Bihar Politics: जब आम सभा थी उम्मीदवार चयन की कसौटी, हाजीपुर की पुरानी राजनीति की झलक
हाजीपुर में उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया कभी अनोखी थी। उम्मीदवारों को चुनने से पहले एक आमसभा आयोजित की जाती थी, जहाँ जनता अपनी राय व्यक्त करती थी। राजनीतिक दल जनता की राय को महत्व देते थे, और उम्मीदवार जनता के सवालों का जवाब देते थे। यह पुरानी परंपरा हमें उस समय की राजनीति की याद दिलाती है जब जनता की राय सबसे ऊपर थी। आज ऐसी आमसभाएं कम ही देखने को मिलती हैं।

तब आमसभा में मिले समर्थन के आधार पर उम्मीदवार का किया जाता था चयन। फोटो जागरण
रविशंकर शुक्ला, हाजीपुर। एक वह दौर था, जब जनसमर्थन को खुली सभा होती थी। बात आज से 56 वर्ष पूर्व वर्ष 1969 की है। आचार्य राममूर्ति हाजीपुर आए थे। हाजीपुर शहर के कचहरी मैदान में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले सभी दलों के नेता जुटे थे।
अधिवक्ता ब्रह्मदेव सिंह, स्वतंत्रता सेनानी किशोरी प्रसन्न सिंह, बसावन सिंह समेत कुल नौ लोग जुटे। राममूर्ति जी ने दस-दस मिनट का समय सभी को अपनी बात रखने को दिया। मतदाताओं की भारी जुटान हुई थी।
सभी ने एक-एक कर अपनी-अपनी बातें रखी। इसके आधार पर उम्मीदवार का चयन किया गया था। तब राजनीति में एक स्वस्थ प्रतियोगिता होती थी। आज राजनीतिक दल बंद कमरे में यह तय कर देते हैं कि किसे टिकट देना है। योग्यता की कोई शर्त नहीं। राजनीति आज इसी कारण रास्ते से भटक रहा है। सामूहिक पहल करने की आवश्यकता है।
जिले के बड़े समाजवादी नेता मोती लाल कानन ने करीब एक दशक पूर्व दैनिक जागरण से खास बातचीत में वर्तमान राजनीतिक हालात पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि आज विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कम से कम एक करोड़ रुपये चाहिए। इससे ज्यादा भी खर्च होता है।
आज राजा, सेठ, साहुकार एवं करोड़पति ही चुनाव लड़ सकता है। गरीब पीछे छूट रहा है। अमीर सत्ता पर काबिज हो रहे हैं। यह गैर-बराबरी लोकतंत्र के लिए घातक है। कहा था कर्पूरी ठाकुर के शब्दों में भयंकर व भयावह स्थिति है।
ऐसे तो लोकतंत्र की परिकल्पना ही नेस्तनाबूद हो जाएगी। कमोवेश सभी राजनीतिक दल एक ही रास्ते पर चल रहे हैं। अब वह वक्त आ गया है जब लोकतंत्र को बचाने को सभी को आगे आने एवं सामूहिक पहल करने की जरूरत है।
समाजवादी कानन के रग-रग में था समाजवाद
मोतीलाल कानन ने 1955 में आचार्य विनोवा भावे के भूदान आंदोलन से सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में कदम रखा। कानन ने 1957 में यूपी के फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र में डॉ. राम मनोहर लोहिया के चुनाव में एक माह तक काम किया। 1965-66 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री बने।
उसी वर्ष राजनीतिक प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार कर जेल भेजे गये। 1962 से 1971 तक हाजीपुर के हरिहरपुर सुभई पंचायत के मुखिया रहे। 1967 में पहली बार हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र से संसोपा के टिकट पर चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे।
1969 में पहली बार निर्दलीय हाजीपुर के विधायक बने। 1969 में भोला पासवान शास्त्री की सरकार में राजस्व एवं भूमि सुधार व कार्मिक विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे। 1971 में कर्पूरी ठाकुर के मंत्रीमंडल में ग्रामीण विकास, पंचायती राज, सामुदायिक विकास व आरईओ समेत कई विभागों के कैबिनेट मंत्री रहे। 1972 में फिर संसोपा के टिकट पर विधायक चुने गए। 1985 में कर्पूरी ठाकुर की पार्टी दमापिपा से विधायक चुने गए।
तक चुनाव प्रचार-प्रसार होता था साइकिल एवं टमटम से
कानन ने तब कहा था कि कहां वो जमाना और कहां आज के हालात चुनाव प्रचार-प्रसार तब साइकिल एवं टमटम से होता था। लोग पैदल गांव-गांव घूमकर प्रचार करते थे। उस जमाने में उनके पास एक जर्जर जीप हुआ करती थी।
हालांकि, उन्हें लोगों के साथ पैदल प्रचार करने में ही आनंद आता था। सैकड़ों लोग उम्मीदवार के पक्ष में साइकिल से जुलूस निकालते थे। बूथ पर खर्च की तो उस समय कोई चर्चा ही नहीं करता था।
यह लोगों एवं गांव के लिए शर्मिंदगी की बात हुआ करती थी। यही वजह थी कि जीतने के बाद भी आम जनता व नेता के बीच परस्पर प्रेम एवं रिश्ता हुआ करता था। वे मंत्री थे, हर शनिवार को क्षेत्र में आते थे एवं लोगों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनते थे। सोमवार को फिर पटना वापसी होती थी।
इस हालात में सामान्य आदमी दूर हो जाएगा राजनीति से
कानन ने कहा था कि आज भयावह एवं भयंकर है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि एक सामान्य आदमी चुनाव लड़ने की नहीं सोच सकता। ऐसे में तो गरीब आदमी राजनीति से बिलकुल दूर ही हो जाएगा। राजा, सेठ, साहुकार और करोड़पति ही चुनाव लड़ेगा।
यह रवैया लोकतंत्र के लिए काफी घातक है। ऐसे तो लोकतंत्र ही मिट जाएगा। जंगली कानून हो जाएगा। मजबूत हावी हो जाएगा कमजोर पर। लोकतंत्र में राजा के वोट की जो हैसियत है वही हैसियत एक आम आदमी के वोट की भी है।
हमारा लोकतंत्र समानता का अधिकार देता है। वर्तमान हालात में एकजुट होकर लोकतंत्र को कमजोर होने से बचाना होगा। आज से करीब पांच वर्ष पूर्व समाजवादी नेता इस दुनिया से चले गए पर उनकी यह बातें आज भी वर्तमान हालात में बदलाव के साथ स्वस्थ राजनीति का संदेश दे रहा है।
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