बिहार विधानसभा चुनाव 2025: नेताओं की चुप्पी, कार्यकर्ताओं की बेचैनी और निर्दली प्रत्याशियों की हुंकार ने बढ़ाया सियासी तापमान
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नामांकन की अंतिम तिथि नजदीक है, पर राजनीतिक दल अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं कर पाए हैं। इससे कार्यकर्ताओं और जनता में बेचैनी है। महागठबंधन और एनडीए दोनों खेमों में रणनीतिक चुप्पी है, जिससे अटकलों का बाजार गर्म है। निर्दलीय उम्मीदवार पूरी ताकत से प्रचार कर रहे हैं। अब देखना यह है कि अगले 48-72 घंटों में क्या होता है।

जन्मेंजय, बिहारशरीफ(नालंदा)। विधानसभा चुनाव के नामांकन की अंतिम तिथि के अब चंद दिन शेष रह गए हैं लेकिन राज्य की सियासी फिजा में अब भी अस्पष्टता है। एनडीए और महागठबंधन जैसे प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों ने अभी तक अपने प्रत्याशियों की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, जिससे कार्यकर्ताओं से लेकर आम जनता तक में बेचैनी है। दोनों खेमों में रणनीतिक खामोशी है। ऐसे में चर्चाओं का दौर जोरों पर है।
टिकट की रेस में घमासान, लेकिन नेतृत्व अब तक शांत
महागठबंधन खेमे में टिकट को लेकर जबरदस्त खींचतान मची हुई है। राजद सुप्रीमो के दरवाजे पर अब तक आधा दर्जन दावेदार दस्तक दे चुके हैं, लेकिन इंट्री अब तक किसी की नहीं मिली है। हर दिन एक नया नाम उछल रहा है, लेकिन फैसला अब भी अधर में लटका है। वहीं पार्टी गलियारों में साजिशों और समीकरणों का शोर है, लेकिन नेतृत्व की चुप्पी ने सबको उलझन में डाल रखा है।
नेतृत्व की रहस्यमय चुप्पी कार्यकर्ताओं के उत्साह को बना रहे दिशाहीन
एनडीए की स्थिति भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है। यहां भी सबसे विश्वसनीय चेहरों को लेकर कयासों का बाजार गर्म है। पार्टी कार्यकर्ताओं का जोश तो सातवें आसमान पर है, लेकिन नेतृत्व की रहस्यमय चुप्पी उनके उत्साह को दिशाहीन बना रही है।
निर्दलीय प्रत्याशियों का एलान-ए-जंग
जहां एक ओर बड़े दल रणनीति के नाम पर समय गंवा रहे हैं, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने पूरी ताकत झोंक दी है। जनता को चाहिए नया विकल्प। इस नारे के साथ ये प्रत्याशी गांव-गांव, गली-गली अपनी पैठ बना रहे हैं। अब तक हर निर्दलीय अपनी जीत को लेकर आत्मविश्वास से भरा है । वहीं कुछ तो जातीय समीकरण व सामाजिक समर्थन के दम पर बड़े दलों को सीधी चुनौती दे रहे हैं।
परंपरा बनाम परिवर्तन की लड़ाई
इस बार की चुनावी लड़ाई परंपरा बनाम परिवर्तन के बीच होती दिख रही है। जनता हैरान है कि नामांकन के इतने करीब आकर भी प्रमुख दलों की ओर से कोई स्पष्ट संकेत क्यों नहीं मिल रहा। नेताओं की चुप्पी, कार्यकर्ताओं की बेचैनी और निर्दलीयों की हुंकार। इन तीनों ने मिलकर सियासी तापमान को तेज कर दिया है।
48 से 72 घंटे बेहद निर्णायक
अगले 48 से 72 घंटे बेहद निर्णायक साबित होने वाले हैं। सभी दलों को अब टिकट की गोटी खोलनी ही होगी, नहीं तो मैदान निर्दली और छोटे दलों के लिए खुला छोड़ देना पड़ेगा। लोगों के मानें तो यह पहला मौका जब उम्मीदवार को लेकर बड़ी पार्टियों के बीच खामाेशी है।
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