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    पहले साइकिल या बैलगाड़ी से करते थे प्रचार, भाषणों में मुहावरे व लोक कथाओं का था बोलबाला

    By Sadare Alam Edited By: Ajit kumar
    Updated: Sat, 11 Oct 2025 06:04 PM (IST)

    Bihar Assembly Election 2025: पुराने समय में नेता प्रचार के लिए साइकिल या बैलगाड़ी का उपयोग करते थे। उनके भाषणों में मुहावरे और लोक कथाएं शामिल होती थीं, जिससे वे जनता से आसानी से जुड़ पाते थे। यह तरीका उन्हें लोगों की समस्याओं को समझने और उनसे सीधा संवाद करने में मदद करता था। आधुनिक संचार साधनों के अभाव में, यह प्रचार का एक प्रभावी माध्यम था।

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    इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है। 

    संवाद सहयोगी, सिंहवाड़ा (दरभंगा)। Bihar Assembly Election 2025: समय के साथ चुनाव का अब सब कुछ बदल गया है। रंग व ढंग पहले जैसा नहीं रहा। प्रचार की शैली, नेताओं की भाषा और मतदाताओं का सोच में भी बदलाव दिख रहा है।

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    पहले के चुनाव में जनसंपर्क के साथ आपसी समन्वय व संवाद का उत्सव हुआ करता था। अब वह इंटरनेट मीडिया और रणनीति का मैदान बन गया है। जनसंपर्क अभियान को पहले प्रत्याशी ज्यादा तरजीह देते थे।

    गांव-गांव साइकिल या बैलगाड़ी से घूमते, लोगों से हाथ मिला अभिवादन कर एक दूसरे के सुख दुख का पूछकर खुशहाली की प्रार्थना करते। भाषणों में मुहावरों, किस्सों और लोक कथाओं को सुनाकर सहजता से अपनी बात रखते।

    अपने विपक्षी दल व उम्मीद वार की नीतियों की आलोचना जरूर होती थी, जिसमें मर्यादा और संयम झलकता था। व्यक्तिगत कटाक्ष नहीं, विचारों की प्रतिस्पर्धा होती थी।

    bihar election 2025

    सिंहवाड़ा प्रखंड के रामपुरा गांव के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक लक्ष्मेशवर चौबे बताते हैं कि पहले प्रत्याशी गांव-टोला तक पहुंचने के लिए पैदल या साइकिल से घंटों पैदल चलते थे।

    चुनाव प्रचार के गीत भोजपुरी में गाकर मतदाताओं को जागरूक कर माहौल उत्सव जैसा होता था। लोग राजनीतिक दल से अधिक व्यक्ति के चरित्र और सेवा भावना को महत्व देते थे।

    प्रतिद्वंदी दलों के प्रत्याशियों और समर्थकों में व्यक्तिगत कटुता कम होती थी। कार्यकर्ता,समर्थक और प्रत्याशी अपनी अपनी विचारधारा एवं दलीय निष्ठा के आधार पर अपनी बेहतर सोच व बातचीत से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का निरंतर प्रयास करते थे।

    जलवार टेंगुआ गांव के सीआइएसएफ से सेवानिवृत्त अवर निरीक्षक सत्यनारायण सिंह कहते हैं, पहले प्रचार में शामिल कार्यकर्ता एक-दूसरे से मिलते तो हाल-चाल पूछते, अब नारेबाजी और झड़प पर उतारू हो जाते हैं। आपसी कटुता चुनाव में बढ़ जाती है।

    पहले प्रचार के दौरान विरोधी दल के समर्थक भी एक साथ बैठकर चाय पी लेते थे, आज ऐसी सोच को राजनीति से जोड़कर दुर्लभ बना दिया गया है। प्रशासनिक स्तर पर फिर पहले की अपेक्षा कार्य प्रणाली में अलग बदलाव देखने को मिल रहा है।