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    यहां कभी लगती थी नक्सलियों की जन अदालत, अब लोकतंत्र भरोसे का प्रतीक

    By Prem KumarEdited By: Rajat Mourya
    Updated: Mon, 27 Oct 2025 08:15 PM (IST)

    कैमूर पहाड़ी पर स्थित रेहल गांव, जो कभी नक्सलवाद से त्रस्त था, अब विकास की राह पर है। 2017 में मुख्यमंत्री के दौरे के बाद यहां कई विकास कार्य हुए, जैसे बैंक, थाना और विद्यालय की स्थापना। हालांकि, कुछ समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं, जैसे सौर ऊर्जा प्लांट का खराब होना और पानी की टंकी का बंद होना। ग्रामीणों को अभी भी विकास की और उम्मीदें हैं।

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    यहां कभी लगती थी नक्सलियों की जन अदालत, अब लोकतंत्र भरोसे का प्रतीक

    प्रेम कुमार पाठ, डेहरी आनसोन (रोहतास)। कैमूर पहाड़ी पर बसे रेहल गांव में 20 वर्ष पूर्व जहां नक्सली जन अदालत लगाते थे, अब वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था भरोसे का प्रतीक बन गई है। सरकारी तंत्र सक्रिय दिख रहा है, विकास की बयार बह रही है। अपनी पंचायत सरकार है, उसका अपना भवन है। लोकसभा व विधानसभा चुनाव में मतदान की ललक है।

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    आकांक्षा बस एक ही है, जनप्रतिनिधि ऐसा हो, जो विकास का क्रम जारी रखे। सरकार ऐसी बने, जो सुरक्षा का अहसास बनाए रखे। पुराना स्याह दौर लौटने न दे। हवा में बारूद की गंध नहीं, लहलहाती फसलों की सुवास घुलती रहे। ग्रामीणों को पता है कि 11 नवंबर को मतदान है, इसके लिए अभी से तैयार हैं।

    2017 में मुख्यमंत्री के आगमन के साथ बदली फिजां

    2017 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन के साथ गांव की फिजां बदल गई थी। तब रेहल मैदान में मुख्यमंत्री सभी विभाग के अधिकारियों के साथ पहुंचे थे। उनके आने के पहले हर गली, मोहल्ले की गलियां पक्की बना दी गईं थीं।

    बाद के वर्षों में पहाड़ी पर बसे इस गांव में पंजाब नेशनल बैंक, थाना, आदिवासी आवासीय उच्च विद्यालय भी स्थापित हो गए। 44 करोड़ की लागत से बने विद्यालय में रोहतास, कैमूर जिले के कई गांवों के जनजाति समाज के बच्चे पढ़ाई करते हैं।

    बैंक से जीविका समूह की महिलाएं, किसान, पशुपालक लेन-देन कर व्यवसाय बढ़ाते हैं। पहले छोटे-छोटे विवाद को लेकर नौहट्टा थाना जाना पड़ता था। अब थाना भवन बन रहा है, ताकि लोग सुरक्षित महसूस कर सकें। पूरे गांव में पांच सौर ऊर्जा चालित मिनी वाटर सप्लाई योजना की पानी टंकी लगी है। सौर ऊर्जा चालित विद्युत व्यवस्था भी है। रोहतास से रेहल तक पक्की सड़क बन भी गई है। इससे शहर से संपर्कता आसान हो गई है।

    2003 में तत्कालीन डीएफओ हुए थे बलिदान

    रेहल गांव के निकट ही वन विभाग कार्यालय के निकट वर्ष 2003 में तत्कालीन वन प्रमंडल पदाधिकारी रोहतास संजय सिंह की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। 20 वर्ष पूर्व तक इस गांव में नक्सलियों का समानांतर साम्राज्य था। लोग नक्सलियों का हर फरमान मानने को बाध्य थे। नक्सलियों के भय से कोई अधिकारी गांव नहीं आते थे।

    रामलाल उराव कहते हैं, गांव में बैंक खुल जाने से लेन-देन में सुविधा के साथ लोगों को रोजगार के लिए ऋण भी मिल जाता है। इससे आम लोगों को काफी सुविधा हुई है। विद्यालय भवन बन जाने से कई गांवों के बच्चे पढ़ने-लिखने लगे हैं।

    वहीं, ग्रामीण रामअवतार सिंह खरवार ने बताया कि विकास तो हुआ है किंतु सौर ऊर्जा प्लांट की बैटरी खराब रहने के कारण गांव के अधिकांश हिस्से अंधेरे में हैं। पानी टंकी मामूली मरम्मत के कारण बंद है।

    पिपरडीह पंचायत के मुखिया योगेंद्र उराव ने कबा कि रेहल का विकास तो हुआ है, किंतु पहाड़ी पर बसे अन्य गांवों में भी विकास की दरकार है, ताकि मुख्य सड़क से गांवों तक जुड़ाव हो सके।