Bihar Chunav: जातीय समीकरण और विकास का काकटेल ही तय करेगा रक्सौल का भविष्य, मिल रही कड़ी टक्कर
रक्सौल विधानसभा में चुनावी माहौल गरमा गया है। जाति और विकास के समीकरणों के बीच, राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं। एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार अपनी-अपनी रणनीति से वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दे छाए हुए हैं, और जनता विकास की उम्मीद लगाए बैठी है।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई फाइल फोटो। (जागरण)
संजय उपाध्याय, रक्सौल। यहां हल्की वर्षा में मिट्टी गीली हो जाती है। मिट्टी धूप में इतनी सख्त हो जाती है कि इसके एक टुकड़े से किसी को चोट लग जाए तो असह्य पीड़ा होती है। यहां शुक्रवार को 18.4 मिली मीटर वर्षा हुई।
चुनाव के वक्त में इतनी वर्षा विकास की पोल खोलने लगती तो राजनीति किसी के गीली मिट्टी की तरह मुलायम तो बारिश के बाद सख्त ढेला (मिट्टी का सूखा टुकड़ा) की तरह हो जाती है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित पूर्वी चंपारण की रक्सौल विधानसभा में इस बार चुनावी राजनीति गीली लकड़ी पर सुलगती आग की आंच की तरह ही है।
इस बार के चुनाव में जाति व विकास का काकटेल साफ है। यहां की चमचमाती सड़कें विकास की कहानी हैं तो मलीन सड़कें उपेक्षा का दर्द बता जाती हैं। रक्सौल व आदापुर प्रखंड को मिलाकर बनी इस विधानसभा से राजनीतिक दलों ने जाति व अनुभव के आधार पर प्रत्याशी उतारे हैं, सो लड़ाई सख्त है।
एनडीए से यहां भाजपा के प्रत्याशी हैं प्रमोद कुमार सिन्हा। महागठबंधन से कांग्रेस ने यहां जदयू के पूर्व विधायक श्यामबिहारी प्रसाद को चुनावी मैदान में उतारा है। जन सुराज पार्टी ने जदयू के पूर्व जिलाध्यक्ष कपिलदेव प्रसाद उर्फ भुवन पटेल को रणभूमि में उतारा है।
भाजपा व जसुपा के प्रत्याशी रक्सौल प्रखंड तो कांग्रेस के प्रत्याशी आदापुर प्रखंड के निवासी हैं। यानी बाहरी का नारा भी यहां काम नहीं कर रहा है। जातीय व विकास वाली राजनीतिक की बात हवा में हैं। लोग बाग अपनी राय खुलकर रखते हैं। कहते हैं- इस बार जाति व विकास का पैमाना है। कारण यह कि प्रत्याशियों की बात करें तो कोयरी, कलवार व कुर्मी के बीच जंग है, लेकिन इस विधानसभा में सभी जातियों का प्रतिनिधित्व है।
ऐसे में जाति व विकास का काकटेल यहां की लड़ाई की दिशा तय कर देगा। चिकनी के संजय सिंह कहते हैं, ‘शिक्षा, रोजगार, पलायन मुद्दा है। जसुपा ने इसी बात नारा दिया है। हम विचार कर रहे। अभी चुनाव में वक्त है, लेकिन बात साफ है- मुद्दा वही है।’
लछमनवा के सोनेलाल कुमार कहते हैं- लोकतंत्र में सबके अधिकार है। कुछ भी बपौती ना होला। हमनी त वोट देवेनी विकास ला, बाकि होला का...! त अबकी बात साफ बा जे मन में बा उहे होई। सभे त लूटते बा। भ्रष्टाचार देख ली। नतीजा समझ ली।’
जोकियारी निवासी मनीष कुमार की बात, ‘पहले जरा इ डायलाग समझिए ... पंचायत के लोग दलाल हैं। ये नेताजी के बोल हैं। इस बार फैसला नाप तौल कर हमारा इलाका करेगा। काम जो हो रहा सब सामने है। जुबान पर भी लगाम नहीं। ऐसी राजनीति कैसे चलेगी।’
गठबंधनों के आधार वोट में घुली सभी जातियों के रंग में सेंधमारी की कोशिश
इस बार के चुनाव में गठबंधनों के आधार वोट में मिली सभी जातियों के रंग में भी सेंधमारी की कोशिश है। राजनीति के जानकार बताते हैं- यहां ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ, यादव, मुस्लिम, कुर्मी, कोइरी, तेली, कुशवाहा, लोहार, कुम्हार, धानुक, धोबी, हजाम, कहार, मल्लाह, तुरहा, अुसूचित जाति-जनजाति, धानुक, सूरी, हलवाई, सोनार, कलवार, बरनवाल, सूरीवार, मारवाड़ी, कानू, कोइरी, तेली व कुर्मी समेत अन्य जातियों के लोग निवास करते हैं।
महागठबंधन के प्रत्याशी के साथ राजद के एमवाई समीकरण के साथ कांग्रेस, वीआइपी व वाम दलों के वोट समीकरण हैं। ऊपर से वैश्य होने व जदयू में काम करने के कारण ये वोट की सेंधमारी की कोशिश कर सकते हैं। इसी तरह जसुपा के प्रत्याशी के साथ उनके खुद का काम व स्थानीय स्तर पर किए गए संगठन के काम की शक्ति काम कर रही।
जदयू के पूर्व जिलाध्यक्ष होने के कारण इनका भी प्रभाव अपने साथियों पर है, सो ये भी वोटों की सेंधमारी कर सकते हैं। सभी जातियों के समीकरणों को साधते हुए एनडीए के प्रत्याशी विकास के मुद्दों को लेकर सबके बीच है। वोट बिखराव को रोकना एनडीए के लिए चुनौती है।
जितना समझ रहे, उतनी आसान ये जंग नहीं
वर्तमान की बात और भविष्य की चिंता लिए लोग कहते हैं- एक बात समझ लीजिए। इस बार जितनी आसान समझ रहे, उतनी आसान जंग नहीं।
इतिहास उठाकर देख लीजिए सबके भविष्य को तय करनेवाला प्रतिनिधित्व सभी जातियां मिलकर तय करती हैं, सो इस बार भी अंतिम मुहर विकास की भूख से मुक्ति के लिए ही लगनी है। इन सबके बीच नेतृत्व की चिंता भी लोगों को है। चर्चा के क्रम में इसकी भी बात होती रहती है।

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