Bihar Election 2025: पालीगंज में महागठबंधन का पलड़ा भारी, राजद के दम पर NDA को मिलेगी कड़ी टक्कर
पालीगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने सबसे अधिक 6 बार जीत दर्ज की है। बीजेपी आरजेडी और सीपीआई (एमएल) ने 2-2 बार जीत हासिल की है। रामलखन सिंह यादव ने कांग्रेस से सबसे अधिक 6 बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वर्तमान में सीपीआई (एमएल) के डॉ. संदीप सौरभ विधायक हैं। महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर राजद कार्यकर्ता सक्रिय हैं और सीट पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

पालीगंज, अजय कुमार। धान का कटोरा कहा जाने वाला पालीगंज विधानसभा सीट से अब तक 17 विधायक चुने जा चुके हैं। इसमें सबसे अधिक छह बार कांग्रेस के विधायकों ने जीत दर्ज की है। बीजेपी, आरजेडी व सीपीआई-एमएल ने दो-दो बार जीत हासिल की है।
वहीं प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व निर्दलीयों ने एक-एक बार जीत का परचम लहराया है। शेरे बिहार के नाम से प्रसिद्ध रहे कांग्रेस के रामलखन सिंह यादव ने सबसे अधिक छह बार इस विधानसभा का नेतृत्व किया है।
1952 में हुआ था पहला चुनाव
वहीं इनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने अलग-अलग पार्टियों मसलन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से एक बार, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से एक बार और जनता दल से एक बार कुल तीन बार इस विधानसभा सभा से बाजी मारी थी।
पालीगंज विधानसभा का पहला चुनाव 1952 में हुआ था। इसमें कांग्रेस के रामलखन सिंह यादव ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के चंद्रदेव प्रसाद वर्मा इस सीट पर कब्जा जमा लिया।
1962 में फिर कांग्रेस के टिकट पर रामलखन सिंह यादव और 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चंद्रदेव प्रसाद वर्मा विधानसभा पहुंचे। लेकिन 1972 के चुनाव में कांग्रेस ने कन्हाई सिंह को टिकट देकर विधानसभा पहुंचाया।
इसके बाद पुनः रामलखन सिंह यादव सक्रिय हुए और 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट तो हासिल कर ली। इससे नाराज कन्हाई सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ गए और जीत भी हासिल की।
1980 में हुए विधानसभा चुनाव में कन्हाई सिंह हार गए तब से 1990 तक कांग्रेस के रामलखन सिंह यादव ने विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1991 में हुए बाई-इलेक्शन में चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने बाजी मारी और कन्हाई सिंह और रामलखन सिंह यादव को पटखनी देते हुए विधानसभा पहुंच गए।
2000 का चुनाव आरजेडी के नाम
1995 के विधानसभा चुनाव में जनता ने चंद्रदेव प्रसाद वर्मा पर भरोसा जताया और उन्हें विधानसभा पहुंचाया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद 1996 में बाई-इलेक्शन हुआ और इस बार जनता ने भाजपा के जनार्दन शर्मा को जिताया।
वर्ष 2000 का चुनाव आरजेडी के नाम रहा। मतदाताओं ने इस बार स्थानीय दीनानाथ सिंह यादव को सिर माथे बैठाया। लेकिन 2005 के जनरल इलेक्शन में मतदाताओं ने सभी पार्टियों को छोड़ दिया और क्षेत्रीय पार्टी सीपीआई-एमएल के नंदकुमार नंदा को जिताकर विधानसभा भेज दिया।
2010 के चुनाव में डॉ. ऊषा विद्यार्थी ने बीजेपी का झंडा बुलंद किया और क्षेत्र से जीत हासिल की। 2015 में आरजेडी के जयवर्धन यादव उर्फ बच्चा बाबू ने जीत हासिल की। लेकिन 2020 में आरजेडी और सीपीआई-एमएल का गठबंधन हुआ। तब यह सीट सीपीआई-एमएल के खाते में चला गया।
जेएनयू का छात्र बना विधायक
इससे नाराज तत्कालीन विधायक जयवर्धन यादव जेडीयू में चले गए और जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन महागठबंधन का उम्मीदवार सीपीआई-एमएल के डॉ. संदीप सौरभ ने इन्हें चारो खाने चित कर दिया और छात्र राजनीति से निकलकर पहली बार आम चुनाव लड़ रहे जेएनयू का छात्र डॉ. संदीप विधानसभा पहुंच गए।
महागठबंधन से राजद के लड़ने की चर्चा तेज
महागठबंधन के सीट बंटवारे की अभी घोषणा नहीं हुई है लेकिन प्रमुख घटक राजद के कार्यकर्ता सक्रिय है। उनका मानना है कि इस बार सीपीआई-माले का सिटिंग एमएलए है लेकिन इस बार यह सीट राजद के हिस्से आएगी।
इसके लिए राजद से पूर्व विधायक व जिलाध्यक्ष के पक्ष में पेशबंदी की जा रही है। 10 सितंबर से नामांकन शुरू होंगे, ऐसे में अधिकतम गुरुवार तक प्रत्याशी घोषित होने की उम्मीद है।
कुल मतदाता- 2,83,495
पुरुष - 1,49,696
महिला -1,33, 799
पालीगंज विधानसभा की चौहद्दी
उत्तर - बिक्रम प्रखंड
दक्षिण - अरवल जिला
पूरब - मसौढ़ी अनुमंडल व जहानाबाद जिला
पश्चिम - सोन नदी
पांच वर्ष में हुए विकास कार्य
- सुदूरवर्ती गांव समदा में पुनपुन नदी पर बहुप्रतीक्षित पुल का निर्माण कार्य शुरू।
- किसानों के हित में नहर नंबर 9 और 10 की संपूर्ण उड़ाही।
- लोआई नदी पर जरखा को बहादुरगंज से जोड़ने के लिए पुल निर्माण शुरू।
- गांवों में शैक्षिक माहौल बनाए रखने हेतु विभिन्न पंचायतों में पुस्तकालयों की स्थापना।
- ग्रामीण इलाके में 50 से अधिक सड़कों का निर्माण पूरा।
वादे जो नहीं हुए पूरे
- पालीगंज में उच्च शिक्षा के लिए डिग्री कॉलेज की स्थापना नहीं हो सकी।
- सरकार बस स्टैंड को बाजार से बाहर नहीं निकाला जा सका।
- जाम से मुक्ति के लिए बाईपास का निर्माण नहीं हो सका।
- आस्था का केंद्र राम - जानकी मठ की सौंदर्यीकरण नहीं कराई जा सकी।
इस बार चुनावी मुद्दे
- बाजार से बाहर बाईपास का निर्माण
- मृतप्राय पड़े सरकारी ट्यूबवेलों को चालू कराना
- नहरों को दुरुस्त कर पानी को अंतिम छोर तक पहुंचाना
- नगरबाजार को जाम से मुक्ति दिलाना
अपनी उपलब्धियों की चर्चा करते हुए विधायक डॉ. संदीप सौरभ ने कहा कि अपने पांच साल के कार्यकाल में वे जनता के ही बीच रहे। विपक्ष में रहने के बावजूद जनाकांक्षा वाली मुद्दों को सरकार से लड़कर पूरा कराया। कई मुद्दों को विधानसभा के पटल पर रखा गया। परन्तु पूरा नहीं हो सका।
पूर्व विधायक सह पूर्व प्रत्याशी जयवर्द्धन यादव उर्फ बच्चा बाबू ने कहा कि वर्तमान विधायक सरकारी योजनाओं पर अपना मुहर लगा रहे है। जनमानस से जुड़ी समस्याओं से उनको कोई लेना देना नहीं है। उनके कार्यकाल में अफसरों की चांदी कट रही है।
कौन कब जीते
- 1952 - रामलखन सिंह यादव - कांग्रेस।
- 1957 - चंद्रदेव प्रसाद वर्मा - प्रजा सोशलिस्ट पार्टी।
- 1962 - रामलखन सिंह यादव - कांग्रेस।
- 1967 - चंद्रदेव प्रसाद वर्मा -संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी।
- 1972 - कन्हाई सिंह - कांग्रेस
- 1977 - कन्हाई सिंह - स्वतंत्र।
- 1980 - रामलखन सिंह यादव - कांग्रेस।
- 1985 - रामलखन सिंह यादव - कांग्रेस।
- 1990 - रामलखन सिंह यादव - कांग्रेस।
- 1991(बाई इलेक्शन)- चंद्रदेव प्रसाद वर्मा - जनता दल।
- 1995 - चंद्रदेव प्रसाद वर्मा - जनता दल।
- 1996(बाई इलेक्शन)- जनार्दन शर्मा - बीजेपी।
- 2000 - दीनानाथ सिंह यादव - आरजेडी।
- 2005 - नंदकुमार नंदा - सीपीआई/एमएल।
- 2010 - डॉ. ऊषा विद्यार्थी - बीजेपी।
- 2015 - जयवर्द्धन यादव - आरजेडी।
- 2020 - डॉ. संदीप सौरभ - सीपीआई/एमएल।
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