Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Bihar Chunav: तेजस्वी यादव RJD के खिलाफ प्रचार करेंगे? बिहार चुनाव में इस सीट पर दिलचस्प होगी 'फाइट'

    Updated: Tue, 21 Oct 2025 02:20 PM (IST)

    बिहार में महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर मचे घमासान के चलते दरभंगा जिले के गौरा बौराम सीट पर अजीब स्थिति पैदा हो गई है। राजद नेता तेजस्वी यादव को अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करना पड़ेगा, क्योंकि राजद उम्मीदवार अफजल अली खान ने वीआईपी उम्मीदवार के लिए सीट छोड़ने से इनकार कर दिया है। अब तेजस्वी यादव को राजद के चुनाव चिह्न के खिलाफ प्रचार करना होगा।

    Hero Image

    तेजस्वी यादव अपनी ही पार्टी के खिलाफ करेंगे प्रचार

    डिजिटल डेस्क, दरभंगा। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के भीतर टिकट बंटवारे को लेकर असमंजस और खींचतान देखने को मिली थी। अब इसके बाद दरभंगा जिले की एक सीट पर अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई है, यहां महागठबंधन के 2 प्रत्याशी आमने-सामने हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दरअसल, इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल और विकासशील इंसान पार्टी दोनों के प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार करेंगे?

    यह सवाल इसलिए क्योंकि बीते दिनों राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने ऐन मौके पर यह सीट वीआईपी के खाते में दे दी। ऐसे में अब महागठबंधन के नेताओं को वीआईपी के कैंडिडेट का समर्थन करना होगा।

    गौड़ा बौराम सीट पर किसे बनाया प्रत्याशी?

    गौड़ा बौराम सीट पर महागठबंधन के सहयोगी दलों के प्रत्याशी एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में होंगे। दरअसल, सीटों के बंटवारे के दौरान महागठबंधन के सहयोगियों के बीच आम सहमति नहीं बन पाई और कुछ मतभेद नामांकन के अंतिम दिन तक सुलझ नहीं पाए थे। इसके चलते, बिहार की कई सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट' देखने को मिलेगी।

    दरभंगा की गौड़ा बौराम सीट पर इस कड़ी में हॉट बनी हुई है। सीट बंटवारे पर अंतिम मुहर लगने से पहले ही राजद ने अपने नेता अफजल अली खान को गौड़ा बौराम से मैदान में उतारने का फैसला कर लिया था। पार्टी नेतृत्व ने अफजल को अपना सिंबल देकर उम्मीदवार भी घोषित किया था।

    घर पहुंचने से पहले 4 घंटे में बदल गया 'खेल'

    इसके बाद, अफजल खुश होकर पटना से अपने चुनाव क्षेत्र के लिए रवाना हो गए थे। पटना से लगभग चार घंटे की यात्रा के दौरान ही पूरा 'खेल' बदल गया। अफजल चुनाव अभियान की शुरू करने घर पहुंचते, उससे पहले ही राजद और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के बीच इस सीट को लेकर समझौता हो गया।

    इस पर राजद प्रमुख लालू यादव ने भी अपनी सहमति दी कि गौड़ा बौराम सीट वीआईपी के खाते में जाएगी और महागठबंधन के सभी सहयोगी उसके उम्मीदवार संतोष सहनी का समर्थन करेंगे।

    राजद नेतृत्व ने अफ़ज़ल अली ख़ान से संपर्क किया और उनसे अपना चुनाव चिह्न वापस करने और चुनाव से हटने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। राजद नेता ने पार्टी उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया।

    राजद ने चुनाव आयोग से भी कही ये बात

    इधर, इस सबके बाद राजद नेतृत्व ने चुनाव अधिकारियों को भी इस बारे में सूचना दी। पार्टी ने कहा कि वह अफजल अली खान की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं करती है, लेकिन अधिकारियों ने जवाब दिया कि वे अफजल अली खान को चुनाव मैदान से नहीं हटा सकते, क्योंकि उन्होंने उचित दस्तावेजों के साथ अपना नामांकन दाखिल किया है।

    अपनी ही पार्टी का करना होगा विरोध

    अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर अफजल अली खान के नाम के बगल में राजद का चुनाव चिह्न लालटेन होगा और तेजस्वी यादव भी अफजल के खिलाफ प्रचार करते नजर आएंगे। यही वजह है कि इस सीट पर चुनावी 'फाइट' दिलचस्प हो गई है।

    ऐसे में इस सीट पर आने वाले चुनाव परिणाम पर महागठबंधन की नजर होगी। कारण कि राजद समेत महागठबंधन के सहयोगी दलों को VIP के उम्मीदवार संतोष सहनी का समर्थन करना होगा।

    राजस्थान में हो चुका है खेला

    बता दें कि इससे पहले लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा ही एक मामला राजस्थान के बांसवाड़ा में सामने आया था। वहां कांग्रेस ने शुरुआत में अरविंद डामोर को अपना उम्मीदवार बनाया था।

    बाद में उसने भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार राजकुमार रोत का समर्थन करने का फैसला किया था और डामोर से अपना चुनाव चिह्न वापस करने को कहा था।

    हालांकि, चुनाव चिह्न के साथ डामोर कुछ समय के लिए गायब हो गए और समय सीमा खत्म होने के बाद लौटे। वह अपना नामाकंन भी दाखिल कर चुके थे।

    ऐसे में पार्टी नेताओं को उनके खिलाफ प्रचार करना पड़ा। अंत में रोत चुनाव भले ही जीत गए, लेकिन इसके बावजूद डामोर ने करीब 60000 से ज्यादा वोट हासलि कर लिए थे।

    खैर, बात करें बिहार की तो यहां भी 2020 के चुनाव में गौड़ा बौराम सीट वीआईपी के स्वर्ण सिंह के खाते में गई थी, लेकिन बाद में सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे। 2010 और 2015 के चुनावों में जदयू ने यह सीट जीती थी।