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    बिहार में क्रानिक पैनक्राइटिस के मामले बढ़े, IGIMS में 148 जटिल सर्जरी सफल; धूम्रपान-शराब मुख्य कारण

    Updated: Sat, 06 Dec 2025 10:47 AM (IST)

    पटना समेत पूरे बिहार में क्रोनिक पैनक्रिएटाइटिस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतें हैं। आईजीआईएमएस में प ...और पढ़ें

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    IGIMS में 148 जटिल सर्जरी सफल

    जागरण संवाददाता, पटना। बदलती जीवनशैली, धूम्रपान-शराब की बढ़ती आदत और असंतुलित खानपान के कारण पटना समेत पूरे बिहार में क्रानिक पैनक्राइटिस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यह खुलासा आईजीआईएमएस के सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एवं लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख और चिकित्सा अधीक्षक प्रो. डॉ. मनीष मंडल द्वारा सिंगापुर में आयोजित इंटरनेशनल कॉलेज ऑफ सर्जन्स (यूएसए) के 44वें द्विवार्षिक विश्व सम्मेलन में पढ़े गए शोध पत्र में किया गया। 

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    डॉ. मंडल ने बताया कि आईजीआईएमएस में पिछले पांच वर्षों में 148 जटिल क्रानिक पैनक्राइटिस मामलों की सफल सर्जरी की गई है, जो राज्य में इस बीमारी के बढ़ते भार को रेखांकित करती है। 

    शोध पत्र में बिहार में बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता जताते हुए जनजागरूकता, स्वस्थ जीवनशैली और समय पर उपचार की विशेष आवश्यकता पर जोर दिया गया है। 

    शोध पत्र के अनुसार, बीमारी बढ़ने के प्रमुख कारण भोजन की गुणवत्ता में गिरावट और खानपान में बदलाव, पश्चिमी फूड हैबिट की नकल, शराब व धूम्रपान का बढ़ता उपयोग, तनावपूर्ण और अस्वस्थ जीवनशैली शामिल है।

    बीमारी के प्रमुख लक्षण

    • लगातार पेट में तेज दर्द
    • स्टीटोरिया (ढीले, तैलीय मल)
    • बढ़ता शुगर लेवल

    उपचार की शुरुआत : एंडोस्कोपिक प्रबंधन

    बताया कि इलाज की पहली सीढ़ी एंडोस्कोपिक तकनीक है। इसमें पैनक्रियाटिक डक्ट की रुकावट दूर की जाती है, कैल्सीफिकेशन हटाया जाता है और जरूरत पर स्टेंट लगाया जाता है। इससे दर्द व शुगर लेवल में सुधार होता है। यदि एंडोस्कोपी और दवा से लाभ न मिले तो सर्जरी आवश्यक हो जाती है। 

    पारंपरिक लेटरल पैनक्रिएटिको-जेजुनोस्टामी (एलपीजे) के साथ अब लैपरोस्कोपिक और रोबोटिक एलपीजे तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, क्योंकि इनमें रक्तस्राव कम होता है, सर्जरी में समय कम लगता है, मरीज जल्दी काम पर लौट पाता है, समय पर सर्जरी से पैनक्रियास की कार्यक्षमता बेहतर होती है और कई मरीजों में डायबिटीज की दवाओं की जरूरत भी कम पड़ सकती है। 

    जटिल स्थितियों में, जहां कैंसर का खतरा रहता है, टोटल पैनक्रिएटेक्टामी और आइसलेट सेल ट्रांसप्लांट किया जाता है।