बिहारीगंज में RJD देगी तगड़ी चुनौती, क्या ढह जाएगा जदयू का अभेद्य किला? रोचक हुआ समीकरण
2009 में परिसीमन के बाद उदाकिशुनगंज, बिहारीगंज बना। जदयू के निरंजन मेहता ने 2015 और 2020 में जीत हासिल की। राजद ने रेणु कुमारी को मैदान में उतारा है, जो पहले भी विधायक रह चुकी हैं। निरंजन मेहता कैडर वोट पर निर्भर हैं, जबकि रेणु कुमारी पुराने संबंधों और एंटी इनकंबेंसी को भुनाने की कोशिश कर रही हैं।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई फाइल फोटो। (जागरण)
अमितेष, मधेपुरा। 2009 में परिसीमन के बाद उदाकिशुनगंज विधानसभा क्षेत्र का नाम बदलकर बिहारीगंज विधानसभा क्षेत्र कर दिया गया। साथ ही सीमांकन में भी बदलाव हुआ। जिसका राजनीतिक असर भी हुआ और इसका लाभ राजग खासकर जदयू को मिलने लगा।
परिसीमन बाद 2010 के चुनाव में जदयू से रेणु कुमारी विधायक चुनी गईं। उन्होंने राजद के कद्दावर रहे मंत्री रवींद्र चरण यादव को पटखनी दी थी। इसके बाद जदयू के निरंजन मेहता 2015 और 2020 के चुनाव में जीत का परचम लहराने में सफल रहे।
लगातार मिली हार के बाद अब राजद ने रेणु कुमारी को ही प्रत्याशी बनाकर राजग के कैडर वोट में सेंध लगाने की कोशिश की है।
निरंजन को कैडर व रेणु को पुराने संबंधों व एंटी इनकंबेंसी की है आस
जदयू और राजद के प्रत्याशी एक ही जाति से हैं। निरंजन मेहता राजग के कैडर वोटरों पर भरोसा है। वे लगातार दो बार से इसी आसरे जीत दर्ज कर रहे हैं। हालांकि, 2015 और 2020 के चुनाव में परिस्थितियां अलग-अलग रही। 2015 में निरंजन मेहता महागठबंधन के उम्मीदार थे।
उस वक्त वे जदयू के प्रत्याशी भले ही थे लेकिन राजद और कांग्रेस का समर्थन उनके साथ रहा। 2020 में जदयू-भाजपा साथ रही तो निरंजन मेहता का राह आसान बना। हालांकि लोजपा(रा.) से रेणु कुमारी के पति विजय कुमार सिंह जरूर मैदान थे। लगभग नौ हजार वोट लाने में सफल रहे थे।
इस बार जदयू को लोजपा का भी समर्थन प्राप्त है। इधर, राजद की रेणु कुमारी इलाके में अपने पुराने संबंधों के सहारे राजग के वोटरों को लुभाने की कोशिश तेज कर चुकी हैं। वे फरवरी 2005 व नवंबर 2005 में उदाकिशुनगंज से और 2010 में बिहारीगंज से जदयू के टिकट पर विधायक चुनी गईं थीं।
2005 से 2015 तक 10 साल के कार्यकाल के दौरान बनाए पुराने कार्यकर्ताओं व पुराने संबंधों को साधने में जुटी हैं। इन्हें जदयू विधायक के एंटी इनकंबेंसी और राजद के कैडर यानी एमवाई समीकरण के साथ-साथ कोइरी-कुर्मी व अन्य वर्गों का समर्थन मिलने की आस है।
हालांकि, जानकारों का कहना है कि मामला दोनों गठबंधनों के लिए उलझा हुआ है। दोनों प्रत्याशी एक-दूसरे के कैडर वोट में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। रेणु कुमारी एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में जुटी हैं तो निरंजन मेहता भी बाहरी-स्थानीय को साइलेंटली मुद्दा बना रहे हैं।
हालांकि, छठ पूजा बाद जब चुनाव प्रचार अपने परवान पर होगा ताे तस्वीरें बिल्कुल साफ होती दिखेगी। हवा किस ओर चल रही है, इसका आकलन किया जा सकेगा। अब तक दोनों गठबंधनों के किसी भी बड़े नेता की सभा नहीं हुई है।

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