूर्तियां प्रमुख हैं।

    डॉ. द्विवेदी ने आग्रह किया कि चौसा गढ़ का शत-प्रतिशत क्षेत्रफल का उत्खनन कराया जाए तो सैकड़ों और दुर्लभ मृण्मूर्तियां प्राप्त हो सकती हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार डा. लक्ष्मीकांत मुकुल ने चौसा गढ़ के संपूर्ण उत्खनन, संरक्षण एवं विकास के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना प्रस्तुत की।

    उन्होंने कहा कि सरकार को चरणबद्ध तरीके से उत्खनन पूरा कराना चाहिए तथा प्राप्त पुरावशेषों का वैज्ञानिक प्रलेखन एवं प्रकाशन अनिवार्य रूप से होना चाहिए। कार्यक्रम के संचालक एवं संग्रहालय प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र ने बताया कि बक्सर की समृद्ध विरासत पर शोध करने अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों के शोधकर्ता आते रहे हैं।

    उन्होंने विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं बुद्धिजीवियों से बक्सर की विरासत पर गहन अनुसंधान करने की अपील की, ताकि विश्व पटल पर इस क्षेत्र की प्राचीनता और समृद्धि को प्रमाणित किया जा सके।

    संगोष्ठी में प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. जवाहर लाल वर्मा, प्रो. पंकज चौधरी, प्रो. वीरेंद्र कुमार, बसंत चौबे, वरिष्ठ पत्रकार राम मुरारी, शशांक शेखर, मुश्ताक बंटी, राजू ठाकुर, पुरुषोत्तम पाण्डेय, नरेंद्र प्रकाश दूबे, रौशनी सिंह, डा. नागेंद्र मिश्र आदि उपस्थित रहे।