सत्ता पक्ष व विपक्ष के किस बात पर मिले सुर? CPI-ML की एमएलसी ने की नीतीश सरकार की सराहना, JDU विधायक ने कही ये बात
Bihar News: पटना पुस्तक मेले में जागरण सान्निध्य में जदयू विधायक शालिनी मिश्रा व सीपीआइ एमल की विधान पार्षद शशि यादव ने अपनी बातें रखीं। इस क्रम मे ...और पढ़ें

पटना पुस्तक मेले में आयोजित जागरण सान्निध्य के तृतीय सत्र में महिलाएं और राजनीति विषय पर चर्चा में शामिल बाएं से दैनिक जागरण के डिप्टी एडिटर बिहार अश्विनी कुमार सिंह, विधायक शालिनी मिश्रा एवं विधान पार्षद शशि यादव। जागरण
विद्या सागर, पटना। Patna Book Fair: पटना पुस्तक मेले में रविवार को दैनिक जागरण के सान्निध्य कार्यक्रम के तीसरे सत्र में ‘महिलाएं और राजनीति’ विषय पर विचार-विमर्श हुआ।
इस सत्र में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (JDU) की विधायक शालिनी मिश्रा और विपक्षी भाकपा-माले (CPI-ML) की विधान पार्षद शशि यादव ने खुलकर अपनी बात रखी।
दोनों के स्वर में एक आश्चर्यजनक सामंजस्य दिखा, सत्ता और विपक्ष के बीच महिलाओं के मुद्दों पर एक दुर्लभ एकता। सत्र का संचालन दैनिक जागरण के बिहार डिप्टी एडिटर अश्विनी कुमार सिंह ने किया।
अपनी राजनीतिक यात्रा की साझा
दोनों नेताओं ने महिलाओं की राजनीतिक यात्रा, उनके संघर्ष और समाज में बदलते परिदृश्य पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया। शालिनी मिश्रा ने बताया कि उनके पिता कमला मिश्र मधुकर चार बार सांसद रहे।
लंबे समय तक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्य करने के बाद पिता की अंतिम इच्छा ने उन्हें राजनीति की राह पर ला खड़ा किया। अस्पताल के बिस्तर पर पिता ने उनका हाथ थामकर दुर्गा स्तुति का पाठ करते हुए कहा था ‘तुम्हें समाज-सेवा के लिए आगे आना होगा, राजनीति में कदम रखना होगा।’
यही वह क्षण था जब नौकरी के साथ-साथ वे अपने क्षेत्र में सक्रिय हो गईं और पार्टी के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगीं। शशि यादव ने अपनी यात्रा कुछ अलग रंग में रंगी।
उनके पिता नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़े थे और घर में मार्क्सवादी विचारों का प्रसार किया। जमशेदपुर में छात्र राजनीति से शुरुआत कर पटना में पिछले 32 वर्षों से वे महिला आंदोलन का हिस्सा रही हैं।
दोनों नेताओं ने स्वीकार किया कि महिलाओं का राजनीति में आना और टिकना आसान नहीं। पुरुषों की तुलना में उन्हें कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। शशि यादव ने याद दिलाया कि बिहार में स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही। आजादी के बाद पहले विधानसभा चुनाव में 13 महिलाएं सदन में पहुंचीं।
जेपी आंदोलन में भी छात्राओं व महिलाओं की रही अहम भागीदारी
1957 में 22, 1962 में 25 महिलाएं चुनी गईं। इसके बाद संख्या घटी, पर हाशिए की महिलाओं का संघर्ष तेज हुआ। 2005 से फिर बढ़ोतरी शुरू हुई 2010 में सर्वाधिक 35 महिलाएं पहुंचीं, इस बार 29 हैं।
जेपी आंदोलन में भी छात्राओं और महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। महिलाओं की इसी छटपटाहट ने आरक्षण की मांग को जन्म दिया—पंचायतों में, नौकरियों में, सदन में। बिहार में महिलाओं को दो दिन का विशेष अवकाश भी उनके संघर्ष का परिणाम है।
कार्यस्थलों पर शौचालय और क्रेच (पालना घर) की कमी के मुद्दे पर शशि यादव ने बताया कि उन्होंने सदन में यह सवाल उठाया था, जिसके बाद कुछ सुधार हुए। पिंक शौचालय अब जगह-जगह दिखते हैं।
शालिनी मिश्रा ने कहा कि उन्होंने विधान भवन में क्रेच की मांग उठाई थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंभीरता से लेते हुए डेढ़ वर्ष पहले विधानसभा एवं विधान परिषद में इसकी व्यवस्था कराई।
महिला सशक्तीकरण पर शालिनी मिश्रा ने पिछले 20 वर्षों में नीतीश कुमार के योगदान की सराहना की साइकिल योजना, पोशाक योजना, नौकरियों और पंचायतों में आरक्षण, जीविका समूहों को दस-दस हजार रुपये की सहायता और अब दो-दो लाख रुपये देने की तैयारी।
बेटियों को पंख दिए, उड़ान अभी बाकी है
गांवों में शौचालय निर्माण, महादलित बस्तियों में सामुदायिक शौचालय ये सभी कदम महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में उठाए गए हैं। शशि यादव ने भी स्वीकार किया कि नीतीश कुमार ने इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए हैं, किंतु जोड़ा ‘बेटियों को पंख तो दे दिए गए हैं, पर उड़ान अभी बाकी है।’
हर अनुमंडल में महिला महाविद्यालय की कमी है, बेटियों का ड्राॅप-आउट चिंता का विषय बना हुआ है। फिर भी, महिलाएं अब रुकने वाली नहीं। उनके संघर्ष के कारण ही इस चुनाव में सभी दलों ने महिलाओं को केंद्र में रखा और नई सरकार में उनकी भूमिका बढ़ी है।
पंचायतों में ‘पति-प्रधान’ प्रवृत्ति पर दोनों सहमत रहीं कि यह धीरे-धीरे कम हो रही है। शशि यादव ने बताया कि उनकी पार्टी की विजयी महिलाओं को स्पष्ट निर्देश होता है कि वे अपना कार्य स्वयं करें।
शालिनी मिश्रा ने कहा कि अब महिला जनप्रतिनिधि बैठकों में अपने क्षेत्र के मुद्दे मजबूती से उठाती हैं और अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं। सत्र का समापन एक आशावादी स्वर में हुआ—महिलाएं सशक्त हो रही हैं, आगे बढ़ रही हैं। पंख लग चुके हैं; अब पूरी उड़ान का समय निकट है।

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