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    Bihar Politics: बिहार की राजनीति का नया रुख, ठोस आकार ले रहा है जाति को वर्ग में बदलने का प्रयास

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 08:19 AM (IST)

    बिहार की राजनीति में जाति की जगह वर्ग का महत्व बढ़ता दिख रहा है। सरकारी योजनाओं में महिलाओं किसानों और पेंशनभोगियों को वर्ग के रूप में संबोधित किया जा रहा है। शिक्षा में मुफ्त योजनाओं और यूनिफॉर्म ने छात्रों के विकास को बढ़ावा दिया है। महिलाओं को स्वरोजगार के लिए आर्थिक सहायता दी जा रही है।

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    ठोस आकार ले रहा है जाति को वर्ग में बदलने का प्रयास

    अरुण अशेष, पटना। क्या बिहार की राजनीति अब जाति के बदले वर्ग आधारित होने के रास्ते पर चल पड़ी है? राजनीतिक दलों की घोषणाओं और केंद्र-राज्य सरकार की नीतियों को देखें तो इसका अनुभव होगा।

    जाति के वर्ग में बदलने के प्रयास का यह प्रारंभिक दौर है। इसलिए जाति और वर्ग-दोनों साथ-साथ चल रहे हैं। जाति का आग्रह जैसे-जैसे कम होगा, वर्ग मजबूत होने लगेगा।

    अच्छी बात यह है कि इस बदलाव की पहल सरकार की ओर से हो रही है। विपक्षी दल भी इसका अनुसरण कर रहे हैं। इसे महिलाओं के मामले में देखें। पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए सरकारी सेवाओं में आरक्षण से शुरुआत हुई, जो अब सभी के लिए है।

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    सभी वर्ग की महिलाओं के कल्याण के लिए बनीं योजना

    राज्य की सभी सेवाओं में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत पद आरक्षित कर दिए गए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006-07 में जब बालिकाओं के लिए पोशाक और किताब की योजना शुरू की तो इसमें सबको समाहित किया गया।

    जाति-धर्म के आधार पर किसी बालिका को इस योजना से बाहर नहीं किया गया। इसका विस्तार बालकों के बीच भी हुआ। फिर साइकिल देने का निर्णय लिया गया। अब तो उन्हें मैट्रिक से लेकर पीजी तक की परीक्षाओं में पास होने पर भी अधिकतम 75 हजार रुपये दिए जा रहे हैं।

    शिक्षा से जुड़ी मुफ्त योजनाओं का असर यह हुआ कि बच्चों का विकास छात्र वर्ग के रूप में होने लगा। यूनिफार्म ने बड़ा बदलाव किया। पहले स्कूली बच्चों के पोशाक से ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चलता था। बच्चों के बीच श्रेष्ठता और हीनता का भाव भी पनपता था।

    सोचिए, कि 20 वर्ष पहले जिन बच्चों को इस योजना का लाभ मिला, वे आज के युवा हैं। मतदाता भी हैं। हाल-फिलहाल सभी परिवारों की एक महिला को स्वरोजगार के लिए 10 हजार रुपये देने की योजना बनी।

    घोषणा यह की गई है कि 10 हजार रुपये से सफलतापूर्वक कारोबार प्रारंभ करने वाली महिलाओं को आने वाले दिनों में दो लाख रुपये तक दिए जाएंगे। दिसंबर तक इस योजना के अंतर्गत एक करोड़ 80 लाख महिलाओं को 10-10 हजार रुपये दिए जाएंगे।

    महिलाएं इस योजना का लाभ एक वर्ग की तरह ले रही हैं। बदलाव यह आया है कि विरोधी दल की ओर से जो घोषणाएं हो रही हैं, उनमें भी महिलाओं के साथ एक वर्ग की तरह व्यवहार किया जा रहा है। इस योजना के दायरे में एक करोड़ 79 लाख महिलाएं हैं।

    किसान और पेंशनधारी भी एक वर्ग

    किसान और पेंशनधारी आज केंद्र और राज्य सरकार किसानों को एक वर्ग के रूप में संबोधित कर रही हैं। उन्हें प्रोत्साहन के लिए खाते में राशि भेजी जा रही है। किसान सम्मान निधि के रूप में सभी किसानों के खाते में प्रति वर्ष छह-छह हजार रुपये प्रधानमंत्री की ओर से दिए जा रहे हैं।

    कृषि यंत्रों के लिए अनुदान दिए जा रहे हैं। अनाजों की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा सभी किसानों को दी जा रही है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन देने के मामले में भी जातीय भेद समाप्त किया गया है। आर्थिक आधार को रखा गया है।

    आयकर दाता और पहले से किसी योजना के तहत पेंशन पा रहे लोगों को छोड़ कर 60 वर्ष और उससे अधिक के नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन की परिधि में ले आया गया है। इसने बुजुर्गों को सम्मानजनक जीवन का आधार दिया है।

    सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने वालों की कुल संख्या एक करोड़ 40 लाख से अधिक है। सरकारी सेवाओं में आरक्षण को लेकर समाज के एक हिस्से में बड़ा असंतोष था। जातीय संरचना में ऊंची श्रेणी में रहने के बावजूद गरीबों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता था।

    आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए निर्धारित 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ देकर इस समूह को भी संतुष्ट किया गया है। इसके कारण आरक्षण की सुविधा हासिल करने वाला भी एक अलग वर्ग बन गया है। रोजगार और नौकरी की मांग ऐसी है, जिसकी पूर्ति के लिए युवा एक वर्ग की तरह सड़क पर उतर रहे हैं।

    जाति नहीं, गरीबी देखिए

    दो वर्ष पहले सभी दलों की पहल पर जाति आधारित गणना हुई। पता चला कि राज्य में 94 लाख से अधिक ऐसे परिवार हैं, जिनकी मासिक आय छह हजार रुपये या उससे कम है। सरकार ने ऐसे परिवार को कारोबार के लिए दो लाख रुपये देने का नीतिगत निर्णय लिया है।

    इसमें भी जाति के बदले वर्ग को लाभ पहुंचाने के लक्ष्य को देखा जा सकता है। सरकारें पहले भी गरीब कल्याण के लिए योजनाएं चलाती रही हैं, लेकिन वह समाज के सभी गरीबों के लिए नहीं होती थीं।

    शुरुआत अनुसूचित जाति और जनजाति से होती थी, जो पिछड़े वर्गों तक आकर ठहर जाती थी। उन योजनाओं में लाभ लेने के लिए किसी जाति का होना जरूरी होता था।