300 दुकानों से 3 माह में 5,000 परिवारों को रोजगार, तिलकुट उद्योग बना गयाजी के लोगों का आर्थिक आधार
गयाजी का तिलकुट उद्योग, जो लगभग 150 वर्ष पुराना है, आज जिले की पहचान बन चुका है। यह हजारों परिवारों को रोजगार देता है, लेकिन जीआई टैग न मिलने से इसकी पहचान सीमित है। गयाजी में 250 से अधिक दुकानें हैं और मकर संक्रांति पर इसकी बिक्री चरम पर होती है। यह पूरी तरह से हाथ से बनाया जाता है और ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों में भी पसंद किया जाता है।

तिलकुट उद्योग
संजय कुमार, गयाजी। गयाजी की गलियों में इन दिनों तिलकुट की सोंधी खुशबू लोगों को अपनी ओर खींच रही है। करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना यह उद्योग आज लघु व कुटीर उद्योग के रूप में जिले की पहचान बन चुका है।
तिलकुट ने सिर्फ स्वाद के लिए मशहूर है। बल्कि हजारों परिवारों के लिए रोजगार का बड़ा आधार भी है। इसके बावजूद यह पारंपरिक उद्योग अब तक जीआई टैग से वंचित है जो इसकी असली पहचान और व्यापक बाजार तक पहुंच सुनिश्चित कर सकता था।
5 हजार से अधिक परिवार जुड़े
जिले में पांच हजार से अधिक परिवार तिलकुट उद्योग से जुड़े हुए है। सिर्फ गयाजी शहर में 250 तिलकुट की दुकानें संचालित हो रही है। इससे मुख्यरूप से शहर के रमना रोड, टिकारी रोड, स्टेशन रोड प्रमुख स्थान है।
इसके अलावा मोहनपुर प्रखंड के डांगरा में 20 एवं टिकारी 15 से 18 दुकानों पर तिलकुट की बिक्री तेजी से हो रही है। तिलकुट की चार तीन माह खूब होती है। 20 नवंबर से लेकर 20 फरवरी तक तिलकुट का प्रमुख सीजन माना जाता है। जबकि 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर इसकी बिक्री चरम पर पहुंच जाती है।
इस सीजन में रोजाना 50 क्विंटल तिलकुट की खपत होती है जो इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। तिलकुट पूरी तरह से हाथ से तैयार किया जाता है। इसमें मशीन का उपयोग नहीं किया जाता है। इसी कारण तिलकुट पूरी तरह से लोकल प्रोडक्ट माना जाता है।
तिल को कड़ाही में भूजना, गुड़ या चीनी की चाशनी में सही तापमान पर मिलना और फिर मथौड़ी से कूटकर गोल आकर देना हर चरण में कारीगरी और कौशल की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि तिलकुट का स्वाद वर्षो से एक जैसा बना हुआ है।
जीआई टैग का मलाल
तिलकुट उद्योग जीआई टैग से वंचित है। इसके पहचान और व्यापक बाजार तक पहुंच सुनिश्चित नहीं कर सकता है। तिलकुट निर्माण एवं विक्रेता संघ के अध्यक्ष लालजी प्रसाद बताते है कि तिलकुट उद्योग की विशालता के बावजूद आज भी जीआई टैग से वंचित है।
जबकि जिले मगही पान को जीआई टैग मिल चुका है। वर्ष 2017 से निरंतर प्रयासों के बाद भी इसे भौगोलिक पहचान नहीं मिल पाई है।
शहर टिकारी रोड स्थित तिलकुट विक्रेता धीरेंद्र केशरी इसे सबसे बड़ी कमी मानते है। क्योंकि जीआई टैग मिलने से तिलकुट को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में और बड़ी पहचान मिल सकती है। जिससे अधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिल सकता है।
गयाजी की तिलकुट देश में ही नहीं विदेश में पहली पसंद
गयाजी का तिलकुट देश ही नहीं विदेशों में भी पहली पसंद माना जाता है। प्रमुख तिलकुट विक्रेता प्रमोद भदानी बताते है कि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, सहुदी अरब और नेपाल तक इसके नियमित ग्राहक है।
वहीं नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में भी गयाजी का तिलकुट खूब पसंद किया जा रहा है। जहां लोग इसकी पैकेजिंग और लाजवाब स्वाद की सराहना कर रहे है। पैकेजिंग भी अब पहले की तुलना में आकर्षक और मानक के अनुरूप की जा रही है। ताकि देश-विदेश में भेजने में कोई दिक्कत न हो।

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