हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला में गूंजा था धर्म की जय हो का राष्ट्रव्यापी महामंत्र, जानिए 110 वर्ष पूर्व की कहानी
हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। 1915 में, यहाँ एक विशाल सनातन धर्म सम्मेलन हुआ, जिसमें दरभंगा, रीवा और हथुआ के महाराजाओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन में सनातन धर्म की रक्षा और प्रचार का संकल्प लिया गया। 'धर्म की जय हो' का महामंत्र यहीं से प्रसारित हुआ। आज भी इस सम्मेलन की गूंज श्रद्धालुओं के मन में बसी है।

सम्मेलन में सभापति दरभंगा महाराज के बाईं ओर महाराज रीवा और दाईं ओर हथुआ महाराज विराजमान थे
अवध किशोर शर्मा, हाजीपुर (वैशाली)। विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला अपने धार्मिक और आध्यात्मिक गौरव के लिए जाना जाता है। यह मेला सारण जिले के पूर्वी द्वार पर नारायणी, जाह्नवी और मही नदियों के पवित्र संगम तट पर सदियों से आयोजित होता आ रहा है।
आज से 110 वर्ष पूर्व, वर्ष 1915 में इस मेले में देशभर के राजा-महाराजाओं का अभूतपूर्व एकत्रीकरण हुआ था। इसी अवसर पर आयोजित अखिल भारत वर्षीय सनातन धर्म सम्मेलन में सनातन धर्म की रक्षा और उसके प्रचार-प्रसार का संकल्प लिया गया था।
इस ऐतिहासिक सम्मेलन के सभापति दरभंगा महाराज थे, जबकि महाराज रीवा मुख्य अतिथि और हथुआ महाराज सम्मेलन के संरक्षक रहे।
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो, यह महामंत्र इसी हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले से पूरे देश में प्रसारित हुआ था।
यह सम्मेलन 1915 के कार्तिक मेले के दौरान सोनपुर स्थित अखिल भारत वर्षीय सनातन धर्म सभा भवन में आयोजित हुआ था, जिसमें 20 से 25 हजार श्रद्धालु उपस्थित थे।
27 नवंबर 1915 को पाटलिपुत्र नामक अखबार ने लिखा था कि सम्मेलन में सभापति दरभंगा महाराज के बाईं ओर महाराज रीवा और दाईं ओर हथुआ महाराज विराजमान थे।
सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष व्याख्यान वाचस्पति पंडित दीन दयालु शर्मा ने अपने स्वागत भाषण में कहा था कि महाराज रीवा के शुभ आगमन से आज यहां की अपूर्व शोभा हो गई है।
जिस प्रकार हरिहरक्षेत्र में नारायणी, जाह्नवी और मही का संगम होता है, उसी प्रकार आज यहां रीवा, दरभंगा और हथुआ नरेशों का सम्मेलन हुआ है।
महाराज रीवा विष्णु रूप में, दरभंगा महाराज शिव रूप में और महाराज हथुआ ब्रह्मा स्वरूप में एकत्र हुए हैं। आज यह त्रिदेवों का संगम यथार्थ में धर्म सम्मेलन बना है।
धर्म सम्मेलन में गूंजा था सनातन धर्म की जय का उद्घोष
इस सम्मेलन में धर्म की जय का उद्घोष जन-जन की वाणी बन गया था। राजा-महाराजाओं के संरक्षण से आम जनता में भी अपार उत्साह देखने को मिला।
पाटलिपुत्र अखबार ने अपने अंक में लिखा था कि सर्वप्रथम महाराज रीवा ने धर्मसभा मंडप के द्वार पर दर्शन दिया, जहां जनता ने उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया।
सभा मंडप में प्रवेश करते हुए महाराज दरभंगा और महाराज हथुआ ने आगे बढ़कर रीवा महाराज की अभ्यर्थना की।
ब्राह्मण भक्त महाराज रीवा ने दोनों नरेशों के चरण स्पर्श कर प्रणाम किया। अखबार ने लिखा कि यह दृश्य उस समय ब्राह्मण गौरव और धर्मात्मा नरेशों की परंपरा का प्रतीक था।
दंडीस्वामी स्वामी सहजानंद सरस्वती की पुस्तक में है इसका वर्णन
दंडीस्वामी स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ब्रह्मर्षि वंश विस्तर में इस धर्म सम्मेलन का विस्तार से वर्णन किया है।
उन्होंने लिखा कि यह आयोजन सनातन धर्म के प्रचार और जनजागरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। तब से लेकर आज तक हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला सनातन धर्म की अलख जगाता आ रहा है।
भले ही अब राजा-महाराजा या उनके वंशज इस मेले में भाग नहीं लेते, लेकिन 1915 में आयोजित उस सम्मेलन की गूंज आज भी श्रद्धालुओं के मन में विद्यमान है।
दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह सनातन धर्म के महान प्रचारक थे, जिन्होंने अनेक मठों और मंदिरों का निर्माण कराया। हथुआ महाराज गुरु महादेव आश्रम प्रसाद शाही बहादुर इस सम्मेलन के संरक्षक थे, जबकि महाराज रीवा वेंकट रमण सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
ये तीनों महाराज अखिल भारत वर्षीय सनातन सभा की रीढ़ माने जाते थे। इन तीनों धर्मात्मा नरेशों की उपस्थिति से हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले का पूरा वातावरण उस समय भक्ति और अध्यात्म से ओतप्रोत हो गया था।

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