Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिहार में फसल कटाई के बाद हर वर्ष बड़ी मात्रा में अनाज की बर्बादी, हैरान करने वाला है आंकड़ा, क्‍या संभव है इन्‍हें रोकना?

    By Raman Shukla Edited By: Vyas Chandra
    Updated: Sat, 06 Dec 2025 08:03 PM (IST)

    बिहार में फसल कटाई के बाद हर साल भारी मात्रा में अनाज बर्बाद होता है, जिससे किसानों और अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। अनाज भंडारण और परिवहन की उचित व ...और पढ़ें

    Hero Image

    कटनी के दौरान होता काफी नुकसान। सांकेत‍िक तस्‍वीर

    रमण शुक्ला, पटना। बिहार में फसल तैयार से होने से लेकर खराब सप्लाई चेन के साथ ही विभिन्न कारणों से पांच प्रतिशत अनाज का नुकसान है। यही नहीं, बिहार में पैदा होने वाले ढेर सारे फल एवं सब्जियां पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज न होने के कारण बर्बाद हो जाते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कृषि विभाग के अनुसार 12 जिलों में तो एक भी कोल्ड स्टोरेज नहीं है। हालांकि अब गोदाम बनाने के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। अनुदान का प्रविधान किया गया है।

    कृषि विज्ञानी एवं अधिकारियों कहना है कि अनाज की बर्बादी कम करने से न सिर्फ खाद्य सुरक्षा बढ़ती है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा होता है। अनाज की बर्बादी का मतलब है जमीन, पानी एवं ऊर्जा जैसे कीमती संसाधनों को बचाना। इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है। 


    अनाज नुकसान का ब्यौरा

     

    • धान- 5.2 प्रतिशत
    • गेहूं- 6.0 प्रतिशत
    • मक्का- 4.10 प्रतिशत
    • चना- 4.30 प्रतिशत
    • मसूर- 5.60 प्रतिशत
    • कुल- 5.04 प्रतिशत

    (स्रोत : बिहार कृषि विवि, सबौर, भागलपुर)


    कटाई के दौरान फसल नुकसान से बचाव को लेकर सरकार की पहल

    बिहार सहित पूरे देश में खरीफ एवं रबी सीजन में किसानों को सबसे अधिक नुकसान फसल कटाई के दौरान होता है। मौसम की अनिश्चितता, मशीनों की कमी, श्रमिकों के अभाव एवं भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण खेतों में तैयार खड़ी फसल अक्सर बारिश, ओलावृष्टि या देरी के चलते प्रभावित होती है।

    इन चुनौतियों को देखते हुए केंद्र एवं राज्य सरकारों ने पिछले कुछ वर्षों में कटाई से जुड़े नुकसान को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। 


    आधुनिक मशीनरी को बढ़ावा 

    सरकार ने कृषि यांत्रिकीकरण मिशन के तहत कंबाइन हार्वेस्टर, रीपर, थ्रेसर, स्ट्रा रीकवर मशीन जैसी आधुनिक उपकरणों पर 40–80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है।
    राज्य सरकारें विशेष कैंप लगाकर किसानों को सामूहिक मशीन उपयोग केंद्र के माध्यम से कम लागत पर मशीन उपलब्ध करा रही हैं।
    इससे कटाई समय पर हो रही है और नुकसान का प्रतिशत काफी घटा है।

    मौसम पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत किया गया 


    भारतीय मौसम विभाग एवं कृषि मंत्रालय मिलकर किसानों तक मोबाइल एसएमएस कस्टमाइज्ड मौसम अलर्ट, ‘मेघदूत’ एवं ‘कृषि मित्र’ ऐप
    के माध्यम से बारिश, तूफान या तेज हवा की पूर्व सूचना भेजते हैं। इससे किसान कटाई के समय का बेहतर प्रबंधन कर पा रहे हैं।

    पीएम फसल बीमा योजना की सुरक्षा 


    कटाई के दौरान होने वाले प्राकृतिक नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा का प्रविधान किया गया है। बारिश, आंधी, बाढ़, ओलावृष्टि आदि इसमें सम्मिलित है।

    किसान उत्पादक समूहों (एफपीओ) की भूमिका 


    सरकार द्वारा प्रोत्साहित एफपीओ माडल कटाई प्रबंधन में बड़ी मदद साबित हो रहा है। सामूहिक कटाई, सामूहिक भंडारण, मशीन साझा करने की सुविधा से छोटे किसानों को काफी राहत मिलती है और फसल गिरने या सड़ने का जोखिम कम होता है।

    सुरक्षित भंडारण और ड्रायिंग यार्ड 

    कटाई के बाद नुकसान रोकने के लिए कृषि गोदाम, किसान भंडारण योजना के तहत अनुदानित गोदाम निर्माण पर सरकार जोर दे रही है। बिहार के कई प्रखंडों में पैक्स और सहकारी समितियों के स्तर पर भंडारण सुविधाएं बढ़ाई गई हैं।

    कटाई कार्यों में श्रमिकों की कमी दूर करने की पहल

    मजदूरों की कमी के कारण देरी से कटाई होने पर नुकसान बढ़ता है। मनरेगा एवं कृषि विभाग के समन्वय से मजदूरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास। ग्रामीण स्तर पर कृषि मशीनरी बैंक की स्थापना के माध्यम से किसानों को समय पर सहयोग मिल रहा है।

    जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम

    किसान प्रशिक्षण केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और राज्य कृषि विभाग के संयुक्त प्रयास से वैज्ञानिक कटाई पद्धति, नमी प्रबंधन, मशीन संचालन पर नियमित प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों में सुधार भी हुआ है।

    धान में कटाई–पश्चात हानि एवं उनका वैज्ञानिक प्रबंधन

    बिहार में धान उत्पादन लगभग 80–85 लाख टन प्रतिवर्ष है, परंतु विभिन्न चरणों में कुल 8–12 प्रतिशत पोस्ट-हार्वेस्ट हानि होती है। यह हानि जलवायु, कृषि-यंत्रीकरण की कमी, अव्यवस्थित परिवहन, अपर्याप्त सुखाई एवं भंडारण संरचनाओं के कारण बढ़ जाती है।


    1. कटाई एवं गहाई के दौरान हानि (दो-तीन प्रतिशत): देर से कटाई व अधिक नमी (22–24 प्रतिशत) के कारण दाना टूटना एवं बिखराव।
    पारंपरिक दरांती से कटाई और बैलों/स्थानीय थ्रेशर से गहाई में 1.5–2 गुना अधिक नुकसान।

    वैज्ञानिक समाधान : 
    • 18–20 प्रतिशत नमी पर कटाई
    • रीपर एवं आधुनिक थ्रेशर का उपयोग
    • वेराइटी-विशिष्ट कटाई समय का पालन।
    ---
    2. सुखाई के दौरान हानि (1–1.5%): असमान सुखाई से दाना फटने की समस्या। खुले में सुखाई से चिड़िया, हवा और बारिश के कारण हानि।

    वैज्ञानिक समाधान: वैज्ञानिक 14 प्रतिशत नमी तक सुखाना। सौर ड्रायर/मैकेनिकल ड्रायर का उपयोग। ग्रेडेड टारपालिन का प्रयोग

    3. खेत से पैक्स/क्रय केंद्र तक परिवहन हानि (1–1.8प्रतिशत): कच्ची ग्रामीण सड़कों के कारण बोरी फटना, दाना छलकना।  ट्राली में ढककर न ले जाने से हवा/घर्षण जनित नुकसान।

    वैज्ञानिक समाधान: एचडीपीई बैग, डबल-स्टिच बोरियां। ढके हुए ट्राली/ट्रांसपोर्ट का उपयोग। गांव स्तर पर प्राथमिक संग्रहण केंद्रों की स्थापना

    4. भंडारण हानि (तीन से चार प्रतिशत): परंपरागत कोठियों में 8–10 प्रतिशत तक कीट/कृंतक क्षति। पैक्स एवं मंडियों में सीमित वैज्ञानिक भंडारण।

    वैज्ञानिक समाधान: मेटल सिला / एअरटाइट आधुनिक संरचनाएं। फ्यूमिगेशन शेड्यूल (AlP/PH3) का वैज्ञानिक अनुपालन। एफसीआइ मानकों पर 14 प्रतिशत नमी, तीन से चार प्रतिशत अशुद्धि स्तर बनाए रखना।


    5. जिलेवार प्रमुख कारण: 

    • पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण: अधिक वर्षा, सुखाई में अधिक हानि।
    • दरभंगा, मधुबनी: नमी वाले क्षेत्रों में भंडारण संक्रमण अधिक।
    • भागलपुर, बांका: दाना फटने व आकस्मिक वर्षा से खेत में हानि।
    • रोहतास, औरंगाबाद: परिवहन हानि अधिक (लंबी दूरी, खराब सड़कें)।
    • पूर्णिया–कटिहार: उच्च आर्द्रता एवं भंडारण फफूंद समस्या।


    6. कुशल प्रबंधन के परिणाम: वैज्ञानिक पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन अपनाने से बिहार में धान हानि आठ-12 से घटकर तीन से चार तक लाई जा सकती है। इससे राज्य में प्रतिवर्ष 1,200 से 1,500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त मूल्य प्राप्ति संभव। 


    धान में कटाई–पश्चात हानि को कम करना बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक कदम है। वैज्ञानिक सुखाई, भंडारण और परिवहन तकनीकों को अपनाकर हम न केवल उत्पादन-सुरक्षा बढ़ा सकते हैं, बल्कि किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं।

    डा.अनिल कुमार सिंह, निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर