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    युवा नेताओं के टिकट सपने चकनाचूर, 2030 में ऑनलाइन टिकट की मांग

    Updated: Sun, 19 Oct 2025 06:15 PM (IST)

    बक्सर में चुनावी माहौल गरमाते ही युवा नेता सक्रिय हो गए। टिकट वितरण के बाद कई युवाओं के सपने टूट गए। वरिष्ठ नेताओं को टिकट मिलने से युवाओं में निराशा है। अब युवा नेता ऑनलाइन टिकट की मांग कर रहे हैं और अगली बार के लिए रणनीति बना रहे हैं। चाय की दुकानें रणनीति का केंद्र बन गई हैं।

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    युवा नेताओं के टिकट सपने चकनाचूर

    दिलीप कुमार ओझा, बक्सर। चुनावी मौसम आते ही जिले की चारों विधानसभाओं में युवा नेताओं की महत्वाकांक्षा ऐसे खिल उठी जैसे बरसात में कुकुरमुत्ते। हर नुक्कड़-चौराहे पर भावी विधायक की प्रजाति अचानक सक्रिय हो गई। कहीं मंदिरों में दर्शन, कहीं बेजुबानों को खाना, तो कहीं अपने ही पोस्टर पर फूल-माला चढ़ाकर खुद को ‘जनता का मसीहा’ घोषित किया जाने लगा।

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    सोशल मीडिया पर प्रतियोगिता चली—कौन ज़्यादा समर्पित, कौन ज़्यादा जनप्रिय। किसी ने ‘माननीय’ लिखकर प्रोफाइल चमकाया, तो किसी ने एआई से पोस्टर बनवाकर खुद को जनता के दिल में बसाया। घरों के बाहर बैनर टंग गए यहां रहते हैं भावी विधायक! हालांकि, जैसे ही टिकट वितरण की हवा चली, आचार संहिता ने उन बैनरों को कचरे में पहुंचा दिया और सपनों को यथार्थ की चट्टानों से टकरा दिया। 

    मोबाइल में टिकट बुकिंग ऐप खोज रहे

    भावी विधायक प्रत्याशियों ने मन मसोसकर कहा राजनीति की ये टिकट ट्रेन तेज़ है साहब! बिना टिकट वालों के लिए इसमें जगह नहीं। युवा नेता अब प्लेटफॉर्म पर बैठे हैं, मोबाइल में टिकट बुकिंग ऐप खोजते हुए। 

    हो सकता है 2030 में टिकट भी ऑनलाइन मिले और सपना सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित न रहे। ट्रेन गई, पर सपना अभी जिंदा है। इधर पार्टी के वरिष्ठों ने जब पुराने गणितीय तरीके से उम्मीदवार तय किए, तो टिकट फिर से उन नेताओं की झोली में जा गिरा, जिनका राजनीतिक अनुभव अब स्मृति शेष की श्रेणी में गिना जा सकता है। 

    ऑनलाइन टिकट की मांग

    युवा नेताओं की पूरी टिकटोलाजी ध्वस्त हो गई। जो अभी तक खुद को विधायक समझ रहे थे, वो अब खुद से पूछ रहे हैं कहां चूक हो गई? एक युवा नेता, जो अपनी गली में छोटे मोदी नाम से मशहूर थे, अब मोहल्ले में नाली की सफाई करते दिखे। मुस्कुराकर बोले, ये जनता से जुड़ने का एक और मौका है। 

    2030 में ऑनलाइन टिकट मिल गया तो हम भी अगली बार इंटर दबा ही देंगे। युवा नेताओं के लिए अब चाय की दुकानें ‘वार रूम’ बन चुकी हैं, और व्हाट्सएप ग्रुप पर रणनीति बनाई जा रही है इस बार नहीं तो अगली बार सही!