Bihar Election: जंगल-पहाड़ भी नहीं रोक सके मतदाताओं के हौसलें, इस गांव के वोटर्स 5 किमी पैदल चलकर करते हैं मतदान
बिहार के एक गाँव में, दुर्गम रास्तों के बावजूद मतदाता हर चुनाव में 5 किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करते हैं। जंगल और पहाड़ों से घिरे होने के कारण भी उनका हौसला नहीं डिगा है। यह घटना बिहार के लोगों की लोकतंत्र के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है। Bihar Election में उनका यह जज्बा सराहनीय है।

पांच किलोमीटर पैदल चलकर करते हैं मतदान। फोटो जागरण
संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। झारखंड की सीमा से सटे फतेहपुर प्रखंड के नौडीहा झुरांग पंचायत के रेंगैनी गांव के 400 मतदाताओं में लोकतंत्र के प्रति अटूट आस्था देखने को मिलती है।
घने जंगलों और ऊंचे-नीचे पहाड़ों के बीच बसे इस सीमावर्ती गांव के मतदाताओं को मतदान करने के लिए आज भी लगभग पांच किलोमीटर पैदल चलकर चोढ़ी गांव स्थित मतदान केंद्र तक पहुंचना पड़ता है। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद ग्रामीणों का उत्साह हर चुनाव में देखने लायक होता है।
रेंगैनी गांव पहुंचने का रास्ता संकरा और ऊबड़-खाबड़ है। बरसात के दिनों में यह मार्ग और भी खतरनाक हो जाता है। इसके बावजूद चुनाव के दिन सुबह-सुबह ग्रामीण अपने कंधे पर लाठी, झोला या बच्चे को गोद में लेकर मतदान केंद्र की ओर निकल पड़ते हैं। गांव की महिलाएं और बुजुर्ग भी इस यात्रा में पीछे नहीं रहते। वे मानते हैं कि “मतदान हमारा अधिकार ही नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा का माध्यम है।”
गांव के निवासी सुनील कुमार बताते हैं कि यह परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। पहले मतदान केंद्र और भी दूर था, लेकिन बाद में प्रशासन ने इसे कुछ नजदीक किया।
फिर भी ग्रामीणों को पांच किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि अगर मतदान केंद्र गांव के समीप स्थापित किया जाए, तो वृद्ध, दिव्यांग और महिलाओं को काफी सुविधा होगी।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को सीमावर्ती गांवों की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए मतदान केंद्रों की पुनर्समीक्षा करनी चाहिए। इससे न केवल मतदान प्रतिशत बढ़ेगा, बल्कि लोकतंत्र की भागीदारी और मजबूत होगी।
बावजूद इसके, रेंगैनी गांव के लोगों का उत्साह किसी से कम नहीं है। हर चुनाव में यहां के मतदाता मतदान प्रतिशत बढ़ाने में मिसाल कायम करते हैं। कठिन रास्तों और सीमित सुविधाओं के बीच भी वे मतदान को पर्व की तरह मनाते हैं।
यह गांव आज भी साबित कर रहा है कि जब नीयत मजबूत हो, तो पहाड़ और जंगल भी लोकतंत्र की राह में रुकावट नहीं बन सकते।

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