सिकटा सीट: बिहार चुनाव 2025 में एनडीए में टिकट को लेकर रस्साकशी
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए गठबंधन में सिकटा सीट पर दावेदारी को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। बीजेपी और जेडीयू दोनों ही पार्टियां इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतारना चाहती हैं। टिकट पाने के लिए नेता पटना तक दौड़ लगा रहे हैं, और अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। गठबंधन धर्म का पालन करने की बात कही जा रही है, लेकिन अंदरखाने टिकट को लेकर खींचतान जारी है।

मनोज मिश्र, बेतिया। पश्चिमी चंपारण की नौ विधानसभा सीटों में आठ पर एनडीए का कब्जा है, लेकिन सिकटा विधानसभा सीट हमेशा से अलग राजनीतिक राह पर रही है। वर्तमान विधायक वीरेंद्र गुप्ता माले के हैं। सिकटा में पिछले चुनावों का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। जदयू और भाजपा दोनों ही इस सीट पर पहले जीत चुके हैं। इस बार दोनों दलों के दावेदार पटना में लगातार बैठकें और टिकट को लेकर पैरवी कर रहे हैं।
वर्ष 1995 में दिलीप वर्मा ने खुद की चंपारण विकास पार्टी से इस सीट से विजय हासिल की। वर्ष 2000 में वे बीजेपी का दामन थाम लिए और दोबारा विधायक चुने गए। 2005 में खुर्शीद आलम कांग्रेस पार्टी के टिकट पर यहां से विधायक बने, लेकिन 2010 में दिलीप वर्मा ने निर्दलीय चुनाव जीतकर अपना दबदबा दिखाया।
वर्ष 2015 में जदयू के खुर्शीद आलम ने चुनाव जीतकर मंत्री पद संभाला था। पूर्व में यहां से भाजपा और जदयू के प्रत्याशी जीत चुके हैं, इस कारण इस बार भी एनडीए के दोनों घटक दलों के बीच टिकट को लेकर गहरी सियासी जंग चल रही है। दोनों दलों के करीब एक दर्जन नेता टिकट के लिए पटना का चक्कर लगा रहे हैं। कुछ नेता तो स्थायी रूप से पटना में डेरा डाल दिया हैं।
भाजपा और जदयू दोनों के नेताओं की सक्रियता ने यह साफ कर दिया है कि सीट पर उम्मीदवार का चुनाव आसान नहीं होगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि सिकटा सीट पर सही उम्मीदवार का चयन सिर्फ पार्टी के लिए ही नहीं, वरन जिले की राजनीति पर असर डालेगा।
आने वाले हफ्ते में फैसला होने की उम्मीद
चुनावी पंडितों का मानना है कि सीट पर उम्मीदवार का फैसला आने वाले हफ्तों में होगा और दोनों दलों के नेताओं की दावेदारी इसे और रोचक बना रही है। एनडीए के लिए संतुलित रणनीति अपनाना जरूरी है, ताकि सीट का लाभ विपक्ष के हाथ न जाए। हालांकि, इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए महागठबंधन भी पूरी तरह सतर्क है। अभी तक किसी पार्टी ने आधिकारिक रूप से उम्मीदवार का एलान नहीं किया है। इससे राजनीतिक माहौल और भी गर्म हो गया है।
स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं की सक्रियता को देखते हुए यह माना जा रहा है कि आने वाले हफ्तों में सीट पर अंतिम उम्मीदवार का निर्णय होगा। सिकटा विधानसभा सीट पर भाजपा और जदयू दोनों की बराबर दावेदारी ने इसे इस चुनाव का सबसे रोमांचक केंद्र बना दिया है। आने वाला समय तय करेगा कि एनडीए की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है और कौन बनेगा इस सीट का अगला प्रतिनिधि।
सिकटा विधानसभा सीट से अब तक जीते प्रत्याशी
वर्ष | प्रत्याशी | दल |
---|---|---|
1952 | फैयाजुल रहमान | कांग्रेस |
1957 | रैफुल आजम | कांग्रेस |
1962 | रैफुल आजम | स्वतंत्र |
1967 | उमाशंकर शुक्ल | सीपीआईएम |
1969 | रैफुल आजम | कांग्रेस |
1972 | फैयाजुल आजम | कांग्रेस |
1977 | फैयाजुल आजम | कांग्रेस |
1980 | धर्मेश प्रसाद वर्मा | जनता पार्टी |
1985 | धर्मेश प्रसाद वर्मा | जनता पार्टी |
1990 | फैयाजुल आजम | स्वतंत्र |
1995 | दिलीप वर्मा | चंपारण विकास पार्टी |
2000 | दिलीप वर्मा | भाजपा |
2005 | खुर्शेद आलम | कांग्रेस |
2010 | दिलीप वर्मा | स्वतंत्र |
2015 | खुर्शेद आलम | जदयू |
2020 | वीरेंद्र गुप्ता | भाकपा माले |
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