बिहारशरीफ की सियासत में कांग्रेस की एंट्री, उमेद खान पर पार्टी ने खेला दांव; क्या बदलेगा समीकरण?
बिहारशरीफ विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बदलती राजनीति का आईना है। कभी कांग्रेस का गढ़, अब भाजपा के कब्जे में। 2000 में राजद को यहां पहली बार सफलता मिली। 2010 और 2015 में जदयू और फिर भाजपा के डॉ. सुनील कुमार जीते। 2020 में उन्होंने हैट्रिक लगाई। अब कांग्रेस ने उमेद खान को मैदान में उतारा है, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल है।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
जन्मेंजय, बिहारशरीफ। बिहारशरीफ विधानसभा सीट का राजनीतिक सफर बिहार की बदलती राजनीति का आईना रहा है। कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट अब भाजपा के कब्जे में है।
1952 से अब तक इस सीट पर कई बार जनादेश बदला, लेकिन हर बार जनता ने अपने विवेक से राजनीतिक दलों को एक नया संदेश दिया।
वर्ष 2000 के चुनाव में पहली बार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को इस क्षेत्र में सफलता मिली थी। आरजेडी प्रत्याशी पप्पू खां की जीत से लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली पार्टी का प्रभाव इस क्षेत्र में मजबूत हुआ। इस सीट पर 1952 से 2000 तक कांग्रेस का वर्चस्व कायम था, जिसे समय-समय पर सीपीआई, जनसंघ, बीजेपी और जनता दल ने चुनौती दी।
2000 के बाद बिहारशरीफ की राजनीतिक दिशा एक बार फिर बदली। वर्ष 2010 में जेडीयू के डॉ. सुनील कुमार ने 77,878 मतों से जीत दर्ज कर आरजेडी को पराजित किया।
इसके बाद वर्ष 2015 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और 75,928 मतों से फिर विजयी हुए। वहीं, वर्ष 2020 में भी डॉ. सुनील कुमार ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की, इस बार उन्हें 81,514 मत मिले, जबकि आरजेडी के सुनील कुमार को 66,281 मत मिले।
बदलता रहा है नेतृत्व
1952 से लेकर 2020 तक बिहारशरीफ सीट पर कांग्रेस, सीपीआई, जनता दल, आरजेडी, जेडीयू और भाजपा समेत सभी दलों को जनता ने मौका दिया है। यह क्षेत्र राजनीतिक रूप से इतना जागरूक है कि यहां का जनादेश कभी स्थायी नहीं रहा, बल्कि हमेशा विकास, नेतृत्व और परिस्थिति के आधार पर बदलता रहा है।
लंबे अंतराल के बाद बिहारशरीफ विधानसभा सीट एक बार फिर कांग्रेस की झोली में आई है। इस बार पार्टी ने उमेद खान पर भरोसा जताया है। गया के रहने वाले उमेद खान पढ़े-लिखे व सुलझे इंसान माने जाते हैं।
लेकिन बिहारशरीफ के लोग क्षेत्रीय प्रत्याशी की चाहत रखते हैं। यह सीट कांग्रेस के लिए राजनीतिक पुनर्स्थापना का प्रयास माना जा रहा है। इससे पहले भी कांग्रेस बिहारशरीफ से कई दिग्गज नेताओं जैसे शकीउल्ला जमा, बसु बाबू, अकील हैदर, हुमायूं अंसारी और हैदर आलम को मैदान में उतार चुकी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार कांग्रेस अपने पुराने जनाधार को पुनर्जीवित करने के प्रयास में जुटी है। पार्टी नेतृत्व ने उमेद खान को युवाओं और परंपरागत मतदाताओं के बीच सेतु के रूप में उतारा है। स्थानीय स्तर पर उनका संपर्क और सामाजिक सक्रियता उन्हें अन्य प्रत्याशियों से अलग बनाती है।
पन्द्रह वर्षों बाद इस सीट पर कांग्रेस की वापसी को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है। विरोधी दल इसे जोखिम भरा प्रयोग बता रहे हैं, जबकि कांग्रेस कार्यकर्ता इसे नए सवेरे की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं।
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