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    9 महीने से कैदी नहीं पेश कर रहे थे मोतिहारी केंद्रीय जेल के काराधीक्षक, बगहा कोर्ट ने रोका वेतन

    Updated: Wed, 10 Dec 2025 02:37 PM (IST)

    बगहा कोर्ट ने मोतिहारी केंद्रीय जेल के काराधीक्षक का वेतन रोका और डीएम को रामचंद्र यादव को पेश करने का आदेश दिया। कोर्ट ने पाया कि अधीक्षक 9 महीने से ...और पढ़ें

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    बगहा कोर्ट ने रोका वेतन

    संवाद सहयोगी, बगहा। जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ बगहा मानवेन्द्र मिश्र ने मोतिहारी के केंद्रीय काराधीक्षक के वेतन पर रोक लगाते हुए उक्त कारा में बंद अभियुक्त रामचंद्र यादव को 23 दिसम्बर को बगहा न्यायालय में पेश कराने के लिए मोतिहारी डीएम को पत्र भेजा है। 

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    मोतिहारी डीएम को भेजे गए पत्र में बताया गया है कि 10 दिसम्बर को उपरोक्त न्यायालय में अभिलेख प्रस्तुत हुआ। पुकार पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हुए। अभिलेख पूर्व से अभियुक्तों के दप्रस की धारा 313 के अंतर्गत बयान अंकित करने हेतु लंबित चला आ रहा है। 

    मार्च 2025 को मोतिहारी मंडल कारा स्थानांतरित 

    बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता निवेदन करते है कि सजावार बंदी सह ठकराहा थाने के हरख टोला निवासी बली यादव का पुत्र रामानंद यादव को बगहा जेल से एक मार्च 2025 को मोतिहारी मंडल कारा स्थानांतरित किया गया है। 

    इस वाद में अभियुक्त रामानंद यादव का सदेह उपस्थिति अनिवार्य है, पूर्व में अनेक बार बगहा कारा अधीक्षक एवं मोतिहारी केन्द्रीय कारा अधीक्षक को इस संबंध में अवगत कराया जा चुका है किंतु वे लगातार अल्प अवधि का हवाला देकर अभियुक्त रामानंद यादव को न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर रहे है। जिससे अग्रिम कार्यवाही बाधित हो रही है। 

    15 साल पुराना मामला

    यह वाद लगभग पन्द्रह वर्ष पुराना है तथा सूचक चन्देश्वर यादव पिता विश्म्भर यादव साकिन हरख टोला थाना ठकराहा जिला पश्चिम चम्पारण द्वारा दिये गये आवेदन पर 27 जून 2010 को हत्या के प्रयत्न जैसे गंभीर अपराध में दर्ज कराया गया था। इस वाद में अभियोजन द्वारा कुल नौ साक्षियों का साक्ष्य कराया जा चुका है। 

    उच्च न्यायालय पटना द्वारा पुराने वादों को निस्तारण करने का दिन-प्रतिदिन सुनवाई कर निस्तारण करने का आदेश प्राप्त है, ऐसी दशा में मोतिहारी मंडल कारा अधीक्षक के द्वारा इस न्यायालय में अभियुक्त रामानंद यादव को प्रस्तुत नही करने से इस वाद की अग्रिम कार्यवाही बाधित हो रही है। अतः उनके विरुद्ध विधि सम्मत कार्यवाही की जाये।

    8 महीने से कोर्ट में पेशी नहीं

    विद्वान अभियोजन पदाधिकारी निवेदन करते है कि बचाव पक्ष का यह कहना सही है कि 12 नवम्बर 2024 अर्थात् पिछले एक वर्ष से यह वाद अभियुक्तों के बयान अंकित करने हेतु लंबित चला आ रहा है। जबकि एक मार्च 2025 से इस वाद में वांछित अभियुक्त रामानंद यादव मोतिहारी केन्द्रीय कारा में निरुद्ध है। 

    पिछले लगभग नौ माह से न्यायालय द्वारा उक्त अभियुक्त को उपस्थापन हेतु अनेक बार निर्देश दिये गये है किन्तु मोतिहारी केन्द्रीय कारा अधीक्षक न्यायिक आदेश का अनुपालन करने में असमर्थ रहे है। अगर उनके विरुद्ध न्यायालय द्वारा विधि सम्मत कार्यवाही की जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नही है।

    उभय पक्षों को सुना, अभिलेख का अवलोकन किया, स्पष्ट है कि वाद लगभग 15 वर्ष पुराना है। अभिलेख लगभग एक वर्ष अभियुक्त रामानंद यादव के उपस्थापन हेतु लंबित चला आ रहा है। 

    मार्च 2025 को ही प्रोडक्शन वारंट निर्गत 

    जबकि न्यायालय के द्वारा उक्त अभियुक्त रामानंद यादव को न्यायालय में उपस्थित करने हेतु छह मार्च 2025 को ही प्रोडक्शन वारंट निर्गत किया जा चुका है। कार्यालय अधीक्षक उपकारा बगहा को भी न्यायालय द्वारा 29 अक्टूबर 2025 को पुनः अभियुक्त रामानंद यादव को उपस्थापन हेतु अधिपत्र निर्गत किया गया था। 

    जिसके अनुसरण में अधीक्षक उपकारा बगहा ने बगहा न्यायालय को जानकारी दिया कि 29 नवंबर 2025 को मोतिहारी केन्द्रीय कारा अधीक्षक को पुनः उपस्थापन संबंधी न्यायिक आदेश से अवगत कराया गया। 

    पक्षकारों को पहचान कर उन पर जुर्माना लगाने का निर्देश

    पिछले लगभग नौ माह से मोतिहारी काराधीक्षक के द्वारा अभियुक्त को न्यायालय में उपस्थापन करने के बजाय पत्राचार ही किया जा रहा है। जिसके वजह से वाद की कार्यवाही बाधित हो रही है। इस वाद के निस्पादन में विलंब का मुख्य वजह मोतिहारी केन्द्रीय काराधीक्षक द्वारा न्यायिक आदेश का अनुपालन नहीं किया जाना है। 

    जिसके बाद न्यायालय ने दप्रस की धारा 309 त्वरित विचारण के संबंध में न्यायालय को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह वाद में विलंब करने वाले पक्षकारों को पहचान कर उन पर जुर्माना अधिरोपित करें। 

    कारण कि इस तरह का मामला पहले भी सुजय कुमार बनाम् बिहार राज्य में माननीय उच्च न्यायालय पटना द्वारा भी यह निर्धारित किया गया है कि वाद में स्थगन के लिए जिम्मेदार पक्ष पर जुर्माना अधिरोपित कर उनके विरुद्ध विधि सम्मत कार्यवाही के साथ ही न्यायालय के आदेश का अनुपालन न करने पर संबंधित पदाधिकारी के विरुद्ध न्यायिक अवमानना के कार्यवाही के दिशा में भी न्यायालय को कदम उठाना चाहिए।

    काराधीक्षक के वेतन को रोकने का आदेश

    उपरोक्त विधिक प्रावधानों तथा माननीय उच्च न्यायालय पटना के निर्णय के आलोक में जिला पदाधिकारी मोतिहारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वे मोतिहारी केन्द्रीय काराधीक्षक के वेतन को जीवन निर्वाह भत्ता छोड़कर न्यायिक आदेश के अनुपालन करने तक बंद कर दें तथा अपने द्वारा की गई कार्यवाही से पन्द्रह दिनों के अन्दर इस न्यायालय को अवगत कराये।