बेटे दीपक प्रकाश को क्यों बनाया मंत्री, किस जहर को पीने की बात कर रहे उपेंद्र कुशवाहा?
उपेंद्र कुशवाहा ने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनाने के फैसले पर अपनी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि यह निर्णय उन्होंने भारी मन से लिया, लेकिन पार्टी और राज्य के हित में आवश्यक था। कुशवाहा ने इस अप्रिय निर्णय को 'जहर पीने' के समान बताया। उन्होंने पार्टी के भीतर के कुछ हालातों का हवाला देते हुए कहा कि उनका उद्देश्य हमेशा पार्टी को मजबूत रखना रहा है। इस फैसले के राजनीतिक निहितार्थों पर भी चर्चा हो रही है।

दीपक प्रकाश बने पंचायती राज विभाग के मंत्री। जागरण आर्काइव
राज्य ब्यूरो, पटना। अपने पुत्र दीपक प्रकाश के नीतीश मंत्रिमंडल (Nitish Kumar Cabinet) में शामिल होने पर आलोचना झेल रहे राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि पार्टी के भविष्य और अस्तित्व को बचाने के लिए यह एक जरूरी कदम है।
उन्होंने शुक्रवार को अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा-अगर आपने हमारे निर्णय को परिवारवाद की श्रेणी में रखा है तो मेरी विवशता को समझिए।
पार्टी के अस्तित्व व भविष्य को बचाने व बनाए रखने के लिए मेरा यह कदम जरुरी ही नहीं अपरिहार्य था। मैं तमाम कारणों का सार्वजनिक विश्लेषण नहीं कर सकता।
लेकिन आप सभी जानते हैं कि पूर्व में पार्टी के विलय जैसा भी अलोकप्रिय और एक तरह से लगभग आत्मघाती निर्णय लेना पड़ा था। जिसकी तीखी आलोचना बिहार भर में हुई।
फिर से शून्य पर पहुंचा सकता था विकल्प
उस वक्त भी बड़े संघर्ष के बाद आप सभी के आशीर्वाद से पार्टी ने सांसद, विधायक सब बनाए। लोग जीते और निकल लिए। झोली खाली की खाली रही। शून्य पर पहुंच गए। पुनः ऐसी स्थिति न आए, सोचना ज़रूरी था।
उन्होंने लिखा-सवाल उठाइए, लेकिन जानिए। आज के हमारे निर्णय की जितनी आलोचना हो, लेकिन इसके बिना फिलहाल कोई दूसरा विकल्प फिर से शुन्य तक पहुंचा सकता था।
भविष्य में जनता का आशीर्वाद कितना मिलेगा, मालूम नहीं। परन्तु खुद के स्टेप से शून्य तक पहुंचने का विकल्प खोलना उचित नहीं था। इतिहास की घटनाओं से यही मैंने सबक ली है।
जहर पीने के समान निर्णय
समुद्र मंथन से अमृत और ज़हर दोनों निकलता है। कुछ लोगों को तो ज़हर पीना ही पड़ता है। वर्तमान के निर्णय से परिवारवाद का आरोप मेरे उपर लगेगा।
यह जानते/समझते हुए भी निर्णय लेना पड़ा, जो मेरे लिए ज़हर पीने के बराबर था। फिर भी मैंने ऐसा निर्णय लिया। पार्टी को बनाए-बचाए रखने की जिद को मैंने प्राथमिकता दी।
अपनी लोकप्रियता को कई बार जोखिम में डाले बिना कड़ा/बड़ा निर्णय लेना संभव नहीं होता। सो मैंने लिया। कुशवाहा ने लिखा-पूर्वाग्रह से ग्रसित आलोचकों के लिए बस इतना ही:-सवाल ज़हर का नहीं था, वो तो मैं पी गया ।
फेल विद्यार्थी नहीं हैं दीपक प्रकाश
तकलीफ़ उन्हें तो बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया। रही बात दीपक प्रकाश की तो जरा समझिए - विद्यालय की कक्षा में फेल विद्यार्थी नहीं है।
मेहनत से पढ़ाई करके कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री ली है, पूर्वजों से संस्कार पाया है। इंतजार कीजिए, थोड़ा वक्त दीजिए उसे।
अपने को साबित करने का। करके दिखाएगा। अवश्य दिखाएगा। आपकी उम्मीदों और भरोसा पर खरा उतरेगा। वैसे भी किसी भी व्यक्ति की पात्रता का मूल्यांकन उसकी जाति या उसके परिवार से नहीं, उसकी काबिलियत और योग्यता से होना चाहिए।

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