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    Winter 2025: ठंड के साथ बच्चों में बढ़ रहे निमोनिया के मामले, इन लक्षणों को इग्नोर करना पड़ सकता है भारी

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 09:19 AM (IST)

    ठंड के मौसम में बच्चों में निमोनिया (Pneumonia Cases) के मामले बढ़ रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार, नवजात शिशु देखने में बीमार लगे, दूध न पिए, सांस लेने में दिक्कत हो, सुस्त हो, रोए या बुखार हो तो उन्हें निमोनिया हो सकता है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। समय पर इलाज न होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। इसलिए लक्षणों (Pneumonia Symptoms) को पहचानकर तुरंत चिकित्सा सहायता लेना आवश्यक है।

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    ठंड के मौसम में बच्चों में निमोनिया के मामले बढ़े। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। सर्दी बढ़ने के साथ ही बच्चे निमोनिया की चपेट में आने लगे हैं। श्री कृष्ण चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल में रोजाना निमोनिया पीड़ित 20-25 तो सदर अस्पताल में 10-15 बच्चे इलाज को पहुंच रहे हैं। केजरीवाल में बच्चों को गोद में लेकर चिकित्सक के ओपीडी के बाहर स्वजन की लंबी कतारें लगी रह रही हैं।

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    यहां के चिकित्सक की मानें तो रोजाना 20-25 इलाज के लिए भर्ती किए जा रहे हैं। चिकित्सक ने बताया कि ठंड व प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों पर भी असर डाल रहा है। उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही है। वहीं अस्थमा, सर्दी-जुकाम, बुखार और एलर्जी के मरीज भी पहुंच रहे हैं।

    स्थिति यह है कि एसकेएमसीएच में एनआईसीयू व पीआईसीयू वार्ड फुल होने के कगार पर पहुंच गया है। पीआईसीयू वार्ड में 80 प्रतिशत बेड पर मरीज भर्ती हैं। इसमें सर्वाधिक मौसम और प्रदूषण या अन्य इंफेक्शन से बीमार होकर अस्पताल पहुंचना बताए गए हैं।

    डॉक्टरों की सलाह (Pneumonia Prevention)

    शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गोपाल शंकर सहनी के अनुसार बताया गया कि सर्दियों में श्वसन तंत्र संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ जाती हैं। खासकर छोटे बच्चों और नवजात शिशुओं में। सर्दी-खांसी जैसे मामूली लक्षणों की अनदेखी करने पर बच्चे निमोनिया की चपेट में आ सकते हैं, जो कि जानलेवा साबित हो सकता है।

    उन्होंने बताया कि अगर निमोनिया में बच्चे को सांस लेने में दिक्कत नहीं होती तो उसे दवा दी जाती है। इसमें बुखार और सर्दी-खांसी कम करने की दवा दी जाती है। इसके साथ ही बच्चे की स्थिति के आधार पर एंटीबायोटिक दी जाती है। माइल्ड केस में फॉलो अप करना जरूरी होता है, क्योंकि ऐसे मामलों में अगर समय पर ध्यान न दिया जाए तो स्थिति गंभीर हो सकती है।

    अगर मामला गंभीर है तो अस्पताल में भर्ती कर बच्चे का इलाज किया जाता है। उन्होंने बताया कि बच्चों पर निमोनिया का असर ज्यादा होता है। संक्रमित व्यक्ति खांसता व छींकता है तो वायरस व बैक्टीरिया सांस से फेफड़ों तक पहुंचकर सामने बैठे व्यक्ति को संक्रमित कर देते हैं।

    निमोनिया का प्रभाव बच्चों पर ज्यादा होता है। खासतौर पर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया होने पर उन्हें सांस लेने और दूध पीने में दिक्कत होती है।

    लक्षण पहचानें, तुरंत चिकित्सक को दिखाएं

    नवजात शिशु देखने में बीमार लगे, दूध न पिए, सांस लेने में दिक्कत हो, सुस्त हो, रोए या बुखार हो तो उन्हें निमोनिया हो सकता है। इसके लिए तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। निमोनिया से बचाव के लिए छोटे बच्चों को संक्रमित व्यक्ति से दूर रखें। बच्चे को मां का पहला गाढ़ा दूध जिसे कोलेस्ट्रम कहते हैं, अवश्य पिलाएं तथा बच्चे को छह माह तक केवल स्तनपान कराएं।