Darbhanga News : गेहूं की बेहतर पैदावार के लिए उन्नत किस्म के बीज का करें चयन
दरभंगा में गेहूं की बेहतर पैदावार के लिए कृषि विभाग किसानों को उन्नत किस्म के बीज चुनने की सलाह दे रहा है। अच्छे बीज से फसल की उपज बढ़ती है, जिससे किसानों को सीधा लाभ होता है। इसलिए, किसानों को नवीनतम और उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए ताकि वे अपनी पैदावार को अधिकतम कर सकें।

इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है।
संवाद सहयोगी, जाले (दरभंगा) । खेतों से धान की कटनी के बाद अब किसान खेतों की जुताई कर तैयार कर रहे हैं। रबी फसल मुख्य रूप से यहां गेहूं की खेती होती है। इसकी बोआई का समय अक्टूबर के अंत से दिसंबर के पहले सप्ताह तक है।
गेहूं बोने का सबसे अच्छा समय एक से 20 नवंबर के बीच होता है, जिसमें 10 से 20 नवंबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। अगर बोआई में देरी हो तो 25 नवंबर से 15 दिसंबर तक पिछात किस्मों की बोआई की जा सकती है, लेकिन इससे उपज कम हो सकती है। सही समय पर उन्नत किस्म के बीज की बोआई करने से गेहूं की अच्छी पैदावार मिलती है।
जाले कृषि अनुसंधान केंद्र के विज्ञानी डा. चंदन कुमार के अनुसार, गेहूं की फसल को विभिन्न चरणों में अलग तापमान की जरूरत होती है। अंकुरण के समय 20-25 डिग्री, फूल आने के समय 14-16 डिग्री और फसल पकने के समय लगभग 25 डिग्री सेटीग्रेड तापमान आदर्श माना जाता है। पकने के समय शुष्क वातावरण पैदावार और गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।
यदि किसान गेहूं की बोआई दिसंबर के बाद करते हैं तो फसल की वृद्धि प्रभावित होती है। ऐसे में फसल जल्दी गर्मी से प्रभावित हो जाती है और दानों का आकार छोटा रह जाता है। रोग और कीट का प्रकोप भी ज्यादा दिखाई देता है। देर से बोआई करने पर उत्पादन में 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।
जीरो टिलेज से करें गेहूं की बोआई
गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए एक से दूसरे कतार की दूरी 17.5-20 सेमी तथा बीज की गहराई चार-पांच सेमी होनी चाहिए। असिंचित क्षेत्र में पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी तक रखी जानी चाहिए।
सामान्य बोआई के लिए सौ किलोग्राम तथा देरी से बोआई के लिए 120 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग में लेना चाहिए। जीरो टिलेज से गेहूं की बोआई कर सकते हैं।
जीरो टिलेज (शून्य जुताई) से गेहूं की बोआई एक ऐसी तकनीक है जिसमें बिना खेत जोते, पिछली फसल के अवशेषों को खेत में छोड़कर, सीधे गेहूं के बीज और उर्वरक की बोआई की जाती है। इसके लिए जीरो सीड ड्रिल मशीन का उपयोग होता है जो पिछली फसल (जैसे धान) के अवशेषों में बिना जुताई के एक पतला चीरा बनाकर बीज और उर्वरक डालती है। यह तकनीक समय और लागत बचाती है और उत्पादन में वृद्धि करती है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।