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    बिहार के बाद अब मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी मखाना की खेती का विस्तार, एक खास क्षेत्र में ही खेती की सलाह

    Updated: Wed, 27 Aug 2025 04:42 PM (IST)

    राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा की सहायता से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मखाना की खेती का विस्तार होगा। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को दरभंगा में प्रशिक्षण दिया गया। वैज्ञानिकों ने मखाना की खेती की संभावनाओं और जल संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला। उनका मानना है कि आने वाले वर्षों में मखाना की खेती और भी अधिक बढ़ेगी।

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    यह तस्वीर जागरण आर्काइव से ली गई है।

    जागरण संवाददाता, दरभंगा। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा की तकनीकी सहायता से अब मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में भी मखाना की खेती का विस्तार होगा। संस्थान में मध्यप्रदेश के उद्यानिकी व खाद्य प्रसंस्करण विभाग से प्रायोजित कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम और महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के 30 कृषकों और उद्यमियों को प्रशिक्षित किया गया।

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    केंद्र प्रभारी और कार्यक्रम आयोजक डा. आईएस सिंह ने नर्सरी प्रबंधन से लेकर बीज निकासी तक की आधुनिक तकनीकों के बारे में किसानों को जानकारी दी। उन्होंने संस्थान के अनुसंधानों और प्रसार प्रयासों पर भी प्रकाश डाला।

    डा. सिंह ने किसानों का प्रक्षेत्र भ्रमण कर मखाना उत्पादन से जुड़ी वास्तविक प्रक्रियाओं और तकनीकों का प्रत्यक्ष अनुभव कराया। वरिष्ठ विज्ञानी डा. मनोज कुमार ने दक्षिणी-पूर्वी मध्य प्रदेश के जिलों में अनुकूल मृदा और जलवायु के आधार पर मखाना खेती के विस्तार की संभावनाओं पर चर्चा की।

    कहा कि बिहार के बाहर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बंगाल, असम व अन्य राज्यों में मखाना की खेती तेजी से फैल रही है। अगले 10 वर्षों में मखाना की खेती वर्तमान 40,000 हेक्टेयर से बढ़कर लगभग चार लाख हेक्टेयर तक पहुंच सकती है।

    इससे भारत वैश्विक मांग को पूरा करने में अग्रणी बना रहेगा। डा. मनोज कुमार ने भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन से बचने पर जोर देते हुए कहा कि मखाना की खेती केवल उन्हीं क्षेत्रों में की जानी चाहिए, जहां सतही जल या प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध हों।

    वहीं, ई. आरके राउत ने मखाना के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन पर जानकारी दी। साथ ही मशीनों के संचालन का लाइव प्रदर्शन किया। कार्यक्रम के सह-आयोजक डॉ. वीके पडाला ने मंच संचालन किया। डॉ. एसबी तराते ने धन्यवाद ज्ञापन किया।