पशुपालक कृपया ध्यान दें, ठंड बढ़ते ही दुधारू पशुओं में दूध घटने के पीछे क्या छिपा बड़ा खतरा?
ठंड शुरू होते ही कुशेश्वरस्थान में दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में कमी आई है, जिससे पशुपालक चिंतित हैं। टीकाकरण के कारण पशुओं में घातक बीमारी की शिकाय ...और पढ़ें

इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है।
संवाद सहयोगी, कुशेश्वस्थान (दरभंगा)। ठंड का मौसम शुरू होते ही दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में अचानक आई कमी से दोनों प्रखंड के पशुपालकों की चिंता बढ़ गई है। हालांकि राहत की बात यह है कि फिलहाल किसी भी गांव से पशुओं में किसी घातक बीमारी की शिकायत नहीं मिली है।
पशुपालकों का कहना है कि दूध की मात्रा घटने से उनकी आमदनी पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। पूर्व के वर्षों में ठंड शुरू होते ही क्षेत्र में पशुओं में तरह-तरह की बीमारियां फैल जाती थीं, जो कभी-कभी महामारी का रूप भी ले लेती थीं और बड़ी संख्या में पशुओं की मौत हो जाती थी।
लेकिन बीते कुछ वर्षों से सरकारी स्तर पर नियमित रूप से चलाए जा रहे टीकाकरण अभियानों का असर अब साफ दिख रहा है। पशु चिकित्सालय से मिली जानकारी के अनुसार जुलाई-अगस्त माह में दोनों प्रखंड में सघन पशु टीकाकरण अभियान चलाया गया था, जिससे इस बार ठंड शुरू होने के बावजूद किसी भी बड़ी बीमारी का खतरा नहीं देखा जा रहा है।
लेकिन ठंड के दस्तक देते ही दुधारू पशुओं के दूध कम होने से पशुपालकों के चिंता बढ़ गई है। दुधारू पशुओं के कम दूध होने से पशुपालकों के इसका सीधा असर उनके आमदनी पर पड़ रहा है। दूध की कमी को लेकर श्रीपुर गोबराही के बब्लू यादव, बरनिया के सीताराम राय, तेगच्छा के विनीत कुमार राय, उजुआ के गणेश राय तथा बलहा के राणा जवाहर सिंह सहित कई पशुपालकों ने बताया कि इन दिनों क्षेत्र में हरे चारे का घोर अभाव है।
हरा चारा नहीं मिलने के कारण मवेशी केवल सूखा चारा खाने से कतराते हैं। सूखे चारे के साथ सुधा दाना अथवा पका हुआ अनाज देने के बावजूद मवेशी भरपेट भोजन नहीं कर पा रहे हैं, जिससे दूध उत्पादन में गिरावट आ रही है। पशुपालकों का कहना है कि पशुओं पर इन दिनों हो रहे खर्च का भी भरपाई नहीं हो रहा है।
आमदनी का तो सवाल ही नहीं है। उल्लेखनीय है कि कुशेश्वरस्थान प्रखंड में दो तथा पूर्वी प्रखंड में एक प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सा केंद्र संचालित हैं। कुशेश्वरस्थान प्रखंड के सतीघाट एवं बेर में तथा पूर्वी प्रखंड के धोबलिया में पशु चिकित्सा केंद्र कार्यरत हैं।
इसके अलावा दोनों प्रखंड में एक-एक पशु चिकित्सा वाहन भी उपलब्ध है। तीनों केंद्रों पर चिकित्सकों के साथ सहायक कर्मियों की भी तैनाती है और सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सभी आवश्यक दवाएं उपलब्ध रहने से पशुपालकों को इससे काफी मदद मिल रही है।
दूध की मात्रा कम होना प्राकृतिक प्रक्रिया
सतीघाट पशु चिकित्सा केंद्र के चिकित्सक डा. आरएन रमण ने बताया कि तापमान में अचानक गिरावट आने से दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा कम होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुपालकों को सूखे चारे के साथ अनाज से बने पके खाद्य पदार्थ एवं सुधा दाना पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।
साथ ही ठंड से बचाव के लिए पशुओं को जूट का बोरा ओढ़ाने, धूप निकलने के बाद ही घर से बाहर निकालने तथा मवेशी घर में अलाव जलाने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि रात में सोने से पहले अलाव को पूरी तरह बुझाना जरूरी है ताकि किसी प्रकार की दुर्घटना न हो। इसके अलावा प्रत्येक ढाई से तीन माह पर पशुओं को कृमिनाशक दवा जरूर खिलानी चाहिए।

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