Bihar Chunav: मुजफ्फरपुर में विरोधियों से पहले अपने ही छुड़वा रहे पसीना, आसान नहीं होगा प्रत्याशी का चयन
मुजफ्फरपुर में टिकट बंटवारे को लेकर राजनीतिक दलों में घमासान मचा है। एनडीए में रमई राम की पुत्री गीता देवी की दावेदारी से विवाद है तो वहीं गायघाट में जदयू के दो दिग्गज अपनी विरासत आगे बढ़ाने में जुटे हैं। राजद में भी कई सीटों पर यही हाल है जहां पुराने और नए दावेदार आमने-सामने हैं।

प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। टिकट को लेकर विरोधियों से पहले अपनों के घमासान को शांत करने में दलों के बड़े नेताओं व रणनीतिकारों का पसीना छूट रहा है। चुनाव नजदीक होने के कारण समीकरण बिगड़ने के डर से बड़ी कार्रवाई भी नहीं हो पा रही।
एनडीए में यह कुछ अधिक है। जिले की बड़ी राजनीतिक हस्ती रहे रमई राम की पुत्री गीता देवी को वीआइपी से भाजपा अपने पाले में ले तो आई, मगर उसके साथ एक अनचाहा तनाव भी आ गया। बोचहां (सुरक्षित) सीट से गीता उम्मीदवारी के लिए अड़ गई हैं।
एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन में पार्टी की प्रदेश उपाध्यक्ष बेबी कुमारी का नाम घोषित होते ही उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के सामने मंच पर ही हंगामा कर गीता ने स्थिति असहज कर दी थी। उनके साथ कई अन्य दावेदार भी हंगामा किए थे।
चर्चा हो रही कि बीच का रास्ता निकालते हुए यह सीट लोजपा को दे दी जाए। वहीं, गायघाट से जदयू के दो दिग्गज विरासत आगे बढ़ाने के लिए सबकुछ दांव पर लगा चुके हैं।
राजद और जदयू में रहे महेश्वर यादव अपने पुत्र प्रभात किरण तो जदयू एमएलसी दिनेश प्रसाद सिंह बेटी कोमल सिंह को कमान सौंपना चाह रहे। यहां भी पिछले दिनों एनडीए के कार्यकर्ता सम्मेलन में हाथापाई हुई और कुर्सियां चली थीं।
दिनेश प्रसाद सिंह साहेबगंज सीट से पुत्र शुभम सिंह के लिए रास्ता तलाश रहे। वह राजद के रास्ते भी पुत्र की लांचिंग करा सकते हैं। यह इसलिए भी, कि उनका दोनों गठबंधनों से बेहतर रिश्ता है। इससे भाजपा विधायक व मंत्री डॉ. राजू कुमार सिंह के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है।
राजद में भी जिले की दो से तीन सीटों पर यही स्थिति है। औराई से पिछली बार डा. सुरेंद्र कुमार का टिकट काटकर सीट माले को दे दी गई थी। बड़े अंतर से हार के कारण राजद नेताओं को उम्मीद है कि सीट दल के खाते में आएगी।
इसलिए सीतामढ़ी में सांसद की लड़ाई हारने वाले अर्जुन राय और डा. कुमार आमने-सामने हैं। पिछली बार टिकट कटने पर निर्दलीय मैदान में उतर कर डॉ. सुरेंद्र बागी तेवर दिखा चुके हैं।
वहीं, गायघाट व कांटी में विधायक निरंजन राय और इसरायल मंसूरी का राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध, पार्टी की राह मुश्किल कर रहा। कांग्रेस की एकमात्र सीट मुजफ्फरपुर पर डा. गौरव वर्मा व जिलाध्यक्ष अरविंद मुकुल दावेदार हैं।
ऐसे में वर्तमान विधायक बिजेंद्र चौधरी का टिकट काटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। इस सीट पर तो नवगठित जन सुराज में भी घमासान है।
शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक डा. एके दास, वार्ड पार्षद संजय केजरीवाल ताल ठोंक रहे। पार्टी की अंदरूनी कलह का परिणाम रहा कि जिलाध्यक्ष इंद्रभूषण सिंह अशोक को हटा दिया गया।
पूर्वी चंपारण में बागियों को रोकने की चुनौती
पूर्वी चंपारण की कुल 12 विधानसभा सीटों पर समीकरणों को संभालने-साधने के साथ एनडीए के लिए चार बागियों को रोकने की चुनौती होगी। जदयू के दो पूर्व विधायक गोविदंगज की मीना द्विवेदी और नरकटिया के श्यामबिहारी प्रसाद ने पार्टी से नाता तोड़ लिया है।
मीना ने जन सुराज तो श्यामबिहारी ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। इनके अलावा जदयू के जिलाध्यक्ष रहे कपिलदेव प्रसाद उर्फ भुवन पटेल भी जन सुराज के साथ चले गए हैं। भुवन रक्सौल से निर्दलीय लड़ चुके हैं।
पिछले चुनाव में केसरिया सीट से राजद के टिकट पर लड़ने वाले संतोष कुशवाहा भाजपा के साथ चले गए थे, लेकिन इस बार चुनाव के ठीक पहले पाला बदल लिया है। माना जा रहा कि ये सभी गोविंदगंज, केसरिया, रक्सौल और नरकटिया में एनडीए का समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
इंटरनेट मीडिया पर अपने पक्ष में माहौल बना रहे। रक्सौल व गोविंदगंज में भाजपा, केसरिया में जदयू व नरकटिया में राजद के विधायक हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि टिकट बंटने के दौरान एक बार फिर दृश्य बदलेगा।
कई संतुष्ट-असंतुष्ट उभरेंगे और पाला बदल होगा। इन सब के बीच बागियों को रोकने के साथ-साथ भितरघात की भी चुनौती होगी। जिले में दोनों गठबंधन में खामोशी है। नेता न पत्ते खोल रहे, न जुबान।
राजनीतिक कद को लेकर अटकलें तेज
मीना द्विवेदी वर्ष 2005 के दोनों और 2010 के चुनाव में जदयू के टिकट पर गोविंदगंज की विधायक बनी थीं। उन्होंने उपेक्षा के कारण पार्टी छोड़ने की बात कही। श्यामबिहारी प्रसाद आदापुर और परिसीमन के बाद नरकटिया से विधायक रह चुके हैं।
पहली बार 1998 में बड़े भाई और पूर्व मंत्री ब्रजबिहारी प्रसाद की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में विधायक बने थे। 2005 के फरवरी में आदापुर से चुने गए थे। उसी साल नवंबर में भी जदयू के टिकट पर चुने गए।
2010 में परिसीमन के बाद आदापुर का अधिकांश भाग रक्सौल में चला गया। इसके बाद भी नरकटिया से जीते। करीब दो दशक से अधिक समय तक जदयू को मजबूत करते रहे। दो बार जदयू के जिलाध्यक्ष रहे कपिलदेव प्रसाद की भी पकड़ कम नहीं रही।
पार्टी ने 2017 से 2022 तक जिले की कमान उन्हें सौंपी थी। फिलहाल प्रदेश महासचिव और राज्य कार्यकारिणी सदस्य थे। ऐसी ही चुनौती भाजपा के सामने भी है।
पार्टी छोड़ राजद में गए संतोष कुशवाहा ने 2020 का चुनाव राजद के टिकट पर केसरिया से लड़ा था, तब दूसरे स्थान पर रहे थे। लोकसभा चुनाव से पहले दल बदल भाजपा में आए जरूर, लेकिन दिल राजद वाला ही रहा।
उन्होंने राजद में वापसी कर ली है। ऐसे में नए गठबंधन में टिकट की अपेक्षा व भितरघात के साथ पुराने में समीकरण बनाने-बिगाड़ने की आशंका प्रबल है।
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