Buxar News: वंचितों को न्याय और बच्चों को फ्री शिक्षा दिलाने में आगे आए संतोष भारती, कई लोगों को किया प्रेरित
बक्सर जिले में स्वच्छता कर्मियों के अधिकारों के लिए संतोष भारती लगातार संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने और गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे स्वच्छता कर्मचारियों को पीएफ और ईएसआईसी जैसी सुविधाओं से जोड़ने की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि शौचालयों की सफाई के लिए मशीनों का उपयोग पूरी तरह से होना चाहिए।

जागरण संवाददाता, बक्सर। जिले की झुग्गी बस्तियों, अनुसूचित जाति और जनजाति की बस्तियों में जाकर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात शुरू होती है, तो संतोष भारती का नाम जरूर आता है। उन्होंने उन तबकों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए हैं, जिनका पेशा सामाजिक और स्वास्थ्य दृष्टिकोण से निम्न माना जाता है।
वर्तमान में वह नगर निकायों और पंचायती राज संस्थानों में कार्यरत स्वच्छता कर्मचारियों के अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। संतोष ने जिले को मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे उनकी सामाजिक पहचान और मजबूत हुई।
इसके अलावा, वह गरीबी और मजबूरी के कारण स्कूल नहीं जा पाने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सक्रिय हैं। वे ऐसे बच्चों को पेंसिल, कॉपी और किताबें उपलब्ध कराकर स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते हैं।
संतोष का कहना है कि वह उन लोगों के बीच काम करते हैं, जिन्हें उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया है। उन्होंने शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा दिलाने के लिए अभियान चलाया है। वह स्वयं मुक्तिकामी आंदोलन से जुड़े रहे हैं और इसे आगे बढ़ाने के लिए कई लोगों को प्रेरित किया है।
उन्होंने दलित और बेसहारा महिलाओं के कल्याण के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया है। जिले की दो दर्जन महिलाओं को मैला ढोने की प्रथा से मुक्त कराकर उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने में मदद की।
स्वच्छता कर्मचारियों के हितों की लड़ाई
संतोष बताते हैं कि स्वच्छता कर्मचारी अत्यंत कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं, जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है और जीवन प्रत्याशा कम होती है। वे मानते हैं कि इन कर्मचारियों को भविष्य निधि (पीएफ) और कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआइसी) की योजनाओं से जोड़ा जाना आवश्यक है।
उनका आरोप है कि नगर निकायों में स्वच्छता कर्मचारियों के मानदेय से पीएफ के नाम पर कटौती तो होती है, लेकिन इस राशि का दुरुपयोग किया जाता है। इसके अलावा, जिले में ईएसआइसी अस्पताल की स्थापना की भी जरूरत है।
शौचालयों की सफाई को मशीनीकृत किए जाने के पक्षधर
संतोष के अनुसार, मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी इलाकों के पुराने मोहल्लों में शौचालय टंकियों की सफाई के लिए मशीनों का उपयोग अभी तक पूरी तरह लागू नहीं हो सका है।
हाल ही में डुमरांव नगर परिषद में इस कार्य के लिए दो छोटी गाड़ियां लाई गई हैं, और अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता है।
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