Bihar Politics: तेजस्वी यादव इन 2 सीटों से लड़ सकते हैं चुनाव, बिहार में सियासी अटकलें तेज
बिहार में चुनावी सरगर्मी के बीच चर्चा है कि तेजस्वी यादव राघोपुर के साथ कर्पूरी ठाकुर की कर्मभूमि फुलपरास से भी चुनाव लड़ सकते हैं। फुलपरास में माय समीकरण के साथ अति पिछड़ा वर्ग में सेंध लगाने की कोशिश होगी, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष मंगनीलाल मंडल की भूमिका अहम होगी। यदि तेजस्वी फुलपरास से लड़ते हैं तो दरभंगा और सुपौल तक की सीटों पर प्रभाव पड़ेगा।

ब्रज मोहन मिश्र, मधुबनी। चुनावी बिगुल बजने के बाद बिहार में राजनीतिक सरगर्मी खूब है। समीकरण बन-बिगड़ रहे। इसी दौर में चर्चा है कि तेजस्वी यादव राघोपुर के अलावा भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की कर्मभूमि फुलपरास से भी लड़ सकते हैं। चर्चा तो बिस्फी को लेकर भी है, मगर फुलपरास की चर्चा में गर्माहट है।
कहा जा रहा कि फुलपरास से तेजस्वी माय (MY समीकरण के अलावा अतिपिछड़ा में भी सेंध मारने का प्रयास करेंगे। इसमें उनके नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनीलाल मंडल की भूमिका अहम हो सकती है। फुलपरास में अभी जदयू से विधायक मंत्री शीला मंडल अति पिछड़ा में धानुक समाज से हैं। मंगनी लाल मंडल भी धानुक समाज से हैं।
मगर, धानुक समाज में भी दो हिस्सा है एक मगहिया और दूसरा चिरौद। शीला मंजल मगहिया से आती हैं, जबकि मंगनी लाल चिरौद से हैं। ऐसे में फुलपरास में अति पिछड़ा के एक हिस्से में सेंधमारी की पूरी कोशिश होगी। अगर ऐसा होता है तो फुलपरास से कांग्रेस को अपना दावा छोड़ कर कहीं और फोकस करना होगा। राजद के अलावा कांग्रेस और जदयू के बड़े नेताओं भी यह चर्चा तेज है कि तेजस्वी फुलपरास सीट से लड़ सकते हैं।
तेजस्वी यादव पहले से इस बात को कहते रहे हैं कि मिथिला क्षेत्र में राजद को मजबूत करके सत्ता के करीब पहुंचा जा सकता है। सुपौल से लेकर दरभंगा तक 25 सीटों में राजद के पास मात्र तीन सीटें लौकहा, मधुबनी और मनिगाछी है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि तेजस्वी यादव फुलपरास से चुनाव लड़ जाते हैं तो इसका प्रभाव दरभंगा और सुपौल तक की सीटों पर पड़ेगा। फुलपरास विधानसभा क्षेत्र में यादव उम्मीदवारों को लगातार दबदबा रहा है। 1990 से लेकर 2015 तक इस सीट से यादव उम्मीदवार को ही जीत मिली थी। जिसमें तीन बार देवनाथ यादव और दो बार उनकी पत्नी गुलजार देवी को जीत मिली थी।
दो बार राम कुमार यादव को जीत मिली। यादव उम्मीदवार ने कांग्रेस और जदयू के अलावा दो बार यहां सपा को भी जीत दलायी। राजद ने एक बार भारत भूषण मंडल और एक बार विरेंद्र चौधरी को टिकट दिया मगर हार का सामना करना पड़ा। 2020 में यहां महागठबंधन ने कांग्रेस से ब्राह्मण उम्मीदवार कृपानाथ पाठक को उतारा और अति पिछड़ा उम्मीदवार शीला मंडल से हार का सामना करना पड़ा।
शीला मंडल ने पहली जीत में ही अपने लिये मंत्रीमंडल में जहग बना ली और पूरे पांच साल मंत्री रहीं। यहां अतिपिछड़ा, मुस्लिम, ब्राह्मण वोटरों की संख्या भी ठीकठाक है। उल्लेखनीय है कि 1977 के उपचुनाव में देवेंद्र प्रसाद यादव ने सीट छोड़ी थी और मुख्यमंत्री रहते हुए जननायक कर्पूरी ठाकुर को जीत मिली थी। तब से इस सीट को जननायक की कर्मभूमि के तौर पर भी देखा जाता है।
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