खगड़िया में ठंड में जैसे रूक गई है कटाव पीड़ितों की रातें, टूटी झोपड़ी में सीधे शरीर पर चोट कर रही सर्द हवा
खगड़िया में कोसी नदी के कटाव से विस्थापित लोग कड़ाके की ठंड में बांधों के किनारे झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। बार-बार घर उजड़ने से परेशान ये परिवा ...और पढ़ें
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भू-पतियों से जमीन लीज पर लेकर रह रहे हैं विस्थापित परिवार। (जागरण)
भवेश, खगड़िया। कड़ाके की ठंड में खगड़िया के विस्थापितों की रातें जैसे रुक ही गई हों। कोसी के कटाव से उजड़े लोग बांध-तटबंधों के किनारे झोपड़ियां टांगकर जी रहे हैं। पूस की रात में चलने वाली तेज पछिया, जिसे वे “जल बियारी” कहते हैं, झोपड़ी चीरकर सीधा शरीर तक पहुंचती है।
डुमरी की बचिया देवी बताती हैं कि छह बार घर उजड़ चुका है और टूटी झोपड़ी में रात काटना मुश्किल हो जाता है। उषा, संजुला और रीता कहती हैं कि पर्चा तो मिला है, पर जमीन नहीं।
ये कहती हैं- टूटी झोपड़ी में भगवान का नाम लेकर रात बीता रहे हैं। इनमें हताशा और निराशा के भाव घर कर गए हैं। 55 वर्षीय उषा देवी कहती हैं- जीते जी तो नहीं, मरने के बाद ही इस समस्या से लगता है कि छुटकारा मिलेगा!
मालूम हो कि बार-बार के कोसी कटाव से विस्थापित परिवारों के गांव-टोले डुमरी, गांधीनगर, तिरासी, आनंदी सिंह बासा, कामास्थान, पचाठ- मुनि टोला, कुंजहारा आदि में बसे हुए हैं। कई परिवार भू-पतियों से कट्ठा-दो कट्ठा जमीन लीज लेकर रह रहे हैं। ये परिवार पूरी तरह से भू-पतियों की दया पर निर्भर हैं।
इतमादी पंचायत स्थित गांधीनगर में हर वर्ष कोसी कटाव करती है। इतमादी के पंचायत समिति सदस्य व गांधीनगर निवासी मुनेश शर्मा कहते हैं- इस वर्ष भी लगभग 35 परिवारों को विस्थापित होना पड़ा।
बीते वर्ष भी लगभग 40 परिवार विस्थापित हुए। अधिकांश विस्थापित परिवार भू-पतियों से जमीन लीज पर लेकर झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं।
विस्थापितों को बसाने के लिए लगातार बासगीत के पर्चे दिए जा रहे हैं। आवश्यकता पड़ने पर कंबल और अलाव का इंतजाम किया जाएगा।
अमित कुमार, सीओ बेलदौर।

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