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    ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा सरकारी बीज, किसान बोले- 'सरकारी बीज वितरण योजना का कोई फायदा नहीं'

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 10:46 PM (IST)

    किसानों का कहना है कि सरकारी बीज वितरण योजना उनके लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। उनका मानना है कि इस योजना से उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा है। किसानों को उम्मीद थी कि यह योजना उनकी कृषि संबंधी जरूरतों को पूरा करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।

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    किसानों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा सरकारी बीज। फोटो जागरण

    जागरण संवाददाता, अरवल। जिले में रबी फसल के लिए सरकार किसानों को पर्याप्त बीज नहीं उपलब्ध करा रही है जिसके कारण सरकारी बीज वितरण योजना किसानों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है।

    कृषि विभाग के अनुसार ,मांग के 10 प्रतिशत बीज ही विभाग द्वारा आवंटित किया जाता है, 90 प्रतिशत बीज किसानों को निजी दुकान से खरीद कर बुआई करना पड़ता है। जिले में सरकारी बीज और खाद की 100 दुकान हैं।

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    50 हजार हेक्टेयर में रबी फसल की खेती होती है। जिसमें 17 हजार हेक्टेयर में गेहूं बाकी में चना, मसूर,मटर,सरसों के साथ अन्य दलहन और तिलहन फसलों की खेती किसान करते हैं।

    किसान प्रमोद सिंह, नरसिंह शर्मा, कमलेश शर्मा, महेंद्र सिंह ने बताया कि सरकारी बीज वितरण योजना से कोई फायदा नहीं है। पर्याप्त बीज नहीं मिलने से लेने भी नहीं जाते हैं।

    बीज सस्ता जरूर मिलता है लेकिन गुणवत्ता का भारी अभाव रहता है जिससे विश्वास नहीं होता है। जिसके कारण निजी दुकान से खरीद कर ही बुआई करते हैं। सरकारी गेहूं के बीज जहां 1020 में 40 किलो मिलता है। वहीं निजी बीज दुकान पर 45 रुपए प्रति किलो से लेकर 85 प्रति किलोग्राम तक गुणवत्ता अनुसार बीज उपलब्ध है।

    निजी दुकान पर चना का बीज 80 रूपये प्रति किलोग्राम, मसूर का बीज 100 रुपए प्रति किलोग्राम, जई का बीज पांच हजार प्रति क्विंटल, सरसों का बीज 200 से 300 रुपए प्रति किलो और मटर के बीज 60 से 70 रूपये किलो बिक रहा है।सरकारी बीज निजी दुकान से आधे से भी कम कीमत पर मिलते हैं।

    क्या कहते हैं पदाधिकारी

    जिला कृषि पदाधिकारी रंजीत कुमार झा ने बताया कि बीज विभाग से मांग के 10 प्रतिशत आवंटित होता है। जिसमे अधिक से अधिक किसानों को वितरण करने का लक्ष्य रहता है।

    90 प्रतिशत बीज किसान को खरीदकर बुवाई करना पड़ता है। अभी धान की कटनी चालू है। गेहूं की बुवाई इक्का दुक्का किसान रहे हैं। पर्याप्त मात्रा में यूरिया और डीएपी उपलब्ध है।