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    Galgalia-Araria Rail Line: गलगलिया-अररिया रेलखंड के विद्युतीकरण का कार्य पूरा, जल्द दौड़ेंगी इलेक्ट्रिक ट्रेनें

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 03:06 PM (IST)

    किशनगंज के गलगलिया-अररिया रेलखंड पर विद्युतीकरण का कार्य पूरा हो गया है, जिससे अब इलेक्ट्रिक इंजन चलने के लिए तैयार हैं। एनएफ रेलवे के इंजीनियरों ने सुरक्षा और तकनीकी मानकों का निरीक्षण किया। अररिया से गलगलिया तक विद्युतीकृत कॉरिडोर बनने से रेल कनेक्टिविटी बेहतर होगी, यात्रा समय कम होगा और पर्यावरण को भी लाभ होगा।

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    गलगलिया-अररिया रेलखंड में की गई विद्युतीकरण। (जागरण)

    संवाद सहयोगी, किशनगंज। गलगलिया-अररिया रेलखंड में विद्युतीकरण कार्य पूरा होने के बाद जल्द इस रेलखंड में इलेक्ट्रिक इंजन दौड़ेगी।

    एनएफ रेलवे के प्रधान मुख्य विद्युत इंजीनियर ने 30 अक्टूबर को कटिहार मंडल के अधीन अररिया और अररिया कोर्ट से बीबीगंज सेक्शन में रेलवे बिजलीकरण कार्यों के कमीशनिंग के लिए निरीक्षण किया।

    निरीक्ष्ण 67.186 रूट किलोमीटर (आरकेएम) और 82.698 ट्रैक किलोमीटर (टीकेएम) होने के बाद इस रेलखंड में इलेक्ट्रिक ट्रेन सेवाओं को चालू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

    निरीक्षण के दौरान, सभी सुरक्षा मापदंडों और तकनीकी मानकों की सावधानीपूर्वक जांच की गई। जिसमें ओवरहेड इक्विपमेंट सेक्शनिंग, बांडिंग और अर्थिंग सिस्टम का कार्यान्वयन शामिल था। ओएचई को 25 केवी पर सफलतापूर्वक सक्रिय कर 100 किमी प्रति घंटे की अधिकतम सेक्शनल स्पीड पर करंट कलेक्शन ट्रायल सुचारू रूप से किया गया।

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    सफल ट्रायल ने इस सेक्शन में इलेक्ट्रिक ट्रेन का परिचालन शुरू करने के लिए सिस्टम की पूर्ण तत्परता की प्रमाणित किया। यह उपलब्धि जून 2025 में कटिहार मंडल के अधीन ठाकुरगंज – बीबीगंज के पूर्ण विद्युतीकृत होने के बाद हासिल हुई। जिसमें 41.43 रूट किलोमीटर (आरकेएम) और 48.13 ट्रैक किलोमीटर (टीकेएम) शामिल हैं।

    दोनों सेक्शनों के कमीशनिंग के साथ, अब अररिया से गलगलिया तक एक सतत विद्युतीकृत कॉरिडोर स्थापित हो गया है। यह उपलब्धि उत्तर बिहार और आसपास के क्षेत्रों में रेल कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के विकास को मजबूत करती है।

    नव विद्युतीकृत सेक्शनों से कई महत्वपूर्ण लाभ होंगे, जिनमें सुगम और तेज ट्रेन परिचालन, बेहतर ऊर्जा दक्षता, कम यात्रा समय और कम परिचालन लागत शामिल हैं।

    यह डीजल ट्रैक्शन पर निर्भरता को भी कम करेगा और भारतीय रेलवे के 2030 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य में योगदान देगा, जिससे पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की आधुनिक, मजबूत और पर्यावरण-अनुकूल रेल परिवहन के प्रति प्रतिबद्धता और अधिक मजबूत होगी।