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    West Champaran : उम्र ढल गई, पर उम्मीद नहीं टूटी-80 वर्षीय महिला को 20 साल बाद न्याय

    By Tufani Chaudhary Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Tue, 18 Nov 2025 05:14 PM (IST)

    पश्चिम चंपारण के धनहा थाना क्षेत्र में 2005 के अपहरण मामले में 80 वर्षीय मालती देवी को 20 साल बाद बगहा न्यायालय ने बरी कर दिया। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने सबूतों के अभाव में यह फैसला सुनाया। मालती देवी के पति की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई थी। अदालत ने कहा कि आरोपों को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं। इस फैसले से वृद्धा और उनके परिवार को राहत मिली है।

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     80 वर्षीय मालती देवी। जागरण

    संवाद सहयोगी, बगहा (पश्चिम चंपारण)। पश्चिम चंपारण के पुलिस जिले के धनहा थाना क्षेत्र में शादी की नीयत से अपहरण के एक पुराने मामले में लगभग 20 वर्ष बाद न्याय मिला है। इस मामले में नामजद 80 वर्षीय मालती देवी को मंगलवार को बगहा न्यायालय ने बरी कर दिया। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र की अदालत ने विस्तृत सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।
    मामला वर्ष 2005 का है। जब जयनारायण साह ने अपनी पुत्री के अपहरण का आरोप लगाते हुए धनहा थाना में कांड संख्या 25/2005 दर्ज कराया था। इस प्राथमिकी में विरेन्द्र सहनी, उसके पिता नारायण सहनी और उसकी मां मालती देवी को नामजद किया गया था।

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    पुलिस ने जांच के बाद तीनों के खिलाफ आरोप पत्र बगहा न्यायालय में प्रस्तुत किया था। इस बीच सुनवाई के दौरान आरोपित नारायण सहनी की स्वाभाविक मृत्यु हो गई।
    25 जून 2011 को न्यायालय ने इस मामले में आरोप का गठन किया और अभियोजन साक्ष्य की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद लगातार 11 वर्षों तक मामला अदालत में चलता रहा।

    इस अवधि में अभियोजन ने कुल सात साक्षियों को प्रस्तुत किया, लेकिन सातों ने अदालत में स्पष्ट किया कि मालती देवी का इस मामले में कोई दोष नहीं है। आरोपों को समर्थन करने वाले साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराए जा सके। गवाहों के बयान में विरोधाभास और प्रमाणों के अभाव में मामला धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया।

    हाथ में लाठी लिए अदालत पहुंची मालती

    80 वर्षीय मालती देवी जब हाथ में लाठी लिए अदालत पहुंचीं, तो वहां मौजूद हर किसी की नजर उन पर ही टिक गई। उनके चेहरे पर वर्षों से चली आ रही पीड़ा साफ झलक रही थी, लेकिन उसी के साथ एक विश्वास भी था।

    न्याय के देवता पर भरोसा। वह बार-बार मानो न्यायालय को आशीर्वाद दे रही थीं, क्योंकि जिस कांड में उन्हें घसीटा गया था, उसमें उनका कोई दोष ही नहीं था। अदालत के देवता कहे जाने वाले न्यायाधीश ने मामले को परखा और आखिरकार उन्हें निर्दोष पाया।

    उधर, उनके पति इस मुकदमे को लड़ते-लड़ते पहले ही दुनिया छोड़ चुके थे। मालती देवी अकेले ही इस लंबी कानूनी लड़ाई को झेलती रहीं। वर्षों की प्रतीक्षा, मानसिक तनाव और सामाजिक बोझ के बाद मिला यह फैसला उनके जीवन में एक शांत सांस की तरह आया, जिसने उन्हें आखिरकार न्याय का सुकून दिया।

    पति की सुनवाई के दौरान हुई थी मृत्यु

    अंततः लगभग दो दशक की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अदालत ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाते हुए मालती देवी को अपहरण के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने कहा कि साक्ष्यों की अनुपस्थिति में आरोप सिद्ध नहीं हो सकते।

    इस निर्णय के बाद वृद्धा के परिवार में राहत की भावना है। लंबे समय से केस झेल रहीं मालती देवी के लिए यह फैसला जीवन की बड़ी मुक्ति के रूप में देखा जा रहा है।