गया: सीयूएसबी के सहायक प्राध्यापक 22 भाषाओं में करेंगे शोध, जानिए कौन-कौन सी भाषाओं पर होगा शोध
सीयूएसबी के मॉस कम्युनिकेशन एवं मीडिया विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० सुजीत कुमार ने देश की आधिकारिक 22 क्षेत्रीय भाषाओं पर शोध करने का निर्णय लिया है। ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, टिकारी: भारत देश की विविधता की सुंदरता पर क्षेत्रीय भाषाएँ चार चाँद लगाती हैं। ऐसा माना जाता है कि हर दो कोस की दूरी पर भाषा थोड़ी बदल जाती है। देश की इसी विविधता को और नजदीक से जानने और समझने के लिए दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के मॉस कम्युनिकेशन एवं मीडिया विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ० सुजीत कुमार ने देश की आधिकारिक 22 क्षेत्रीय भाषाओं पर शोध करने का निर्णय लिया है। डॉ० सुजीत कुमार के इस अनूठे शोध परियोजना को इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (आईसीएसएसआर) ने सराहा और उन्हें अनुदान भी स्वीकृत कर दिया है।
22 क्षेत्रीय भाषाओं पर डॉ कुमार शोध करेंगे
सीयूएसबी को डॉ० सुजीत कुमार के माध्यम से इस विशेष शोध परियोजना की प्राप्ति हुई। जिन 22 क्षेत्रीय भाषाओं पर डॉ कुमार शोध करेंगे उनमें असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू , बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी शामिल हैं।
कुलपति ने दी बधाई
डॉ० कुमार इस परियोजना में बतौर मुख्य परियोजना निदेशक और विभाग के ही छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर आतिश पराशर सह परियोजना निदेशक के रूप में कार्य करेंगे। इस उपलब्धि पर कुलपति प्रो० कामेश्वर नाथ सिंह ने डॉ० कुमार एवं प्रोफेसर पराशर को बधाई दी है।
डिजिटल कंटेंट की उपलब्धता पर करेंगे अध्ययन
परियोजना के बारे में डॉ० कुमार ने बताया कि आईसीएसएसआर ने उनके इस अध्ययन को मेजर प्रोजेक्ट के रूप में चुना है। जिसमें 22 क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल कंटेंट की उपलब्धता पर अध्ययन करेंगे। आज के 'डिजिटल इंडिया' के सन्दर्भ में यह अध्ययन बेहद ही प्रासंगिक है। वहीं प्रोफेसर पराशर ने बताया कि आज के समय में डिजिटल माध्यम में एक तरह के अंग्रेजी भाषा का एकाधिपत्य है। जिससे क्षेत्रीय भाषा के लोग जरूरी सूचनाओं से रूबरू नहीं हो पाते।
जनोपयोगी भी है यह अध्ययन
इससे सामग्री आधारित डिजिटल डिवाइड का भी जन्म होगा। ऐसे में यह अध्ययन न सिर्फ सरकार के लिए जरूरी जानकारी इकट्ठी करेगा बल्कि यह जनोपयोगी भी है। इस अध्ययन को 24 महीने में पूरा कर प्रस्तुत करना होगा एवं अध्ययन का सारा वित्तीय भार आईसीएसएसआर के द्वारा उठाया जाएगा।

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