Bihar Politics: बिहार-यूपी सीमा की 19 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला! मायावती की एंट्री से मची सियासी खलबली
बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है, खासकर उत्तर प्रदेश से सटे क्षेत्रों में। इन क्षेत्रों में एनडीए, महागठबंधन और बसपा के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है। 2020 में यहां एनडीए ने 8 और महागठबंधन ने 10 सीटें जीती थीं। बसपा प्रमुख मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया है, जिसके बाद भाजपा ने अपनी रणनीति तेज कर दी है। कांग्रेस भी सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेजी से बढ़नी शुरू हो गई है। इसके साथ ही राजनीतिक गलियारों में सीटों के समीकरण, हार-जीत, जिताऊ प्रत्याशी से लेकर बिहार की राजनीति में उत्तर प्रदेश के असर की चर्चा शुरू है। बिहार के कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो उत्तर प्रदेश से सटे हैं, लिहाजा इन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश की राजनीति का असर भी देखने को मिलता है।
चंपारण, सिवान, रोहतास, बक्सर, गोपालगंज, और कैमूर जैसे क्षेत्र हैं जहां चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश की सियासी लहर का असर दिखता है। इन क्षेत्रों के करीब 19 विधानसभा क्षेत्र हैं जो यूपी से लगते हैं।
इन इलाकों में साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आठ सीटों पर एनडीए, जबकि 10 सीटों पर महागठबंधन ने जीत दर्ज की थी। एक सीट चैनपुर पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार जमा खान ने जीत दर्ज कराई थी। हालांकि, जीतने के बाद वह जदयू में शामिल हो गए। अब एक बार फिर यहां चुनाव की तैयारी है।
एक ओर एनडीए के उम्मीदवार यहां से ताल ठोकने की तैयारी में हैं तो दूसरी ओर महागठबंधन के उम्मीदवार भी मैदान मारने को करीब-करीब तैयार हैं। इन दो प्रमुख गठबंधनों की राजनीतिक लड़ाई में अब यूपी की पार्टी बसपा भी किस्मत आजमाने उत्तर रही है।
बसपा प्रमुख मायावती ने बीते दिनों यह घोषणा कर दी है कि उनकी पार्टी बिहार में अकेले सभी सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी। उनकी पार्टी बिहार में किसी से गठबंधन नहीं करेगी। बसपा की इस घोषणा के बाद प्रदेश भाजपा भी उसकी काट की तैयारी में है।
दूसरी ओर, महागठबंधन इस भरोसे में है कि बिहार की राजनीति में अन्य प्रदेश का प्रभाव बहुत असर नहीं डालने वाला। राजनीतिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बसपा को बिहार के अपने क्षेत्र में रोकने के लिए एनडीए ने सारा दारोमदार भाजपा के जिम्मे छोड़ा है।
कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा उपमुख्यमंत्री और बिहार चुनाव के सह प्रभारी केशव प्रसाद मौर्य और योगी कैबिनेट के मंत्री दारा सिंह चौहान को भी यहां उतार दिया गया है। दूसरी ओर बसपा ने अपने चिरपरिचित चेहरे आकाश आनंद को चुनावी रणनीति बनाने से लेकर जिताऊ उम्मीदवारों के चयन तक का जिम्मा सौंपा है।
मायावती को लेकर भी चर्चा है कि वे बिहार में कुछ प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार को आ सकती हैं। कांग्रेस भी सीमावर्ती क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने के लिए अपने कई राष्ट्रीय स्तर को मैदान में उतारेगी। दलों की इन तैयारियों को देखते हुए कहा जा सकता है बिहार-यूपी सीमा की सीटें तीन तरफा मुकाबले का अखाड़ा बन रही हैं।
एनडीए अपनी सत्ता के भरोसे और संगठन के बूते मैदान में है तो महागठबंधन सामाजिक समीकरणों को संतुलित कर सत्ता की ओर बढ़ना चाहता है। वहीं, मायावती की बसपा तीसरे खिलाड़ी के रूप में अपने को स्थापित करने की कोशिश में जुटी है।
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