Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bihar Assembly Election 2025 : 'रेडियो पर चिपके लोग.. न डीजे और न टीवी', विरोधी भी मिलते थे गले; रील और गाली-गलौज तक कैसे बदली राजनीति?

    By Awadh Bihari Upadhyay Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Sun, 09 Nov 2025 09:42 PM (IST)

    Bihar Election 2025 : वर्ष 1977 का बिहार विधानसभा चुनाव युवा क्रांति के बल पर जनता पार्टी के उदय का साक्षी था। उस समय बैलगाड़ियों से प्रचार होता था और रेडियो मुख्य माध्यम था। अब समय बदल गया है; राजनीति में जात-पात और धर्म का बोलबाला है। प्रचार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग हो रहा है, जिससे माहौल में गिरावट आई है।

    Hero Image

    इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है। 

    अवध बिहारी उपाध्याय, सीतामढ़ी। वर्ष 1977 का बिहार विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प था। कहते हैं मेहसौल चौक, वार्ड 22 निवासी मो ताहिर उर्फ छोटे बाबू (75 )। युवा क्रांति के बल पर कांग्रेस विरोधी लहर पर सवार जनता पार्टी का भाग्य उदय हुआ।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    युवा चाहे किसी समाज या वर्ग का हो उसने अपने भविष्य के लिए जनता पार्टी को वोट ही नहीं किया बल्कि घर-घर प्रचार किया। उस जमाने में प्रचार के लिए लोग बैलगाड़ी से निकलते थे। भारी मात्रा में रसद (राशन) साथ में रहता था। जहां शाम हो जाए वहीं डेरा डाल देते थे।

    खुद चूल्हा जलाते, मिलकर साथ खाना बनाते और खाते फिर कार्यकर्ताओं के संग मिलकर देर रात तक चुनावी रणनीति बनाते थे। सुबह उठकर सबसे पहले गांव के चौपाल पर लोगों से मिलकर उनका हालचाल पूछते और उनसे समर्थन मांगते।

    प्रचार का सबसे अहम माध्यम रेडियो था, जिसपर बड़े नेताओं के भाषण और वक्तव्य को सुनने के लिए लोग सुबह शाम रेडियो पर चिपके रहते थे। न डीजे का शोर था और न ही टीवी। फूहड़ता परोसते गाने की बात तो सुनाई नहीं पड़ते थे। गीत बजते भी थे तो वह भी भोजपुरी व मैथिली के। सादगी के साथ अपनी बात जनता के सामने रखकर लोग प्रचार करते थे।

    विपक्षी दल के प्रत्याशी भी आपस में अच्छे से मिलते थे। कोई कटुता या द्वेष नहीं दिखता था। उत्साह, उमंग और लोकतंत्र की रक्षा का जज्बा हर ओर दिखाई देता था। लेकिन, आज सब बदल गया है। जात-पात और धर्म की राजनीति की जोर ज्यादा है।

    साधारण लोग राजनीति नहीं कर सकते हैं। टिकट जात के आधार पर पैसे के बल पर मिल रहे हैं। पार्टियां भी नीति और सिद्धांत को दरकिनार जात-पात और धर्म की बात करती है। कार्यकर्ता केवल जिंदाबाद मुर्दाबाद और दरी बिछाने के लिए रह गए हैं। प्रचार का माध्यम भी फेसबुक और इंटरनेट मीडिया बना है। अश्लील रील बना एक दूसरे को नीचा दिखाने में नेता जुटे हैं।कार्यकर्ता भी वाट्स एप पर गाली गलौज कर माहौल को गंदा कर रहे हैं।