Bihar Election: मौन मोड ऑन, आचार संहिता का डर... मतदाताओं को कैसे लुभा रहे नेता? समझिए सियासत
बक्सर में बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। उम्मीदवार वोटरों को लुभाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं, जिसमें वोट बैंक पर झपट्टा मारना और विरोधियों के गढ़ में सेंध लगाना शामिल है। वे व्यक्तिगत संपर्क और गुप्त प्रचार के माध्यम से मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। अब देखना यह है कि किसकी रणनीति सफल होती है।
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बक्सर में बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है।
जागरण संवाददाता, बक्सर। बिहार विधानसभा आम चुनाव में बक्सर की चार सीटों के लिए मतदान की तारीख (6 नवंबर) नजदीक आ रही है। चुनावी जंग अब अपने अंतिम और निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुकी है। बक्सर के राजनीतिक अखाड़े में घमासान अब साफ दिखाई देने लगा है। या यूं कहें कि बक्सर का राजनीतिक अखाड़ा अब पूरे शबाब पर पहुँच गया है। प्रचार वाहन, लाउडस्पीकर और प्रत्याशियों की अपीलें हर गली-मोहल्ले और चौराहे की पहचान बन गई हैं।
इसके साथ ही, प्रत्याशियों की चुनावी मैदान में उतरने की तैयारियाँ भी अपने अंतिम चरण में पहुँच चुकी हैं। वे किसी भी तरह बाजी पलटने की कोशिश में लगे हैं। इसके लिए कहीं किसी के आधार वोट पर "झपट्टा" मारने की कोशिश हो रही है, तो कहीं किसी के गढ़ में "सेंध" लगाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
इस हाई-वोल्टेज चुनावी मुकाबले में निर्णायक बढ़त हासिल करने के लिए, मुख्य रणनीति तटस्थ और पक्षपाती मतदाताओं को लुभाने की है, जिन्होंने अभी तक तय नहीं किया है कि वे किसे वोट देंगे। कई प्रत्याशी अब प्रमुख नेताओं की रैलियों पर कम और बूथ-स्तरीय सूक्ष्म प्रबंधन पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। अंतिम चरण में, उम्मीदवार व्यक्तिगत संपर्क और जातिगत व सामाजिक नेताओं के माध्यम से भावनात्मक अपील भी कर रहे हैं।
उनका लक्ष्य विपक्षी खेमे के कुछ कमज़ोर मतदाताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करना है, जो एक निर्णायक "झुकाव" साबित हो। इसके लिए, उनकी भावनाओं को उकसाया जा रहा है। जहाँ भी गणित उनके अनुकूल हो, वह रणनीति अपनाई जा रही है। यह स्थिति लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में देखी जा रही है। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में इस तकनीक का ज़्यादा और कुछ में कम इस्तेमाल होता है, लेकिन यह हर विधानसभा क्षेत्र में प्रचलित है।
अंतिम चरण में, उम्मीदवार अब प्रत्यक्ष प्रचार के बजाय मौन और गुप्त प्रचार पर ज़ोर दे रहे हैं, ताकि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन न हो और मतदाताओं तक गोपनीय रूप से पहुँचा जा सके। स्पष्ट है कि केवल अपना वोट प्रतिशत बढ़ाना ही जीत सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। प्रतिद्वंद्वी की ताकत को कम करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसी उद्देश्य से, विपक्ष के मज़बूत जातीय "किले" (आधार वोट बैंक) में सेंध लगाने की तैयारी चल रही है।
इस सफलता का सबसे महत्वपूर्ण हथियार वोटों का विभाजन है। उम्मीदवार छोटे, असंतुष्ट निर्दलीय या अन्य दलों के उम्मीदवारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, और कुछ मामलों में तो उन्हें आर्थिक रूप से भी मज़बूत कर रहे हैं, ताकि वे प्रतिद्वंद्वी के मूल जातीय वोट बैंक में सेंध लगा सकें।
इसी उद्देश्य से, असंतुष्ट विपक्षी दल के कार्यकर्ता और नेता अपने गढ़ों में यह संदेश फैला रहे हैं कि मुख्य उम्मीदवार को अंदरखाने समर्थन नहीं मिल रहा है। बक्सर में इस भीषण चुनाव प्रचार में, सभी उम्मीदवार अब "करो या मरो" की स्थिति में हैं। उनका पूरा ध्यान अपने लक्षित वोट बैंक को मतदान केंद्रों तक लाने पर है। हालाँकि, यह देखना बाकी है कि किस उम्मीदवार का "हमला" सफल होगा और कौन सा विफल।

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