मुकेश सहनी की 'नाव' डुबाने के लिए एनडीए ने मैदान में उतारे चार 'महारथी'
बिहार विधानसभा चुनाव के नज़दीक आते ही, एनडीए और आइएनडीआइ दोनों ही अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। एनडीए, मुकेश सहनी की वीआईपी के आइएनडीआइ में जाने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए निषाद समुदाय के वोटों को साधने की रणनीति बना रहा है। इसके लिए पार्टी ने कई निषाद नेताओं को साथ जोड़ा है, ताकि उत्तर बिहार की सीटों पर निषाद वोटों का समर्थन मिल सके।

यह तस्वीर जागरण आर्काइव से ली गई है।
प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के साथ अब एनडीए और आइएनडीआइ अपनी-अपनी चुनावी तैयारियों को धार देने में जुट गया है।
हर सीटों पर समीकरण के हिसाब से रणनीति बन रही है। इसी कड़ी में पिछले विधानसभा चुनाव में साथ रही मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली वीआइपी के आइएनडीआइ में जाने से उसकी भरपाई एनडीए ने किया है, ताकि निषाद वोटों का संतुलन बना रहे।
इसके लिए केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री राजभूषण चौधरी, राज्य के दो मंत्रियों हरि सहनी एवं मदन सहनी के साथ चौथे नेता अजय निषाद को एनडीए ने जोड़ लिया है।
लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर अजय निषाद भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे। करीब डेढ़ साल के बाद उनकी भाजपा में वापसी हो गई।
माना जा रहा है कि इस चौकड़ी से उत्तर बिहार की करीब डेढ़ दर्जनों सीटों पर निषाद वोटों को साधने में आसानी होगी। बिहार की जातीय गणना के अनुसार राज्य में निषाद की आबादी करीब 34 लाख है।
यह कुल जनसंख्या का 2.36 प्रतिशत है। यदि इनकी उपजातियों को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 55 से 60 लाख हो जाता है। यह राज्य की आबादी का करीब पांच प्रतिशत है। हालांकि इस आंकड़ा को कम बताने की बात मुकेश सहनी एवं अन्य नेतागण करते हैं।
उत्तर बिहार में मुजफ्फरपुर, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, पूर्वी चंपारण और कोसी में सहनी मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। पिछले चुनाव में कई सीटों पर कम अंतर से हार-जीत हुई थी।
वीआइपी के आइएनडीआइ में जाने से निषाद वोट को संतुलित करने के लिए एनडीए इस चौकड़ी का इस्तेमाल करेगा। मुजफ्फरपुर की कुढ़नी, बोचहां, मीनापुर, साहेबगंज और औराई विधानसभा सीटों पर निषाद वोटरों की संख्या अच्छी खासी है।
इसके अलावा भी तीन-चार सीटों पर भी इस वोटरों की संख्या भी समीकरण को प्रभावित करने वाली है। यही कारण था कि पिछले चुनाव में वीआइपी ने एनडीए खाते से मिली अपने हिस्से की दोनों सीटें बोचहां और साहेबगंज जीत ली थी।
दरभंगा में भी बहादुरपुर, गौड़ा बौराम और अलीनगर सीट पर निषाद वोटर निर्णायक हैं। पिछले चुनाव में गौड़ा बौराम और अलीनगर से वीआइपी उम्मीदवार जीते थे। वहीं बहादुरपुर से मदन सहनी जदयू से विजयी हुए थे।
एनडीए को इन सीटों पर जीत के लिए निषाद मतदाताओं को साधना ही होगा। इसके अलावा मधुबनी में मधुबनी, हरलाखाी और झंझारपुर सीटों पर भी निषाद वोट महत्वपूर्ण हैं।
समस्तीपुर की मोरवा एवं सरायरंजन, पूर्वी चंपारण की सुगौली और सहरसा की सिमरी बख्तियारपुर सीट में निषाद वोटरों का प्रभाव है।इसके अलावा कुछ सीटों पर क्लोज फाइट की स्थिति में ये वोट निर्णायक हो सकते हैं।
यही कारण है कि एक भी विधायक और सांसद नहीं रहते हुए भी मुकेश सहनी दोनों गठबंधनों से तोलमोल कर लेते हैं। इन क्षेत्रों की दो दर्जनों सीटाें पर जीत के लिए दोनों गठबंधनों को मेहनत करनी होगी।
केंद्रीय मंत्री डा. राजभूषण चौधरी कहते हैं, मछुआरों के लिए आज तक किसी सरकार ने नहीं सोचा था। नरेन्द्र मोदी सरकार ने उनकी समस्या ओ समझा और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना लाए।
राजनीतिक भागीदारी भी बढ़ी। राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग बना तो पहला अध्यक्ष इसी समाज के भगवान लाल सहनी बने। यही नहीं बिहार में मछुआरा आयोग का गठन भी हुआ।
एनडीए ने निषाद समाज की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक मजबूती के लिए काम किया है। वीआइपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति कहते हैं, एनडीए में निषाद का कोई चेहरा नहीं है।
निषाद का देश में एक ही चेहरा है, मुकेश सहनी। इसका उदाहरण बोचहां विधानसभा उपचुनाव में मिल चुका है। बिहार में भी ऐसा ही होगा। एनडीए की तैयारी धरी की धरी रह जाएगा।
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