Bihar Chunav 2025: बदल गई विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला के उद्घाटन की तिथि, नोट कर लें नई तारीख
बिहार में विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेले के उद्घाटन की तिथि बदल दी गई है। बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के मतदान को देखते हुए तारीख में बदलाव किया गया है। यह मेला एक महीना तक चलता है। इसमें देश-विदेश से लोग आते हैं।

मेले में आए घोड़े और चौक पर स्थापित गज-ग्राह की प्रतिमा। जागरण
राज्य ब्यूरो, पटना। विधानसभा चुनाव के कारण इस बार विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला कार्तिक पूर्णिमा के उद्घाटन की तारीख तीन-चार दिनों के लिए आगे बढ़ा दी गई है। इस बार सोनपुर मेले का उद्घाटन नौ नवंबर को होगा।
हालांकि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मंगलवार की आधी रात से सोनपुर स्थित गंडक नदी और गंगा में स्नान शुरू हो जाएगा। इसके लिए श्रद्धालुओं की भीड़ भी सोनपुर में लगनी शुरू हो गई है।
इसमें सारण जिले के अलावा पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, चंपारण जिले के काफी संख्या में श्रद्धालु शामिल हैं। दरअसल, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सोनपुर में मेले का आयोजन होता है। यह करीब एक माह तक चलता है।
अमूमन सोनपुर मेला का शुभारंभ कार्तिक पूर्णिमा के दो दिन पहले हो जाता था। ताकि स्नान के दिन होने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को जिला प्रशासन नियंत्रित कर सकें लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव का छह नवंबर को ही निर्धारित है।
वहीं गंगा स्नान पांच नवंबर को है। चुनाव को देखते हुए प्रशासन ने मेला का उद्घाटन की तिथि को आगे बढ़ा दी है, ताकि पहले चुनाव संपन्न हो सके। विधानसभा आम चुनाव के साथ ही जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग इसकी तैयारी में जुट गया है।
मेला परिसर में सजने लगीं दुकानें
कार्तिेक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले सोनपुर मेला को लेकर जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग के स्टाल बनने लगे हैं। वहीं दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें सजानें लगे हैं। पशु और पक्षी बाजार के साथ ही थियेटर, झूला, चर्खी और ऊनी वस्त्रों की दुकानें परिसर में लगनी शुरू हो गई हैं।
तीन दर्जन से अधिक घोड़े लाए गए
हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले के घोड़ा बाजारों में सोमवार की शाम तक तीन दर्जन से अधिक घोड़ों का आगमन हो चुका था। घोड़ा बाजारों के प्रांगण को सुखाने के लिए जमीन मालिकों द्वारा निरंतर प्रयास जारी है।
सरकारी लोअर बैलहट्टा के बाद यदि सबसे बड़े क्षेत्र में कोई मेला लगता है, तो वह घोड़ा बाजार का विस्तृत इलाका है। इन घोड़ा बाजारों के अलग-अलग मालिक हैं और उन्हीं की जमीनों पर, उनके संरक्षण में, घोड़ा बाजार लगता है।
अभी घोड़ा बाजार में जाने के कई रास्ते कीचड़युक्त हैं।

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