Election 2025: असली मुद्दों पर चर्चा जरूरी, जनता की नजरें सिर्फ पोल खोल पर नहीं
बिहार में चुनावी सरगर्मी बढ़ रही है, पर ध्यान 'पोल खोल' पर है। नेताओं को 2025 के चुनाव से पहले विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और किसानों की समस्याओं जैसे असली मुद्दों पर बात करनी चाहिए। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण जरूरी है। जनता को भी चाहिए कि वह नेताओं से इन मुद्दों पर सवाल करे।

बिहार विधानसभा चुनाव
दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है। कोई आदमी बिहार में बने राजनीतिक दलों के दो बड़े गठबंधन (एनडीए व महागठबंधन) की एकता का आधार खोजे तो पता चलेगा कि यह कुछ और नहीं, मजबूरी है।
राजनीतिक दलों की यह मजबूरी प्रकारांतर में जनता के सामने भी है। उन्हें एनडीए या महागठबंधन के बीच में से ही किसी एक के पक्ष में खड़ा होना है। रोचक यह कि एनडीए और महागठबंधन के बीच पोल खोल की होड़-सी मची है। गढ़े मुर्दें निकाले जा रहे हैं।
ऐसे में जातियों से ऊपर उठकर इस बार बिहार चुनाव में कई दूसरे मुद्दे जोर पकड़ते हुए दिख रहे हैं। बात चाहे एनडीए की हो या महागठबंधन की, सभी ने अपने मुद्दे तय कर लिए हैं और उसी के आधार पर चुनावी प्रचार किया जा रहा है। प्रदेश में विकास, कानून व्यवस्था, घुसपैठिए, पलायन, बेरोजगारी, महिला और एसआइआर जैसे मुद्दे हैं।
चुनावी विश्लेषकों को अंदेशा है कि पक्ष-विपक्ष द्वारा एक-दूसरे की पोल खोल में कहीं असली मुद्दे पीछे न रह जाएं। एनडीए और महागठबंधन के बीच एक तीसरा कोण भी है
जन सुराज पार्टी। एनडीए व महागठबंधन के नेताओं ने अतीत में एक-दूसरे के लिए क्या सब कहा है, जन सुराज पार्टी इसका चिट्ठा तैयार कर रही है और जनता के बीच प्रचारित भी कर रही है। दूसरी तरफ महागठबंधन की ओर से भी एनडीए के लिए यही सब किया जा रहा है।
एनडीए लालू-राबड़ी के दौर में जंगलराज की याद दिलाकर महागठबंधन पर हमलावर है।इसके लिए खासतौर से भाजपा के नेता लालू परिवार को भ्रष्टाचार संबंधी अदालती मामलों को जोर-शोर से उठा रहा है। वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन के सीएम चेहरा तेजस्वी प्रसाद यादव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों का टेप सुना रहे हैं और वादों का पूरा नहीं करने का
आरोप लगा रहे हैं।
पक्ष-विपक्ष के पोल खोल पर चुटकी लेते हुए राजनीतिक विश्लेषक एवं पूर्व कुलपति डा.आरबी सिंह कहते हैं-बेशक बिहार की जनता के लिए ये सामग्रियां मनोरंजक साबित होंगी। लेकिन, यह भी तय है कि इनके नाम पर चुनाव के गंभीर मुद्दे दब जाएंगे। जनता अपने प्रतिनिधियों से पांच साल का हिसाब लेना भूल जाएगी।
चुनावी मौसम में प्रमुख मुद्दे
- एसआइआर : चुनाव में एसआइआर का मुद्दा पूरी तरह गरमा चुका है। महागठबंधन ने इसे अपना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना लिया है।
- घुसपैठ : एनडीए के प्रमुख घटक भाजपा बिहार चुनाव में एक बड़ा मुद्दा घुसपैठियों का छेड़ रखा है। भाजपा इस मुद्दे को चुनावी मौसम में जोर से हवा दे रही है। अगर महागठबंधन एसआइआर पर निशाना साधकर एक वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहा है, तो भाजपा भी अवैध बांग्लादेशी और म्यांमार से आए लोगों को घुसपैठिया बता कर सुरक्षा का मुद्दा उठा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक अपनी हर जनसभा में इस मुद्दे की चर्चा कर रहे हैं।
- कानून व्यवस्था : हर चुनाव में कानून व्यवस्था एक बड़ा और गंभीर मुद्दा रहा है। इस चुनाव में भी यह मुद्दा प्रमुखता में है। एक ओर महागठबंधन जहा नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि को कमजोर करने के लिए कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल उठा रहा है तो दूसरी तरफ, एनडीए भी कानून व्यवस्था को ही अपना मुद्दा बनाया है, फर्क सिर्फ इतना है कि एनडीए लालू-राबड़ी राज के 'जंगल राज' की चर्चा कर जनता को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि वर्तमान में कानून व्यवस्था काफी मजबूत और बेहतर है।
- बेरोजगारी/नौकरी : मतदाताओं में बड़ी संख्या युवाओं की है। ऐसे में पक्ष-विपक्ष बेरोजगारी/नौकरी को प्रमुखता से उठा रहा है। इसे जन-सुराज पार्टी भी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
- महिला विकास : राज्य में आधाी आबादी को अपने-अपने पाले में लाने के लिए पक्ष और विपक्ष के बीच होड़ लगी है। दोनों का महिला विकास पर फोकस है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो चुनाव की घोषणा से पहले ही मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की किस्तें जारी कर दी हैं। वहीं महागठबंधन के सीएम चेहरा तेजस्वी यादव भी मां-बहन योजना लागू करने की घोषणा की है।

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