केरल की सुलगाई 'बीड़ी' को बिहार में बुझाने का प्रयास, सियासी भूचाल के बाद राजेश राम ने मांगी माफी
बिहार में चुनावी माहौल के बीच कांग्रेस की केरल इकाई द्वारा बीड़ी को लेकर की गई एक पोस्ट विवादों में घिर गई। पोस्ट में बीड़ी और बिहार को जोड़कर जीएसटी दरों का उल्लेख था जिससे लोगों में नाराजगी फैल गई। कांग्रेस की बिहार इकाई के अध्यक्ष राजेश राम ने तुरंत माफी मांगी और पोस्ट को हटाया गया। एनडीए ने इस मुद्दे को लपक लिया जिससे कांग्रेस बैकफुट पर आ गई।

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। बिहारी अस्मिता का मुद्दा जनमानस को सामान्य दिनों में भी भावुक कर देता है। यह तो चुनावी वर्ष है, लिहाजा केरल की सुलगाई 'बीड़ी' को कांग्रेस ने बिहार में जल्द-से-जल्द बुझाने का भरसक प्रयास किया।
बी से बीड़ी और बिहार का जुमला उसे इसलिए भी झेलते नहीं बना, क्योंकि इससे जनमानस में क्षोभ की आशंका बढ़ने लगी थी। लिहाजा बिना देर किए कांग्रेस की बिहार इकाई के अध्यक्ष राजेश राम ने सार्वजनिक रूप से क्षमायाचना कर ली।
इस बीच कांग्रेस की केरल इकाई ने भी एक्स से वह पोस्ट हटा दिया, जो बिहार के लिए भद्दा मजाक बन गया था।
बीड़ी और सिगरेट पर जीएसटी की दरों में कमी-बेसी को लेकर कांग्रेस की केरल इकाई ने यह पोस्ट किया था। अपने एक्स हैंडल पर दरों का ब्योरा देते हुए उसने लिखा कि बीड़ी और बिहार की शुरुआत बी अक्षर से होती है! अब इसे पाप नहीं माना जा सकता! आशय यह कि बीड़ी पर जीएसटी में कटौती बिहार में विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत हुई है।
बीड़ी से बिहार के संदर्भ का दूसरा आशय गरीबी ओर बदहाली का समझा गया। दक्षिण-पश्चिम के राज्यों में सक्रिय क्षेत्रीय दलों के नेता बिहार और बिहार-वासियों को आए दिन अपमानित कर जाते हैं, लेकिन कांग्रेस के स्तर पर इस कदर अपमान का संभवत: यह पहला अवसर था।
एनडीए के नेताओं ने इस मुद्दे को लपका
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां के लिए प्रयुक्त गालियों से खार खाए एनडीए के नेताओं ने इस मुद्दे को अविलंब लपक लिया। कांग्रेस की चौतरफा आलोचना होने लगी। पहले पचड़े में तो उसके साथ महागठबंधन के दूसरे घटक दल भी मुंहजोरी कर ले जा रहे थे, लेकिन बिहार की अस्मिता के प्रश्न पर सबसे पहले राजद ने ही पल्ला झाड़ लिया।
अंतत: कांग्रेस ने बैकफुट होने में ही भलाई समझी, अन्यथा बीड़ी के साथ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के वे जहरीले बोल भी सुलगते, जो बिहारवासियों के कलेजे में चुभते हैं। दरभंगा में राहुल गांधी के साथ स्टालिन मंच साझा कर गए हैं और एनडीए उन गड़े मुर्दों को उखाड़ने का अवसर बस ढूंढ़ रहा।
वोटर अधिकार यात्रा के दौरान दरभंगा में ही बने एक मंच से प्रधानमंत्री की मां के लिए अपशब्द कहे गए थे। तब बचाव में महागठबंधन के पास यह तर्क था कि उस मंच पर राहुल और तेजस्वी यादव नहीं थे। इस बार तो कांग्रेस रंगे हाथ थी।
आक्षेप की आंच भी विरोधियों और नेताओं से आगे जनता तक पहुंच रही थी। पहले से आलोचना झेल रही कांग्रेस की बिहार इकाई किसी दूसरे झमेले में नहीं पड़ना चाहती।
बेवजह के पचड़ों में उसे सहयोगियों का साथ भी मिलने से रहा, क्याेंकि अभी महागठबंधन में ही शह-मात का खेल बंद नहीं हुआ है।
जनता तो मुद्दों पर पहले से ही खार खाए हुए है। एसआईआर के बहाने बिहार की परिक्रमा कर कांग्रेस इससे अवगत भी हो चुकी है। इसीलिए उसने इस 'बीड़ी' को बुझा देने में ही भलाई समझी।
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