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    Bihar News: उमस भरी गर्मी से पशुओं पर बीमारी का खतरा, घटा दूध का उत्पादन; यहां समझें बचाव का उपाय

    Updated: Tue, 17 Jun 2025 03:13 PM (IST)

    भीषण गर्मी के कारण पशुओं में लू लगने का खतरा बढ़ गया है। पशु चिकित्सकों के अनुसार पशुओं को छायादार स्थानों पर रखना चाहिए और पर्याप्त पानी पिलाना चाहिए। लू लगने के लक्षणों में तेज बुखार और हांफना शामिल हैं। पशुपालकों को पशुओं की उचित देखभाल करनी चाहिए ताकि दूध उत्पादन में कमी न हो और पशु स्वस्थ रहें। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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    टाप: उमस भरी गर्मी से पशुओं पर बीमारी का खतरा, घटा दूध का उत्पादन

    जागरण संवाददाता, बेतिया। बेतिया जिले में इन दिनों भीषण गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, जिससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है।

    विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है, जिससे मानवीय गतिविधियों के साथ-साथ जानवरों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

    विशेष रूप से, पशुपालकों के लिए यह समय अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि गर्मी का बढ़ता असर पशुओं में विभिन्न रोग फैलाने का कारण बन सकता है।

    गर्म मौसम और उच्च तापमान के चलते पशुओं में ''हीट स्ट्रोक'' या ''सन स्ट्रोक'' का खतरा बढ़ जाता है। यह स्थिति तब होती है जब पशु लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी में रहते हैं और उन्हें ठंडी जगह पर नहीं रखा जाता।

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    पशुपालकों के लिए यह आवश्यक हैं कि वे अपने जानवरों को ठंडी, छायादार जगहों पर रखें, ताकि वे सीधे सूर्य की किरणों से बच सकें।

    पशु चिकित्सक डॉ. अवधेश का कहना है, “इन दिनों पशुओं को बगीचों और पेड़ों की छांव में रखना बहुत महत्वपूर्ण है।

    यह न केवल उनकी सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि दूध उत्पादन में भी सुधार लाने में मदद करता है। गर्मी के कारण दुधारू पशुओं में दूध की कमी हो सकती है, जो पशुपालकों के लिए गंभीर आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है।

    विभागीय जानकारी के अनुसार, जिले में वर्तमान में लगभग 350356 पशुओं की आबादी है और प्रतिदिन इनसे 1401424 लीटर दूध प्राप्त होता है।

    अगर इनकी उचित देखभाल नहीं की गई, तो न केवल पशुओं के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, बल्कि दूध उत्पादन में भी गिरावट आएगी। इससे दूध की उपलब्धता पर भी असर पड़ेगा, जो स्थानीय बाजारों में दूध की कीमतों को बढ़ा सकता है।

    पशु चिकित्सक ने बताया कि पशुपालकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने पशुओं को समय समय पर पानी पिलाएं और उनके लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री उपलब्ध कराएं।

    इसके अलावा, पशुओं की देखभाल में लापरवाही न बरतें और किसी भी असामान्य लक्षण पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें। इस तरह, गर्मी के इस कठिन दौर में हम अपने पालतू जानवरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

    पशुओं में लू लगने के लक्षण

    पशुओं में लू लगने के कई लक्षण होते हैं। जिसमें तेज ज्वर की स्थिति पशुओं द्वारा मुंह खोल कर वह जोर-जोर से सांस लेना हाफना तथा मुंह से लार गिराना है।

    लू लगने के कारण पशुओं के भूख में कमी हो जाती है तथा पानी अधिक पीना वह पेशाब कम होना भी आरंभ हो जाता है। इस क्रम में पशुओं की धड़कन तेज हो जाती है।

    पशुओं को लू से बचाने का उपाय

    पशुओं को लू लगने से बचाने के लिए उसे धूप से दूर रखना चाहिए। पशुओं को हवादार घर तथा छायादार वृक्ष के नीचे रखना चाहिए। ताकि सूर्य की सीधी किरण पशुओं को नहीं लगे।

    खासकर पशुओं को ठंडा रखने के लिए जूट अथवा टाट का छप्पर होना चाहिए। पंखे अथवा कूलर का यथासंभव उपयोग करना चाहिए। पशुओं को स्वच्छ जल पिलाना चाहिए।

    साथ ही समुचित आहार के साथ साथ उचित मात्रा में खनिज मिश्रण देना चाहिए। भैंस को दिन में दो-तीन बार नहलाना चाहिए। जबकि पशुओं को चराने के लिए अहले सुबह तथा संध्या में देर से भेजना चाहिए।

    यह है उपचार

    पशु चिकित्सक डॉ. अतुल कुमार कहते है कि सर्वप्रथम पशुओं के शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए उसे ठंडे स्थान पर रखना आवश्यक है।

    पशु को पानी से भरे गड्ढे में रखना चाहिए। पूरे शरीर पर ठंडे पानी का छिड़काव करना व संभव हो तो बर्फ या अल्कोहल पशुओं के शरीर पर लगाना चाहिए।

    ठंडे पानी में तैयार किया हुआ चीनी, भुने हुए जौ या आटा में थोड़ा सा नमक का घोल बराबर पिलाते रहना चाहिए। इसके साथ ही पशु को पुदीना व प्याज का आर्क बना कर देना, शरीर के तापमान को कम करने वाले औषधि का प्रयोग करना अनिवार्य होता है। साथ ही पशुओं के शरीर में पानी की कमी को पूरा कराने के लिए इलेक्ट्रोलाइट थेरेपी करना अनिवार्य है।

    सुखाड़ प्रभावित क्षेत्रों में पशुपालकों को देना चाहिए ध्यान

    सूखाड़ प्रभावित क्षेत्रों में पशुपालकों को पशुओं को छायादार स्थानों पर रखने व पर्याप्त पेयजल व्यवस्था रखने, पशुओं को आवश्यक मात्रा में चारा दाना उपलब्ध कराने, विषम परिस्थिति में बबूल, शीशम, पीपल आदि के पत्ते का उपयोग सीमित मात्रा में किया जा सकता है।

    कम पानी की खपत वाले पशु चारा बाजरा, ज्वार, मक्का उगाई जा सकती है। पशु चिकित्सकों के अनुसार अपरिपक्व ज्वार बाजरा के पौधों पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए। इससे पशुओं के जान का खतरा हो सकता है। पशुओं को लावारिस नहीं छोड़ना चाहिए।

    एक नजर में प्रखंडवार पशुओं की सूची

    प्रखंड - गाय - बैल - भैस - भैसा - शहरी पशु

    बगहा- 4494- 24023- 5209- 12328- 56061

    बैरिया- 2733- 27772- 1778- 13484- 45767

    बेतिया- 417- 7116 - 151- 2561- 11903

    भितहा-1096- 7454 - 386- 5138- 14074

    चनपटिया-2670-25494- 4701- 10534- 52092

    गौनाहा- 2923- 13063- 4476- 11415- 31877

    योगापट्टी-8355- 29295- 4427- 2113-263209

    लौरिया- 1251- 14780 - 798- 10065- 26894

    मधुबनी- 1919- 7911- 780- 7377- 19987

    मैनाटांड- 1314- 8879- 972- 8257- 19422

    मझौलिया- 2096- 40750- 615- 30270- 73731

    नरकटियागंज-2132- 38562-2328- 21977- 64999

    नौतन- 2557- 33962- 685- 14656- 51860

    पिपरासी- 903- 1783- 482- 4318- 7486

    रामनगर- 6641- 17989- 7757- 6947- 39334

    सिकटा- 913-15776- 397- 11595- 28683

    ठकराहा- 460- 11050- 125- 8187- 19822

    कुल पशु - 683846 (बकरी व मुर्गा आदि को छोड़कर)

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